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जयपुर का चौगान स्टेडियम…व्हील चेयर पर बैठकर चौके-छक्के लगाते खिलाड़ी…व्हील चेयर पर ही बैठे-बैठे बॉलिंग से एक झटके में विकेट की गिल्लयां उड़ाने वाले इन खिलाड़ियों की यहां तक की जर्नी आसान नहीं रही।
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संघर्ष करते-करते इन खिलाड़ियों ने खुद को इतना मजबूत बनाया कि आज देश के लिए खेल रहे हैं। आज इनके हौसले, उत्साह के पीछे की तस्वीर स्याह है। किसी खिलाड़ी को ई-रिक्शा चलाना पड़ा था तो किसी ने सुसाइड तक करने का मन बना लिया था। ताने भी कुछ कम नहीं सुने। समय रहते इन्होंने खुद को चुनौतियों से लड़ने के लिए मेहनत की आग में तपाया और कामयाब बने।
अब ये सभी खिलाड़ी नेशनल व्हीलचेयर क्रिकेट टूर्नामेंट का हिस्सा हैं।
ऐसे ही कुछ खिलाड़ियों की कहानी आप भी पढ़िए…
जयपुर के चौगान स्टेडियम में प्रैक्टिस सेशन के दौरान खिलाड़ियों ने खूब पसीने बहाए।
1. धर्मवीर पाल: 8 साल का था, तब से ठीक से नहीं चल पाता हूं मध्य प्रदेश के पीपस्या के रहने वाले धर्मवीर पाल ने बताया- मैं 8 साल का था। मुझे बुखार हुआ। पता चला कि मैं पोलियो से ग्रसित हूं। तब से अब तक मैं अपने पैरों पर ठीक से खड़ा नहीं हो पाया। बचपन से ही मुझमें क्रिकेट देखने और खेलने का जुनून रहा।
धर्मवीर भारतीय व्हील चेयर क्रिकेट टीम के टॉप खिलाड़ियों में शामिल है।
साल 2004 में भारत और श्रीलंका के बीच मोहाली में मैच था। जब मैं मैच देखने पहुंचा तो वहां एक अधिकारी ने मुझे बाउंड्री लाइन पर भेज दिया। इसके बाद मैं लगातार टीम इंडिया के मैचों में जाने लगा। जहां मुझे बॉल बाय के रूप में पहचान मिली।
मैं न सिर्फ भारत बल्कि, दुनियाभर में टीम इंडिया के साथ मैच के दौरान जाने लगा। जहां भारतीय खिलाड़ियों से भी मेरी अच्छी बातचीत शुरू हो गई।
साल 2006 से मेरी क्रिकेट जर्नी की शुरुआत हुई। टीम इंडिया के मैच देखने के लिए मैं देशभर और दुनिया में घूमता हूं। जब कभी मैच देखने नहीं पहुंचता तो टीम इंडिया के खिलाड़ी मेरे बारे में पूछते। कई बार जब मैच में मेरी मौजूदगी नहीं होती तो टीम इंडिया मैच हार जाती थी।
इससे भारतीय खिलाड़ी मुझे ‘लकी चार्म’ कहने लगे। टीम इंडिया के खिलाड़ी युवराज सिंह, हरभजन सिंह और श्रीसंत ने मुझे इस बारे में साफ तौर पर कहा था कि तुम नहीं थे, इसलिए हम मैच हार गए। अगली बार से तुम जरूर आना। तुम हमारे ‘लकी चार्म’ हो।
मेरे रहने से लेकर आने-जाने की व्यवस्था टीम इंडिया के खिलाड़ियों की मदद से होती है। कई बार मैं टीम इंडिया के साथ फ्लाइट और बस भी शेयर कर चुका हूं। टीम इंडिया जहां जिस होटल में ठहरती है, मैं भी वहीं ठहरता हूं। यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है।
सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़, वीरेंद्र सहवाग, महेंद्र सिंह धोनी से लेकर विराट कोहली समेत टीम इंडिया के सभी खिलाड़ी मुझे बहुत प्यार करते हैं। वे लोग मुझे टीम इंडिया का ट्वेल्थ मैन (12वां खिलाड़ी) कहकर बुलाते हैं। यह सम्मान मेरे लिए बहुत बड़ा है।
