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- Shekhar Gupta’s Column What Should Be The Retirement Age In Politics?
शेखर गुप्ता, एडिटर-इन-चीफ, ‘द प्रिन्ट’
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि नेताओं को 75 की उम्र में रिटायर हो जाने और युवाओं के लिए जगह खाली करने के बारे में सोचना चाहिए। आप यह मत सोचने लग जाइए कि उन्होंने कोई अवांछित बात कह दी है। वैसे कोई प्रतिक्रिया देने में सावधानी बरतना लाजिमी है, क्योंकि भाजपा-संघ रिश्तों के मामलों में नरेंद्र मोदी हमेशा अपवाद रहेंगे।
मोदी 17 सितंबर को 75 के हो जाएंगे, और इससे छह दिन पहले भागवत भी 75 के हो जाएंगे। इन संदर्भों के मद्देनजर भागवत के बयान को मोदी के लिए किसी संकेत के रूप में लेना उसमें कुछ ज्यादा पढ़ लेने जैसा होगा। गौर करने वाली बात यह है कि मराठी में दिए इस भाषण में भागवत ने सिर्फ 75 की उम्र में रिटायर होने वाली बात हिंदी में कही थी!
2005 में संघ प्रमुख सुदर्शन से मेरी दो किस्तों में बातचीत हुई थी, जिसमें सुदर्शन ने तब 77 के हो चुके आडवाणी और 80 के हो चुके वाजपेयी से युवाओं के लिए जगह खाली करने को कहा था। मैंने उन्हें याद दिलाया था कि वाजपेयी ने अपने रिटायर होने की अफवाहों को यह कहकर खारिज किया है कि न टायर्ड हूं, न रिटायर्ड हूं।
उस समय भाजपा पर अटल- आडवाणी की जोड़ी की पकड़ मजबूत थी और उनकी कुर्सियों का कोई दावेदार नहीं था, इसलिए सुदर्शन की आलोचना हुई। लेकिन सच्चाई कुछ और थी। भाजपा-संघ के नजरिए से उनकी गलती सिर्फ यह थी कि उन्होंने गलत समय पर वह बयान दिया था।
इससे पिछले साल ही पार्टी आम चुनाव में हार गई थी और उसे उस समय उत्तराधिकार के किसी संघर्ष में उलझना नहीं था। लेकिन उनके बयान ने रास्ता साफ कर दिया था। संभावित उत्तराधिकारियों की एक पूरी कतार उभरने लगी : राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली, नितिन गडकरी और सबसे उल्लेखनीय, नरेंद्र मोदी। उन्होंने भाजपा के नेतृत्व को लेकर अमेरिकी शैली की होड़ की शुरुआत करवा दी। 2012 में मोदी उस होड़ में आगे निकल गए।
आप भाजपा-संघ को पसंद करते हों या नहीं, आपको मानना पड़ेगा कि भारतीय राजनीति में उनका ‘एचआर सिस्टम’ (मानव संसाधन व्यवस्था) सबसे मजबूत और योग्यतापरक है। भारत के राजनीतिक इतिहास में जितनी पार्टियां उभरीं, उनमें भाजपा ही ऐसी है, जिसमें न्यूनतम दलबदल हुआ है।
कल्याण सिंह या येदियुरप्पा सरीखे कुछ नेता पार्टी से अलग हुए, लेकिन वापस भी लौटे। अलग होने वाले कुछ नेता बियाबान में खो गए, जैसे शंकरसिंह वाघेला या बलराज मधोक आदि। उन्हीं दशकों में कांग्रेस कई बार टूटी और कभी-कभी तो ऐसा लगा कि इससे टूटे गुटों के नाम में कांग्रेस के साथ जोड़ने के लिए वर्णमाला के अक्षर भी पूरे नहीं पड़ेंगे। जनता पार्टी, समाजवादी या लोक दल का भी यही हश्र हुआ।
भाजपा में कम-से-कम शीर्ष स्तर पर पारिवारिक उत्तराधिकार का भी कोई उदाहरण नहीं मिलेगा। इसके जाने-माने संस्थापकों और वरिष्ठों के कई वंशज पार्टी में प्रमुख पदों पर बैठे हैं, लेकिन सत्ता हस्तांतरण से ज्यादा यह किसी के बच्चे को ‘जगह देने’ जैसा मामला रहा।
