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इथियोपिया के ज्वालामुखी की राख कल जब पूर्व दिशा में बढ़ने लगी तो भारत में गंभीर स्थिति बन गई, क्योंकि यदि राख के कण विमानों से टकराते तो हवा में हादसे की आशंका थी। ज्वालामुखी की राख (ऐश) 45,000 फीट ऊपर तक जा रही थी, जबकि विमान इससे नीचे उड़ते हैं। भारत के सामने पहली बार ऐसे हालात बने थे, इसलिए सरकार ने रियल टाइम वोल्कैनिक ऐश रिस्पॉन्स प्रोटोकॉल सक्रिय किया।
इसमें विमानन मंत्रालय की निगरानी में एयर ट्रैफिक कंट्रोल, मौसम विभाग, एयरलाइंस और अंतरराष्ट्रीय एविएशन एजेंसियों ने साथ काम शुरू किया।
सबसे पहले एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने नोटम (नोटिस टू एयर मिशन) जारी कर एयरलाइंस को अलर्ट किया। फिर माइक्रो डिसेंट मॉडल लागू किया। इसमें कुछ विमानों को उनकी न्यूनतम उड़ान ऊंचाई से 2 से 4 हजार फीट नीचे उड़ाया गया।
दिल्ली और मुंबई स्थित फ्लाइट इन्फॉर्मेशन रीजन में हर घंटे ऊंचाई वाली हवा में राख कणों का जोखिम जांचा गया। इसके लिए IMD के लिडार स्कैन, वोल्कैनिक ऐश एडवाइजरी सेंटर और एयर स्पीड पूर्वानुमानों का हर 30 मिनट में विश्लेषण किया गया। हर 90 मिनट में विमानों को अपडेट भेजे, तब जाकर हालात काबू में आए।
माइक्रो डिसेंट मॉडल क्या है? इसमें विमान को ऐश-लेयर से दूर ले जाने के लिए ऊंचाई में बदलाव करते हैं। इसका आधार एक वैज्ञानिक जोखिम मैप है।
इससे पहले ऐसे हालात दो बार बने थे। पहली बार, ब्रिटिश एयरवेज की फ्लाइट BA-9 थी, जिसमें सभी चार इंजन ऐश-इंजेस्टन के कारण बंद हो गए थे। दूसरा, KLM-867, जिसमें इंजन क्षतिग्रस्त हुए थे।
दोनों विमान आइसलैंड और यूरोप के माउंट एटना विस्फोटों की राख से बिगड़े थे। इसी के बाद दुनिया ने वोल्कैनिक ऐश को ‘इनविजिबल हैजर्ड’ माना था और सख्त प्रोटोकॉल बनाए थे।
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वर्ल्ड अपडेट्स: इथियोपिया से आई राख के कारण भारत ने विमान 4 हजार फीट नीचे उड़ाए, हर घंटे हवा जांची