अहमदाबाद में टीम इंडिया और न्यूजीलैंड के बीच टेस्ट मैच चल रहा था। तब महेंद्र सिंह धोनी ने टीम इंडिया के साथ फुटबॉल खेलने का फैसला किया। मैं भी उसे वक्त ग्राउंड में था। माही भाई ने मुझे गोलकीपर बनाया।
मैच के दौरान जब मैंने गोल रोका तो माही भाई और टीम इंडिया के सभी खिलाड़ी मुझ पर गिर गए थे। यह एक यादगार लम्हा था, जिसे मैं कभी नहीं भूल सकता।
धर्मवीर महेंद्र सिंह धोनी के साथ कई बार नेट प्रैक्टिस सेशन में भी हिस्सा ले चुके हैं।
धर्मवीर ने बताया- बचपन में जब मैं किसी रिश्तेदार के घर जाता था तो उन्हें लगता थ कि मैं फोकट (फ्री) का खाना खाने आ गया हूं। वे लोग मुझे हीन भावना से देखते थे। कई बार ताने भी मारते। लेकिन मैंने उन्हीं तानों और नकारात्मकता से सीखते हुए जीवन में आगे बढ़ने की कोशिश की।
उसी का नतीजा है कि जो लोग ताने मारते थे, वे अब घर बुलाते हैं। सिर्फ मुझसे नहीं, मेरे परिवार से भी बहुत अच्छे से और इज्जत से पेश आते हैं।
व्हीलचेयर क्रिकेट टूर्नामेंट एक बहुत अलग एक्सपीरिएंस है। यहां व्हीलचेयर पर बैठकर ही आपको बैटिंग, फील्डिंग और बॉलिंग करनी है। यह देखने में आसान लगता है, लेकिन बहुत मुश्किल है। फिजिकल डिसेबल होने की वजह से हमारे साथ समान व्यवहार नहीं होता।
हमारी आर्थिक स्थिति भी बहुत ज्यादा ठीक नहीं है। यह हालत न सिर्फ मेरी बल्कि, अधिकतर फिजिकल डिसेबल खिलाड़ियों की है। हम सभी इन कठिन रास्तों पर चल रहे हैं। मुझे लगता है इन कठिनाइयों से आगे बढ़ेंगे, तभी सफल हो पाएंगे।
2. राजा बाबू शर्मा: ट्रेन हादसे में गंवाया पैर उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद के रहने वाले राजा बाबू शर्मा बताते हैं- जब मैं 7 साल का था तब ट्रेन हादसे में मैंने एक पैर गंवा दिया था। इसके बाद स्कूल गया तो साथ के बच्चों ने चिढ़ाना शुरू कर दिया। मैंने पढ़ाई छोड़ दी।
धीरे-धीरे मेरा रुझान क्रिकेट की ओर बढ़ने लगा। क्रिकेट खेलने के साथ मैंने अखबार बांटने का काम भी किया। साल 2013 में उत्तर प्रदेश डिसेबल क्रिकेट एसोसिएशन में ट्रायल दिया। मेरा सिलेक्शन हो गया। जो अखबार मैं लोगों को बांटता था, उसी में मेरी खबरें छपने लगीं।
मेरी शादी हो गई। परिवार की आर्थिक स्थिति आज भी ठीक नहीं है।
राजा बाबू शर्मा फिलहाल साइबर कैफे पर अटेंडेंट के तौर पर नौकरी कर रहे हैं।
डिसेबल क्रिकेट टूर्नामेंट में खेले गए मैचों में मेरी परफॉर्मेंस अच्छी रही। कुछ ही दिनों में मुझे काफी अवॉर्ड मिल गए। साल 2017 में मुझे बिहार के मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने भी सम्मानित किया।
इसके बाद साल 2018 में नोएडा के एक व्यापारी ने मुझे अच्छा क्रिकेट खेलने पर ई-रिक्शा इनाम में दिया। इस ई-रिक्शा को चलाकर मैं अपने परिवार का भरण-पोषण करने लगा। कोरोना काल से पहले तक में हर दिन ई-रिक्शा चलाकर 1000 रुपए कमाकर अपने घर को चला रहा था।
