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शेखर गुप्ता, एडिटर-इन-चीफ, ‘द प्रिन्ट’
तमाम देश फौज क्यों रखते हैं? क्या उन्हें लड़ाई लड़ने के लिए रखा जाता है? कोई नासमझ ही यह बात कह सकता है। तो क्या सेना अपनी रक्षा के लिए रखी जाती है? लेकिन यह तो छोटे देश करते हैं। महान राष्ट्र तो ऊंचे मकसद के लिए सेना रखते हैं।
यह है : लड़ाइयों को रोकना। देश जितना ताकतवर होगा, उसे उतनी ही ताकतवर सेना की जरूरत होगी- क्षेत्रों को जीतने के लिए नहीं और न दूसरों पर धौंस जमाने के लिए, बल्कि अपने सम्प्रभु क्षेत्रों को मिलने वाली चुनौतियों को नाकाम करने के लिए। सेना का मकसद दूसरे देशों के दुस्साहस को रोकने के लिए उनमें खौफ पैदा करना होता है।
तो क्या हम पाकिस्तान में इतना खौफ पैदा कर पाए हैं कि वह कोई दुस्साहस न करे? पहलगाम ने दिखा दिया कि हम ऐसा नहीं कर पाए हैं। लेकिन सम्प्रभु राष्ट्र खुद को प्रतिशोध में सीमित नहीं कर सकते। उन्हें और भी करना होता है।
हमें दूसरे देशों के साथ शक्ति-संतुलन बनाना होता है और इसमें सजा देने की ताकत भी जुड़नी चाहिए। आतंकी अड्डों पर भारत के शुरुआती हमलों का पाकिस्तान ने जिस तरह जवाब दिया, उससे जाहिर है कि अभी हम उसमें खौफ नहीं पैदा कर पाए हैं।
सजा देने की ताकत 10 मई की सुबह सामने आई, जब पाकिस्तानी वायुसेना (पीएएफ) के सबसे प्रशंसित अड्डों, हवाई सुरक्षा और मिसाइल बैट्रीज पर कई हमले किए गए। यह भयंकर हमला था और सरकार की ओर से संदेश ‘बदला’ लेने का नहीं बल्कि खौफ पैदा करने का था। यह कि अब आगे हर आतंकवादी गतिविधि को युद्ध माना जाएगा और हम तुरंत और कई गुना ज्यादा जवाबी कार्रवाई करेंगे, इसलिए बाज आ जाओ!
हमें आकलन करने की जरूरत है कि 2016 के बाद से सैन्य कार्रवाई के स्तर को निरंतर ऊपर उठाते जाकर भारत ने क्या हासिल किया : उरी, बालाकोट और अब ‘ऑपरेशन सिंदूर’। जब 13 दिसंबर 2001 को संसद पर हमला किया गया था तो वह पाकिस्तानी सेना/आईएसआई की ओर से छद्म युद्ध की शुरुआत थी। भारत ने इसके जवाब में सेना तैनात कर दी थी। इसने भारत को 2008 तक अपेक्षाकृत शांति प्रदान की। यानी सात साल तक खौफ पैदा कर दिया गया था।
26/11 के बाद भारत ने अजमल कसाब को जिंदा पकड़ लिया, हमले में अमेरिकी नागरिक भी मारे गए और यहूदियों को खास तौर से निशाना बनाया गया- इन सबने पाकिस्तान को शर्मसार किया और दुनियाभर में शोर मचा। इसके बाद 8 साल तक डगमग शांति का दौर मिला।
अगला प्रकरण 2016 में पठानकोट और उरी कांडों के रूप में सामने आया। इसके जवाब में सर्जिकल स्ट्राइक की गई। इसने पाकिस्तान को यह कहकर बचने का रास्ता दे दिया कि कुछ भी नहीं हुआ। 2019 में पुलवामा हमले के बाद बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी अड्डे पर हमले का पीएएफ की ओर से जवाब आया। भारतीय सेना की कार्रवाई स्पष्ट थी जिससे इनकार नहीं किया जा सकता था, लेकिन पाकिस्तान को दिखाने के लिए एक युद्धबंदी मिल गया था।
सिलसिले पर गौर कीजिए। पाकिस्तान और उसके छद्म सैनिकों को लगभग हर सात-आठ साल पर जबरदस्त खुजली होती रही है। इस बार भारत ने लगभग युद्ध के रूप में अब तक का सबसे सख्त सैन्य जवाब दिया है। वह फिर सात साल तक पाकिस्तान को खौफ में रखेगा?
