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16 मिनट पहले

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शेखर गुप्ता, एडिटर-इन-चीफ, द प्रिन्ट
ट्रम्प ने जो व्यापार-युद्ध छेड़ा है, उसे चीन को छोड़ बाकी तमाम देशों के लिए विराम देकर और स्पष्ट कर दिया है। जब चीन पर उन्होंने 145 फीसदी टैरिफ ठोके, तो चीन ने भी जवाब में 125 फीसदी टैरिफ लगाया। यह दो महाबली हाथियों की टक्कर है। जब दो हाथी भिड़ते हैं तब क्या होता है, हम अच्छी तरह जानते हैं। तब छोटे-मोटे जीव पिस जाते हैं।
ऐसे में तीन सवाल उभरते हैं। क्या भारत छोटा-मोटा जीव है? क्या भारत छोटा-मोटा जीव बनना गवारा कर सकता है? इस दंगल में भारत पिस जाने से बचने के लिए क्या कर सकता है, और इस दंगल से लाभ कैसे उठा सकता है?
दो महाशक्तियों के इस व्यापार-युद्ध ने सभी प्रभावित देशों के लिए संभावनाओं के दरवाजे खोल दिए हैं। ऐसे देशों में भारत सबसे बड़ा और सबसे निर्णायक है। इन टैरिफों के मद्देनजर भारत कम-से-कम इतना तो कर ही सकता है कि अमेरिका के बाजारों के लिए ऐसी चीजें बनाए, जिनमें चीन उसकी बराबरी नहीं कर सकता। ऐसी सबसे पहली चीज एपल फोन हो सकती है। लेकिन चीन अमेरिका को जो चीजें निर्यात करता है उनकी सूची पर नजर डालें और उन पर 30-40 फीसदी की ड्यूटी जोड़ दें तो अरबों डॉलर मूल्य के निर्यातों की संभावना बनती है।
इसी तरह, अमेरिका से चीन को निर्यात की जाने वाली कुछ चीजें भारत उसे निर्यात कर सकता है। किसी दोस्त या सहयोगी की दुविधा का लाभ उठाना आम तौर पर अच्छी बात नहीं मानी जाती। लेकिन ऐसे वक्त में, जिसे ट्रम्प ने असामान्य बना दिया है और जब वे अपने साथियों के प्रति आक्रामक और अपमानजनक रवैया अपना रहे हैं, इसे बुरा नहीं माना जाना चाहिए।
ट्रम्प बयान दे रहे हैं कि वे सब मुझे फोन करके कह रहे है कि सर, यह सौदा हमसे कर लीजिए, हम कुछ भी करने को तैयार हैं। ट्रम्प यह सब चीन के लिए नहीं बल्कि उन 75 देशों के लिए कह रहे हैं जो उनके सहयोगी हैं, जिनमें यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और भारत भी शामिल है। हम यह तो कहते रहते हैं कि किसी संकट का लाभ उठाने से मत चूको, लेकिन इधर भारत ने ऐसे अवसरों का लाभ नहीं उठाया है। कोविड के संदर्भ में जो वादे किए गए थे, उन्हें भुला दिया गया है। कृषि सुधारों के कानून और श्रम कानून हवा-हवाई हो गए हैं।
प्रधानमंत्री ने 2021 में साफ-साफ कहा था कि सरकार रणनीतिक मामलों को छोड़ व्यवसाय के सभी क्षेत्र निजी क्षेत्र के हवाले कर देगी। लेकिन एअर इंडिया की बिक्री, जिसकी प्रक्रिया 2017 से चल रही थी, के सिवा निजीकरण की अब कोई बात भी नहीं की जाती। आईडीबीआई बैंक का ‘लगभग हो चुका’ निजीकरण अभी ‘लगभग’ के चक्र में ही उलझा हुआ है।
इस साल के बजट में 5 ट्रिलियन रु. ‘पीएसयू’ में निवेश के लिए रखे गए हैं। मोदी सरकार ने प्रशंसनीय काम यह किया कि महामारी के दौरान धैर्य बनाए रखा, कई पश्चिमी लोकतांत्रिक देशों की तरह नोट छापकर नहीं बांटे और वित्तीय घाटे को संभाला।
