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शीला भट्ट का कॉलम: बिहार की जनता की ओर से नीतीश को धन्यवाद-पत्र! Politics & News

शीला भट्ट का कॉलम:  बिहार की जनता की ओर से नीतीश को धन्यवाद-पत्र! Politics & News

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47 मिनट पहले

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शीला भट्ट वरिष्ठ पत्रकार

यह तो पहले से पता था कि इस बार बिहार के विधानसभा चुनावों में एनडीए की जीत होगी, लेकिन उसे जितनी बड़ी जीत मिली है, उसने सबको चौंकाया है। इसका पूर्वानुमान तो किसी ने भी नहीं लगाया था। महिलाओं के खातों में दस हजार रुपयों के कैश ट्रांसफर ने एनडीए के चुनाव अभियान की नींव मजबूत की और बदले में महिला मतदाताओं ने तो कमाल ही कर दिया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, दोनों के ही पास महिला मतदाताओं पर ध्यान केंद्रित करने में सक्षम ‘डबल इंजन’ वाली राजनीतिक मशीनरी है। और इसके नतीजे सामने हैं। चिराग पासवान का एनडीए में आना भी फायदेमंद रहा।

उन्होंने 2020 का विधानसभा चुनाव अकेले लड़ा था और एनडीए, खासकर जदयू के वोटों में जमकर सेंध लगाई थी। लेकिन इस चुनाव में, उनकी उपस्थिति ने एनडीए की बहुत मदद की और दलित पासवान वोट जदयू के अति पिछड़ा और अन्य पिछड़ा वोटों के साथ-साथ भाजपा के उच्च जाति के वोटों में जुड़ गए।

अंतिम निष्कर्ष यह रहा कि मुसहर, दलित पासवान, ब्राह्मण, भूमिहार और इनके साथ ओबीसी मतदाताओं के सभी वर्गों ने मिलकर एनडीए का चुनावी छत्र बनाया, जबकि महागठबंधन के पास यादव और मुस्लिम मतदाता ही थे। ऐसे में एनडीए भला कैसे नहीं जीतता? राजद के यादव और मुस्लिम गठजोड़ के खिलाफ यह बड़ा काउंटर-ध्रुवीकरण महागठबंधन की स्पष्ट रूप से विफल रणनीति थी।

वास्तव में, बिहार के समाज से यादव और मुसलमानों को छोड़कर सभी जातियों की गोलबंदी इस बार एनडीए के पक्ष में हो गई थी। इसी का नतीजा एनडीए को मिले भारी जनादेश के रूप में सामने आया है। इसके अलावा, 11 नवंबर को बिहार में दूसरे चरण के मतदान से एक रात पहले हुए दिल्ली बम विस्फोट ने भी कुछ मतदाताओं को एनडीए के पक्ष में वोट देने के लिए प्रेरित किया होगा।

कुछ विश्लेषकों का कहना था कि इस बार बिहार के पास दो ही विकल्प थे : बदलाव या निरंतरता। लेकिन यह एक गलत दृष्टि है। इसके बजाय बिहार के मतदाताओं ने देखा है कि नीतीश कुमार ने बिजली और सड़क-संपर्क प्रदान करने में अच्छा काम किया है।

राज्य में कानून-व्यवस्था में भी काफी सुधार हुआ है। हालांकि शराबबंदी के कारण यह व्यवस्था बाधित हुई थी, जिससे स्थानीय गुंडा राज फिर से आ गया था, लेकिन मतदाताओं को लगता है कि बिहार आखिरकार ‘अंडर कंस्ट्रक्शन’ वाले दौर में है।

ये सच है कि बिहार के लोग और भी बहुत कुछ चाहते हैं। मुख्य रूप से बेहतर स्वास्थ्य और शिक्षा सुविधाएं। इसलिए बदलाव के अगले चरण की उम्मीद के साथ लोग मतदान केंद्रों पर गए थे। ऐसे में बिहार में सरकार बदलने का मतलब होता नीतीश कुमार द्वारा लाए गए अच्छे बदलावों का अंत करना। भला बिहार के मतदाता ऐसा क्यों करते?

वास्तव में, इस नतीजों के बाद नीतीश कुमार चुनावी खेल के उस्ताद साबित हुए हैं। अपनी खराब सेहत के बावजूद, वे एकमात्र विश्वसनीय बिहारी नेता बने हुए हैं। लोग नीतीश को इसलिए पसंद करते हैं क्योंकि वे बिहार की अस्मिता को बखूबी दर्शाते हैं।

उनमें कोई परिवारवादी-वंशवादी प्रवृत्ति नहीं है, उन पर भ्रष्टाचार का दाग नहीं है, और न ही वे मुस्लिम विरोधी बयानबाजी करते हैं। उनका राजनीतिक मंच सभी को समायोजित करता है। वे बिहार के सामाजिक न्याय के संघर्ष की अच्छी यादों को भी अपने साथ लेकर आते हैं।

उन्होंने लालू-राबड़ी के दौर में बिहार को जंगलराज और सामाजिक संकट से उबारा है। उन्होंने बेतुके बयानों से लोगों को अलग-थलग नहीं किया है और चुपचाप काम किया है। ऐसे में ये चुनाव-परिणाम बिहार की कृतज्ञ जनता की ओर से नीतीश बाबू को एक धन्यवाद पत्र हैं।

यह भी तय है कि इन परिणामों के बाद अब बिहार पहले जैसा नहीं रहेगा। बिहार और ज्यादा भगवामय होने की राह पर है। सीमांचल नई राजनीतिक जमीन बनेगा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा उठाया गया जनसांख्यिकी में अपेक्षित बदलाव का मुद्दा अब बिहार की राजनीति पर हावी रहेगा।

लेकिन इस बार बिहार के चुनावों में एनडीए की जीत सही मायनों में बिहार के भाजपाकरण की शुरुआत है। नीतीश बाबू धीरे-धीरे और एक शानदार रिकॉर्ड के साथ रिटायर होंगे। उन्होंने 21वीं सदी के बिहार के इतिहास में अपनी क्षमता और अपनी मज़बूत जगह साबित कर दी है। लेकिन अब आगे की कमान संभालने की बारी भारतीय जनता पार्टी की है।

मतदाताओं को लगता है कि बिहार आखिरकार ‘अंडर कंस्ट्रक्शन’ वाले दौर में आ गया है। बिहार के लोग और भी बहुत कुछ चाहते हैं। इसलिए बदलाव के अगले चरण की उम्मीद के साथ लोग मतदान केंद्रों पर गए थे। (ये लेखिका के अपने विचार हैं)

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