आप देख सकते हैं कि अटल-आडवाणी के दौर में भी काफी युवा मुख्यमंत्रियों को चुना गया : वसुंधरा राजे, शिवराज सिंह चौहान, रमन सिंह, नरेंद्र मोदी। इन सबकी औसत उम्र करीब 49 साल थी। युवा प्रतिभा की पहचान और उसे मजबूती देने का यह चलन भाजपा के अध्यक्ष के चयन के मामले में और उल्लेखनीय दिखता है।
2002 में वेंकैया नायडू 53 साल की उम्र में भाजपा अध्यक्ष बने। राजनाथ सिंह 54 की उम्र में, नितिन गडकरी 48 की उम्र में तो अमित शाह 49 की उम्र में अध्यक्ष बने। जबकि इस पूरी अवधि में सोनिया गांधी कांग्रेस अध्यक्ष बनी रहीं।
बीच में बहुत थोड़े समय के लिए राहुल गांधी अध्यक्ष बने और अब मल्लिकार्जुन खरगे हैं, जो 80 के हो चुके हैं। इस बीच कांग्रेस में कई युवा प्रतिभाएं मुरझा गईं। इन दोनों पार्टियों के ‘एचआर सिस्टम’ पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
भाजपा में इस ‘सिस्टम’ का 2014 के बाद भी पालन किया गया है। जेपी नड्डा ने 59 की उम्र में पार्टी की कमान संभाली। उसके नए मुख्यमंत्रियों पर नजर डालिए- योगी आदित्यनाथ, भजनलाल शर्मा, मोहन यादव, विष्णुदेव साय, मोहन चरण मांझी, बिप्लब देब, हिमंत सरमा, मनोहरलाल खट्टर, देवेंद्र फडणवीस, प्रमोद सावंत, पुष्कर सिंह धामी, रेखा गुप्ता- इन 12 नेताओं ने जब कुर्सी संभाली तब उनकी औसत उम्र 51 साल थी।
कांग्रेस ने तेलंगाना और हिमाचल प्रदेश में कुछ युवा प्रतिभाओं को आगे बढ़ाया है, लेकिन यह कर्नाटक में सिद्धारमैया पर ही अटकी हुई है। उल्लेखनीय यह भी है कि संघ स्वयं अपनी सलाह पर अमल करता है। अब तक उसके सरसंघचालकों की अधिकतम उम्र 78 साल ही रही है। हेडगेवार और गोलवलकर का क्रमशः 51 और 67 की उम्र में ही निधन हो गया था। सभी सरसंघचालक युवावस्था में ही शीर्ष तक पहुंचे और भागवत की तरह सबका कार्यकाल लंबा रहा।
हकीकत यह है कि तमाम अफवाहों और कानाफूसियों के बावजूद भाजपा के अंदर किसी ने ऐसे किसी नियम का मुद्दा नहीं उठाया है कि 75 की उम्र रिटायर्ड होने की उम्र है। इसके बारे में कानाफूसी आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी आदि को ‘मार्गदर्शक मंडल’ यानी संन्यास में भेजने के औचित्य के रूप में ही की गई थी। इसी के साथ कलराज मिश्र और नजमा हेपतुल्ला सरीखे नेता मंत्री बने रहे।
बाद में उन्हें राज्यपाल बना दिया गया। पिछले लोकसभा चुनाव में हेमा मालिनी को 75 की उम्र पार करने के बाद भी मथुरा से शायद यह जताने के लिए उम्मीदवार बनाया गया कि पार्टी में 75 की उम्र वाला कोई नियम नहीं लागू है।
एकमात्र औपचारिक बयान आनंदीबेन पटेल का है, जिन्होंने 2016 में गुजरात के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने का यह कारण बताया था कि मैं 75 की हो चुकी हूं। लेकिन यह निश्चित रूप से मोदी के लिए कोई मिसाल नहीं है।
मोदी के फैसले या संकेत का इंतजार करना होगा मोदी 2029 का चुनाव तो निश्चित रूप से लड़ना चाहेंगे। तब उनकी उम्र केवल 79 साल होगी, जितनी आज ट्रम्प की है। बाकियों को उनके फैसले या संकेत का इंतजार करना पड़ेगा, चाहे भाजपा के अंदर ‘उम्मीदवार’ चुनने की कोई गुप्त ‘प्रक्रिया’ क्यों न शुरू हो चुकी हो। (ये लेखक के अपने विचार हैं)
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शेखर गुप्ता का कॉलम: राजनीति में रिटायरमेंट की उम्र कितनी हो?