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विराग गुप्ता का कॉलम: वक्फ से जुड़े 5 बिंदुओं पर संवैधानिक समझ जरूरी है Politics & News

विराग गुप्ता का कॉलम:  वक्फ से जुड़े 5 बिंदुओं पर संवैधानिक समझ जरूरी है Politics & News
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4 घंटे पहले

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विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट के वकील, अनमास्किंग वीआईपी पुस्तक के लेखक

आधी रात को लोकसभा में वक्फ पर बहस के बीच वाणिज्य भवन के युद्ध कक्ष में ट्रम्प के जवाबी टैरिफ से अफसर हलाकान थे। इन्हें जोड़कर देखने से वक्फ पर हो रही सियासत की सही तस्वीर उभर सकती है। वक्फ पर विरोधाभासों को समझने के लिए इतिहास के पन्नों को थोड़ा पलटने की जरूरत है।

जब इंग्लैंड में 1215 में मैग्ना कार्टा से आधुनिक कानून के शासन का सूत्रपात हुआ, तब दिल्ली में मुस्लिम सल्तनत की स्थापना से वक्फ का आगाज हो रहा था। 15वीं सदी के पुनर्जागरण और औद्योगिक क्रांति के दम पर पश्चिम अभी तक दुनिया पर राज कर रहा है। मध्यकालीन भारत में मुगलों का राज था, लेकिन उसके 500 साल बाद भी देश औरंगजेब, राणा सांगा, मंदिर और मस्जिद की चर्चा में लीन है।

दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश के बाद 2016 में सरकार ने 6 फीसदी का गूगल टैक्स लगाया था, जिसे ट्रम्प सरकार के दबाव के बाद खत्म कर दिया गया है। एआई, डेटा सुरक्षा, साइबर अपराध, टेक कम्पनियों से टैक्स की वसूली जैसे मामलों पर कानून निर्माण के बजाय संसद में वक्फ पर हंगामे से नए भारत की चिंताजनक तस्वीर उभरती है। वक्फ से जुड़े 5 बिंदुओं को समझें :

1. धर्मनिरपेक्षता : धर्मनिरपेक्षता की आड़ में अल्पसंख्यकवाद या तुष्टीकरण से बहुसंख्यकवाद की साम्प्रदायिकता को बढ़ावा मिलता है। साल 2013 में यूपीए सरकार ने वक्फ कानून में अनेक बदलाव किए थे, जिन्हें अब मोदी सरकार बदल रही है। लेकिन अमित शाह ने लोकसभा में कहा कि वक्फ में मुतवल्ली और वाकिफ दोनों ही मुस्लिम समुदाय के होंगे। अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने भी साफ कहा है कि वक्फ में गैर-मुस्लिमों का दखल नहीं होगा।

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2. संघवाद : भूमि, मंदिर, मस्जिद, श्मशान घाट और कब्रस्तान से जुड़े मुद्दे राज्य सरकारों के अधीन आते हैं। लेकिन केंद्रीय स्तर पर 1954 में बने वक्फ कानून में संसद से 1995 और 2013 में बड़े बदलाव हो चुके हैं। वक्फ से जुड़े मामलों में केंद्रीय कानून के बावजूद राज्यों की भूमिका पुराने तरीके से बनी रहेगी। संसद ने जमींदारी प्रथा के उन्मूलन के भी कानून बनाए हैं। हाल में नए आपराधिक कानून भी बनाए हैं। इसलिए वक्फ के बदलावों को संघवाद के खिलाफ बताना संविधान की अवसरवादी व्याख्या मानी जाएगी।

3. हिंदू मंदिर : इस्लाम में जकात और वक्फ को संस्थागत मान्यता मिलने से वक्फ जैसे केंद्रीय कानून की जरूरत है। तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल में हिंदू धर्मार्थ अधिनियम हैं, जो मंदिरों के प्रशासन, संपत्ति और प्रबंधन को नियंत्रित करते हैं। लेकिन समानता की बात करें तो साल 1955-56 में हिंदुओं की तर्ज पर मुस्लिमों की शादी और तलाक के लिए संसद से कानून नहीं बने थे। शाहबानो मामले में मुस्लिम महिलाओं को सुप्रीम कोर्ट से गुजारा भत्ता का अधिकार मिला, जिसे राजीव गांधी सरकार ने संसद के कानून से पलट दिया। संविधान में वर्णित समान नागरिक संहिता भी वोट बैंक की राजनीति की वजह से लागू नहीं हो पा रही। ऐसे अनेक ऐतिहासिक विरोधाभासों के बावजूद हिंदू मठ और मंदिरों के प्रशासन में पारदर्शिता और जवाबदेही से जुड़े किसी केंद्रीय कानून का भी स्वागत होना चाहिए।

4. अमानत में खयानत : 30 साल पहले राज्यसभा में विपक्ष के नेता सिकंदर बख्त ने कहा था कि वक्फ सम्पत्तियां गरीब मुसलमानों की बेवाओं, तलाकशुदा महिलाओं और यतीम बच्चों की अमानत हैं, जिनमें खयानत हो रही है। लेकिन सरकारी, ऐतिहासिक और आदिवासियों की अनुसूचित जमीनों पर वक्फ के नाम पर कब्जा करना गलत है। आजम खान ने 2014 में ताजमहल को वक्फ सम्पत्ति घोषित करने की मांग की थी। अमित शाह के अनुसार पिछले 12 सालों में वक्फ की जमीन 18 लाख एकड़ से बढ़कर 39 लाख एकड़ हो गई है। फिलहाल वक्फ की सम्पत्तियों से 200 करोड़ रु. सालाना की आमदनी हो रही है। सच्चर समिति के अनुसार पारदर्शिता बढ़ने और भ्रष्टाचार कम होने से 12 हजार करोड़ की सालाना आमदनी हो सकती है।

5. रोडमैप : 2019 में बने नागरिकता कानूनों के नियम पिछले साल लागू हुए। संसद से पारित होने के बावजूद महिला आरक्षण और डेटा सुरक्षा कानून अभी तक लागू नहीं हुए। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने कहा है कि विकसित राष्ट्र बनाने के लिए बजट का 25% स्वास्थ्य-शिक्षा पर खर्च होना चाहिए। कानून और फिर नियम लागू होने के बाद वक्फ के बेहतर प्रशासन से मुस्लिम समुदाय की तरक्की के लिए स्कूल, अस्पताल, अनाथालय और कौशल विकास केंद्र बनें तो ही सही मायने में संवैधानिक व्यवस्था मजबूत होगी।

कानून और फिर नियम लागू होने के बाद वक्फ के बेहतर प्रशासन से मुस्लिम समुदाय की तरक्की के लिए स्कूल, अस्पताल, अनाथालय और कौशल विकास केंद्र बनें। तब ही सही मायने में संवैधानिक व्यवस्था मजबूत होगी। (ये लेखक के अपने विचार हैं।)

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