सरकार ने ‘आत्मनिर्भरता’ और ‘मेक इन इंडिया’ पर आधारित नया आर्थिक एजेंडा पेश किया। उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहनों (पीएलआई) और व्यवसाय करने की सुविधाओं (ईओडीबी) के नाम पर बड़ी राशियां आवंटित करने का वादा किया गया। पीएलआई के मोर्चे पर आधी-अधूरी प्रगति हुई है। मैन्युफैक्चरिंग गतिरोध में फंस गया है। कुछ पीएलआई आगे बढ़ी है, मुख्यतः आई-फोन के मामले में। और देखिए कि इस एक चीज ने हाथियों की लड़ाई के बीच भारत को कितनी ताकत दी है।
ईओडीबी के मोर्चे पर क्या हालत है? भारत की रैंकिंग बेहतर हुई है लेकिन घिसटती हुई। जीएसटी को एक युगांतरकारी आर्थिक सुधार बताया जाता है। लेकिन मझोले और लघु उद्यमियों (एमएसएमई) से पूछिए कि इसकी प्रक्रियाएं कितनी उलझन भरी, विवादित और बोझिल हैं। घास की तरह कुचले जाने से बचने के लिए भारत को कोविड युग वाले सुधारों के विचार को अपनाना होगा। व्यापार वाला मसला पूरी तरह मैन्युफैक्चर्ड और कृषि सामान तक सीमित रहेगा।
अमेरिका को हमारे कुल निर्यात में 40 फीसदी हिस्सा सर्विस सेक्टर का है लेकिन यह गिनती में नहीं है। इन पर कोई टैरिफ नहीं लगता क्योंकि कोई सामान सीमा पार नहीं जाता। चीन से जो पलायन हो रहा है उसका लाभ उठाने के लिए भारत नई मैन्युफैक्चरिंग कितनी जल्दी शुरू कर सकता है? इसके विपरीत, टैरिफ में अगर भारी कटौती की गई- जो निश्चित ही की जाएगी और की जानी चाहिए- तब हमारी मैन्युफैक्चरिंग क्या इतनी मजबूत है कि अपना वजूद बचा सकेगी? इसके लिए सरकार को क्या करना चाहिए?
सब्सिडी देना आलसी, प्रतिगामी, महंगा कदम होगा, और ट्रम्प इसे अनुचित बताकर खारिज कर देंगे। अमेरिका कुल मिलाकर टैरिफ मुक्त अर्थव्यवस्था है। यह भारत को 45 अरब डॉलर का व्यापार सरप्लस उपलब्ध कराता है। शुल्क खत्म भी कर दिए गए तो अमेरिका भारत को निर्यात करने के लिए इतना कम मैन्युफैक्चर करता है कि उससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। खनिज तेल और कीमती ‘स्टोन’, दो ऐसी चीजें हैं जो वह सबसे ज्यादा निर्यात करता है। यह कड़े कदम उठाने का मौका है।
भारत को मैन्युफैक्चरिंग को संरक्षण व कृषि के मामले में इतिहास-प्रदत्त हिचक के दोहरे दबाव से मुक्त होने और नई आर्थिक आजादी का दावा करने का समय आ गया है। कृषि सुधारों की ओर वापसी की रफ्तार बढ़ेगी तो अतिरिक्त उत्पादन कर रहे किसान गेहूं-चावल की गिरफ्त से निकलेंगे। इसके लिए राजनीतिक कौशल और साहस की जरूरत होगी।
इस स्तर के आर्थिक सुधार ही भारत को अपने हितों की सुरक्षा करने में सक्षम बनाएंगे। इस तरह का मौका किसी पीढ़ी को एक बार ही मिलता है। दो हाथी- आपके सबसे अच्छे मित्र और सबसे बुरे प्रतिद्वंद्वी गुत्थमगुत्था हैं। फैसला आपको करना है कि आप क्या बनना चाहते हैं। आप बेशक कुचले जाने वाली घास नहीं बनना चाहेंगे।
ट्रम्प अपने सहयोगियों के प्रति ही सबसे रूखे हैं
मोदी और ट्रम्प दोस्त हैं, इसलिए भारत को विशेष दर्जा हासिल है। लेकिन ट्रम्प अपने सहयोगियों के प्रति सबसे रूखे हैं। वे कह सकते हैं कि ‘मेरे मित्र समझदारी क्यों नहीं दिखा सकते? मैं चीन से कुश्ती कर रहा हूं, वे क्या जीतने में मेरी मदद नहीं कर सकते?’
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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शेखर गुप्ता का कॉलम: इस दंगल से हम कैसे लाभ उठा सकते हैं?