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शर्मनाक! 63 साल की मां को घर से निकाला, पूरी रात सड़कों पर भटकती रही बुजुर्ग Haryana News & Updates

शर्मनाक! 63 साल की मां को घर से निकाला, पूरी रात सड़कों पर भटकती रही बुजुर्ग Haryana News & Updates

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63 वर्षीय निशा को उनकी बेटी ने घर से निकाल दिया. निशा ने संघर्ष कर बेटियों को पाला, लेकिन सहारे की जरूरत पर बेटियों ने साथ नहीं दिया. अब निशा फरीदाबाद के वृद्धाश्रम में रह रही हैं.

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अपनों के बीच पराई हुई मां को वृद्धाश्रम का सहारा.

हाइलाइट्स

  • बेटियों ने मां को घर से निकाला.
  • निशा अब फरीदाबाद वृद्धाश्रम में रह रही हैं.
  • वृद्धाश्रम में निशा को सम्मान और सहारा मिला.

फरीदाबाद. दिल्ली की रहने वाली 63 वर्षीय निशा की जिंदगी में वह दिन सबसे दर्दनाक था, जब उनकी अपनी ही बेटी ने उन्हें घर से निकाल दिया. निशा की दो बेटियां हैं, लेकिन जब उन्हें सहारे की जरूरत थी तब दोनों में से कोई भी उन्हें अपने पास रखने को तैयार नहीं हुई. उनकी बड़ी बेटी जिसके साथ वह पिछले दस सालों से रह रही थीं ने 15 जनवरी 2025 की ठंडी सुबह चार बजे घर से निकाल दिया और कहा- जहां जाना है चली जाओ.

निशा ने अपने बच्चों को पालने के लिए कई संघर्ष किए. साल 2001 में उनके पति का निधन हो गया था उस वक्त उनकी बड़ी बेटी केवल आठ साल की थी और छोटी बेटी गोद में थी. उन्होंने नर्स की नौकरी करते हुए अपनी दोनों बेटियों को पढ़ाया-लिखाया और हर जरूरत पूरी की. जब बड़ी बेटी का तलाक हुआ और वह अकेली पड़ गई तो निशा ने नौकरी छोड़कर उसके साथ रहने का फैसला किया. लेकिन समय बीतने के साथ उनकी बेटी उन्हें बोझ समझने लगी और आखिरकार एक दिन घर से निकाल दिया.

दिल्ली से भटकते हुए फरीदाबाद पहुंचीं
घर से निकाले जाने के बाद निशा के पास कोई ठिकाना नहीं था. उन्होंने कई रातें सड़कों पर बिताईं कभी इधर तो कभी उधर भटकती रहीं. इस दौरान वह हरिद्वार भी गईं लेकिन वहां भी स्थायी सहारा नहीं मिला. धीरे-धीरे भटकते हुए वह फरीदाबाद आ गईं. जब वह एक सड़क किनारे बैठी थीं तो ताऊ देवीलाल वृद्धाश्रम के कर्मचारियों ने उन्हें देखा और सहारा दिया.

वृद्धाश्रम में मिला सम्मान और सहारा
अब निशा पिछले दो महीने से वृद्धाश्रम में रह रही हैं और खुद को पहले से ज्यादा सुरक्षित महसूस कर रही हैं. उनका कहना है कि यहां अपनों से ज्यादा मान-सम्मान मिलता है. खाने-पीने से लेकर देखभाल तक सब कुछ समय पर होता है. घर से ज्यादा केयर मिलती है. जब उन्होंने अपनी कहानी सुनाई तो उनकी आंखों में आंसू आ गए.

वृद्धाश्रम के कर्मचारियों ने की मदद
वृद्धाश्रम की सेवादार किरण शर्मा बताती हैं कि निशा ने खुद फोन करके वृद्धाश्रम में आने की इच्छा जताई थी. जब वह यहां आईं तो शुरू में एक हफ्ते तक बहुत रोती रहीं और खुद को अकेला महसूस करती रहीं. लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने खुद को संभाला और अब वह यहां की बाकी महिलाओं के साथ घुल-मिल गई हैं.

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