आईएसआई और उसके छद्म सैनिक जल्द ही फिर धमक सकते हैं। वे जेट विमानों, टैंकों और परमाणु हथियारों के बूते जिहाद करने के सपने देखते हैं। यह उनकी कल्पना है और इसे वह अपनी ‘तकदीर’ मानते हैं। भारत से जंग तो होनी ही है, इसलिए वह जंग आज ही क्यों नहीं? इसे तब तक के लिए क्यों टालें, जब शक्ति संतुलन की खाई और चौड़ी हो जाएगी?
इस सिक्के के दोनों पहलुओं को ध्यान से देखने की जरूरत है कि वे विराम के इन 5-7 साल में क्या करते हैं? और हम जवाबी जंग लड़ने की तैयारी करेंगे, या खौफ पैदा करने की? इन बातों को वे इस तरह देख सकते हैं कि खुद को निर्णायक मामलों में और मजबूत करें, ‘अगली बार’ भारत जब जवाब देता है तब उसके साथ खेलें।
भारत को नियोजित, अपेक्षित जवाब देने से वंचित करें। और, भारत किस तरह जवाब देता है? क्या हम जोखिम के स्तर को इसलिए ऊपर उठाते रहते हैं ताकि ज्यादा वक्त ले सकें? महाशक्ति बनने की ख्वाहिश रखने वाला देश अपनी भावी पीढ़ियों की सुरक्षा के लिए ऐसी योजना नहीं बनाता।
यही वजह है कि प्रतिरक्षा पर ज्यादा खर्च करें, रक्षा बजट को अगले तीन साल तक जीडीपी के 2.5 प्रतिशत के बराबर कर दें। इस साल इसे 1.9 प्रतिशत के बराबर रखा गया है, जो काफी कम है। इसमें प्रत्येक 0.1 प्रतिशत की वृद्धि 35,000 करोड़ और दिला सकती है।
इस अतिरिक्त राशि को अगली बार सजा देने और खौफ पैदा करने की ऐसी निर्णायक क्षमता बनाने पर खर्च कीजिए, ताकि पाकिस्तान के पास जवाब देने की कोई गुंजाइश ही न बचे। हम हमेशा अपने दो मोर्चों का रोना नहीं रोते रह सकते और खुद को उलझाए नहीं रख सकते।
पांच साल तक सभी नया खर्च केवल एक मोर्चे पर करें। वायुसेना को कहीं ज्यादा दूरी तक मार करने वाली ज्यादा मिसाइलें दी जाएं और उसके नंबरप्लेट वाले स्क्वॉड्रनों को भरा जाए। लक्ष्य इसकी आधी फाइटर सेनाओं को ‘बियॉन्ड विजुअल रेंज’ क्षमता से लैस करने का होना चाहिए।
स्वदेशी हो या आयातित, फर्क नहीं पड़ता। भारत और इंतजार नहीं कर सकता क्योंकि बुरे तत्व इंतजार नहीं करेंगे। अगर लंबी दूरी तक मार करने वाली तोपों को सजा देने वाले हथियार बनाना है तो एक बार में एक सौ की खरीद न करें, बल्कि एक बार में 1000 खरीदें।
पाकिस्तान जब एलओसी के पार से 10 तोपों से फायर करता है तो आप 200 तोपों से फायर कीजिए। लंबी दूरी तक मार करने वाली तोपें जब भारी संख्या में तैनात होती हैं तब वे खौफ पैदा करती हैं। भारत यह कर सकता है।
इस बार सबसे सख्त जवाब दिया, पर क्या यह काफी है… सिलसिले पर गौर कीजिए। पाकिस्तान और उसके छद्म सैनिकों को लगभग हर सात-आठ साल पर जबरदस्त खुजली होती रही है। इस बार भारत ने लगभग युद्ध के रूप में अब तक का सबसे सख्त सैन्य जवाब दिया है। वह फिर सात साल तक पाकिस्तान को खौफ में रखेगा?
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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शेखर गुप्ता का कॉलम: खौफ पैदा करने पर रहती है स्थायी शांति