कोरोना के बाद हालात पूरी तरह बिगड़ गए। मेरे पास अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ कर पाना भी मुश्किल हो गया। इसके बाद मैंने एक साइबर कैफे पर नौकरी का फैसला किया। यहां फिलहाल आज भी काम करता हूं।
शुरुआती दिनों में राजा बाबू शर्मा ने ई-रिक्शा चलाकर अपने परिवार का भरण-पोषण किया था। कोरोना में यह धंधा भी छिन गया था।
साल 2021 में मुझे व्हीलचेयर क्रिकेट टूर्नामेंट में खेलने का मौका मिला। इसके बाद से मैं लगातार उत्तर प्रदेश के लिए खेल रहा हूं। साथ ही देश के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेल रहा हूं। मैं फिलहाल उत्तर प्रदेश व्हील चेयर क्रिकेट टीम के साथ ही भारतीय नेशनल व्हील चेयर क्रिकेट टीम का भी सदस्य हूं।
फिर भी मेरे आर्थिक हालत ठीक नहीं हैं। क्योंकि सरकार के स्तर पर हमें किसी तरह की कोई मदद नहीं मिल रही है। हालांकि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड द्वारा डिसेबल क्रिकेटर्स और व्हील चेयर क्रिकेटर्स को भी अन्य खिलाड़ियों की तरह सुविधा देने पर मंथन चल रहा है।
ऐसे में अब बस मैं यही चाहता हूं कि व्हीलचेयर क्रिकेट टूर्नामेंट को पैरालिंपिक खेलों में भी मान्यता दी जाए, जहां हम जैसे खिलाड़ी भारत के लिए मेडल जीतकर लाएं। अब यही मेरा आखिरी सपना है।
3. कबीर सिंह: सुसाइड करने का बना लिया था मन मध्यप्रदेश के रहने वाले कबीर सिंह ने बताया- बचपन में मुझे अपने दिव्यांग होने की जानकारी मिली। इसके बाद से ही जीवन मुश्किलों से घिर गया था। 2013 में एक ऐसा दौर आ गया, जब मैं सुसाइड करने का फैसला किया था।
जीवन में सब कुछ अस्त-व्यस्त हो गया। जिंदगी में एक भी उम्मीद नहीं बची थी। परिवार और दोस्तों ने मुझे संभाला। मैंने हिम्मत की और मध्य प्रदेश के लिए स्टेट और नेशनल लेवल पर खेला। टीम इंडिया के लिए इंटरनेशनल लेवल पर अपील शेयर क्रिकेट खेल रहा हूं।
कबीर सिंह ने आर्थिक तंगी से परेशान होकर सुसाइड करने का मन बना लिया था।
पहले जहां मेरे रिश्तेदार और जानकार मुझसे दूरी बनाते थे, आज हालात पूरी तरह से बदल चुके हैं। मैं चाहता हूं कि पैरालिंपिक खेलों में व्हीलचेयर क्रिकेट को भी शामिल किया जाए।
जहां हम भारत का प्रतिनिधित्व करके गोल्ड मेडल जीतकर लाएं। एक दिव्यांग व्यक्ति के लिए पैदा होने से लेकर मरने तक का हर दिन मुश्किलों से भरा होता है। उसके चलने से लेकर उसके वॉशरूम जाने तक सभी बातें सामान्य नहीं होती हैं।
इन सब समस्याओं को इग्नोर कर आज काफी दिव्यांग आगे तक बढ़ चुके हैं। आज हमारी पहचान देशभर में व्हीलचेयर क्रिकेटर के तौर पर बन गई है। यह हमारे लिए बहुत बड़ी बात है।
4. जंदेल सिंह धाकड़ : सरकार से नहीं मिल रही मदद मध्य प्रदेश व्हीलचेयर क्रिकेट टीम के सदस्य जंदेल सिंह धाकड़ ने बताया- जब मैं पैदा हुआ था तब मेरे माता पिता से रिश्तेदारों ने कहा था कि इसका जीवन कैसे आगे चलेगा ? यह किसी काम का नहीं है। परिवार पर बोझ बनकर रहेगा। आज हालात बदल गए हैं।
