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बम को डिफ्यूज करते सेवानिवृत्त ब्रिगेडियर इंद्रजीत सिंह चुघ – फोटो : फाइल
विस्तार
भारतीय सेना जॉइन किए महज सात साल हुए थे। मैं 14 इंजीनियर रेजिमेंट में तैनात था। यह रेजिमेंट श्रीनगर एयरफील्ड के पास थी। तीन दिसंबर, 1971 की शाम छह बजे अचानक पाकिस्तान के कुछ जेट आए और भारतीय वायुसेना के एयरफील्ड पर बमबारी शुरू कर दी।
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इस बमबारी ने श्रीनगर एयरफील्ड के रनवे में गड्ढे बना दिए, जिससे भारतीय वायुसेना के जेट उड़ ही नहीं पाए। हमने अपनी टीम के साथ रनवे के पास पड़े पाक के कुछ अनएक्सप्लोडिड बमों को डिफ्यूज किया और गड्ढों को ठीक करवाया। कुछ घंटे बाद भारतीय सेना के जेट्स ने उड़ान भरी और पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दिया। 13 दिन की जंग के बाद देश की जीत हुई। 1971 की जंग की कभी न भूलने वाली यादों को चंडीगढ़ सेक्टर-33 निवासी ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) इंद्रजीत सिंह चुघ ने विजय दिवस पर साझा किया।
अमर उजाला के साथ विशेष बातचीत में ब्रिगेडियर चुघ ने बताया, भारतीय सेना को पाकिस्तान के साथ जंग शुरू होने का पहले से अंदेशा था, इसलिए वे टीम के साथ एयरफील्ड के पास ही ट्रेनिंग कर रहे थे। तीन दिसंबर को पाक जेट ने बम गिराए थे, जो 500 व एक हजार पाउंड वजन के थे। पाकिस्तान का मकसद था कि श्रीनगर एयरफील्ड में रनवे और भारतीय एयरफोर्स के खड़े जहाजों को यहीं खड़े-खड़े खत्म कर दें। पाक जेट ने भारी बम शैल के जरिए रनवे पर बड़े-बड़े गड्ढे डाल दिए, जिस कारण वायुसेना के जेट उड़ ही नहीं पाए थे।
इन जेट ने कुछ टाइमर बम भी फेंके जो कुछ देर बाद फटते थे, जिन्हें अनएक्सप्लोडिड बम कहते हैं। एयरफोर्स कंट्रोल रूम से उनकी रेजिमेंट कमांडिग अफसर कर्नल एमएस कांडल के पास मैसेज आया कि दो अनएक्सप्लोडिड बम रनवेे व चार एयर ट्रैफिक कंट्रोल के पास पड़े हैं और अभी फटे नहीं है। क्योंकि इन्हें डिफ्यूज किए बिना हम अपने जेट नहीं उड़ा सकते थे। हमारी रेजिमेंट के पास ऐसे कोई विशेष उपकरण नहीं थे जिससे पाक के बमों को डिफ्यूज कर सकें। श्रीनगर एयरफील्ड में कोई बम डिफ्यूज टीम नहीं थी।
ब्रिगेडियर चुघ ने बताया कि उनकी रेजिमेंट के कमांडिंग आफिसर ने उन्हें बुलाया और कहा कि वह अपनी टीम के साथ एयरफील्ड पर जाकर इन बमों को डिफ्यूज करें। उन्होंने एक टीम बनाई। टीम में शामिल सूबेदार पीर कन्नू और हवलदार रहमान को साथ लेकर रनवे पर पहुंचे। टीम के तीनों सदस्य इधर-उधर से सामान लेकर एयरफील्ड पहुंचे और कन्फर्म किया कि छह अनएक्सप्लोडिड बम पड़े हुए थे। रात के 9:30 बज चुके थे और निर्णय लेना था कि इन बमों को यहीं फोड़ा जाए या इन्हें यहां से उठाया जाए। फिर मैंने सबसे फैसला किया कि इन्हें लिफ्ट कर रनवे से दूर ले जाएंगे और रेत के कट्टों की दीवार बनाकर इन्हें डिफ्यूज करेंगे। अगर इन बमों को वहीं डिफ्यूज करते तो रनवे को भी नुकसान होने का खतरा था।
लिफ्ट के दौरान यह बम कभी भी फट सकते थे और जवानों की जान भी जा सकती थी। उधर, एक टीम ने गड्ढों को भरने का काम शुरू किया और इधर एक-एक कर अनएक्सप्लोडिड बमों को उठाकर डिफ्यूज करना शुरू किया। इस दौरान उनकी रेजिमेंट के सीईओ भी वहां मौजूद थे। 4 दिसंबर की रात करीब 1:45 बजे बमों को डिफ्यूज कर जेट फ्लाइंग के लिए हां की गई। इसके बाद भारतीय जेट ने टेकऑफ किया और पाक को मुंहतोड़ जवाब दिया। लगातार टीम के साथ बमों को डिफ्यूज किया।
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विजय दिवस: रनवे पर गिराए बमों को फटने से पहले डिफ्यूज किया था, पूर्व ब्रिगेडियर ने सुनाई वीरता की कहानी