अब लोग हमें दिव्यांग खिलाड़ी के तौर पर पहचानने लगे हैं। फिर भी सरकार से हमें इतनी मदद नहीं मिल रही है, जितनी मिलनी चाहिए।
जंदेल सिंह अब देशभर में दिव्यांग खिलाड़ियों को एकजुट करने में लगे हैं।
ऐसे में हम दिव्यांग क्रिकेटर्स को हर संभव मदद और सुविधा उपलब्ध कराने के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं। ICC के चेयरमैन जय शाह से मुलाकात हुई है। उनसे हमने दिव्यांग क्रिकेट वर्ल्ड कप कराने की भी मांग रखी है। हमें उम्मीद है कि वे दुनिया भर के दिव्यांग खिलाड़ियों के लिए एक अच्छा फैसला लेते हुए अन्य खिलाड़ियों की तरह उन्हें भी ICC में शामिल करेंगे।
5. भरत पंवार : क्रिकेटर से पहले बना जूनियर अकाउंटेंट राजस्थान के पाली जिले के रहने वाले भरत पंवार ने बताया- मैं दो-तीन साल का था। पैरों में दिक्कत हुई थी। उस वक्त मुझे गलत टीका लग गया था। इससे मैं पोलियो का शिकार हो गया। बचपन से ठीक से नहीं चल पाता। परिवार ने इलाज की हर संभव कोशिश की।
मैं घुटनों के सहारे चलने लगा। आज तक मैं अपने पैरों पर ठीक से खड़ा तक नहीं हो पाया हूं।
पाली के भरत पंवार राजस्थान के विद्युत विभाग में बतौर जूनियर अकाउंटेंट नौकरी कर रहे हैं।
कुछ वक्त में ही मुझे समझ में आ गया था कि अब जिंदगी ऐसे ही जीनी है। मैं इज्जत के साथ जीना चाहता था। इसलिए मैंने पढ़ाई में मन लगाया और चार्टर्ड अकाउंटेंट बनने की तैयारी शुरू की।
मैंने IPCC की परीक्षा भी पास कर ली थी। तब बिजली विभाग में जूनियर अकाउंटेंट की वैकेंसी निकली और मैं पास हो गया। आज मैं राजस्थान के विद्युत विभाग में बतौर जूनियर अकाउंटेंट काम कर रहा हूं।
भरत पंवार क्रिकेट के साथ स्विमिंग और वेट लिफ्टिंग जैसे खेलों में भी अपना शानदार प्रदर्शन कर मेडल जीत चुके हैं।
भारत के हर युवा की तरह मेरे मन में भी क्रिकेट के प्रति काफी रुचि और लगाव था। मैंने सबसे पहले सामान्य युवाओं के साथ क्रिकेट खेलने की कोशिश की। लेकिन मैं उन लोगों के साथ ठीक से क्रिकेट नहीं खेल पाया।
इसके बाद मैंने दिव्यांग खिलाड़ियों के साथ क्रिकेट खेलने का फैसला किया। कुछ ही वक्त में मैं राजस्थान की व्हील चेयर क्रिकेट टीम से जुड़ा। हमने काफी टूर्नामेंट भी जीते।
राजस्थान में पारा खिलाड़ियों को काफी सुविधाएं मिलती हैं, इसलिए मैंने एथलेटिक्स में वेट-लिफ्टिंग करने का फैसला किया। धीरे-धीरे मैंने स्टेट और नेशनल लेवल पर कई मेडल भी जीते। मेरा शोल्डर इंजर्ड होने लग गया था। तब मैंने वेट लिफ्टिंग को छोड़ स्विमिंग करने का फैसला किया।
इसके बाद स्विमिंग में तीन नेशनल मेडल जीते। इसके साथ ही में व्हीलचेयर क्रिकेट में राजस्थान टीम का कप्तान भी रह चुका हूं। पिछले कुछ सालों में मेरी परफॉर्मेंस की बदौलत मुझे व्हीलचेयर इंडिया क्रिकेट टीम में शामिल भी किया गया।
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व्हीलचेयर पर करते हैं बॉलिंग, लगाते हैं चौके-छक्के: रिश्तेदार ताने मारते थे, स्कूल में बच्चों ने चिढ़ाया तो पढ़ाई छोड़ी; बोले- सोचा था सुसाइड कर लूं – Jaipur News