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लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन का कॉलम: सूचनाओं के युद्ध में जीत भी अब हमारे लिए जरूरी है Politics & News

लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन का कॉलम:  सूचनाओं के युद्ध में जीत भी अब हमारे लिए जरूरी है Politics & News
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10 मिनट पहले

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लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन कश्मीर कोर के पूर्व कमांडर

ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान के 9 ठिकानों पर हमले इस तरह से किए गए थे कि सीमा पार ही नहीं, बल्कि दुनिया के देशों तक भी सशक्त संदेश पहुंचाया जा सके। लक्ष्यों का चयन, अप्रत्याशित आक्रमण और जोखिम के सटीक आकलन ने दिखाया कि भारत एक जटिल, परमाणु-युद्ध की क्षमता वाले वातावरण में भी सामरिक और ऑपरेशनल संबंधी उत्कृष्टता दिखा सकता है।

लेकिन जहां भारत ने युद्ध के मैदान को नियंत्रित किया, वहीं वह इस संघर्ष से उभरने वाले कथानक पर पूरी तरह से काबिज नहीं हो सका। पाकिस्तानी नैरेटिव ने डिजिटल और पारंपरिक प्लेटफॉर्मों पर चढ़ाई कर दी, जिससे शुरुआती धारणाएं उनके पक्ष में बन गईं। इसका कारण यह है कि किसी भी ऑपरेशन की प्लानिंग में गोपनीयता का दबाव भी बहुत होता है। पाकिस्तान पर ऐसा कोई दबाव नहीं था। उसका फोकस खुद को वि​क्टिम दिखाने पर ही था।

यह कोई नया पैटर्न नहीं है। भारत ने अकसर अपनी प्रतिक्रियाओं में संयम और रणनीतिक धैर्य दिखाया है। लेकिन आज की दुनिया में नैरेटिव का प्रभुत्व भी रणनीतिक शक्ति के लिए जरूरी है। यह अब एक सॉफ्ट कहलाने वाली वस्तु नहीं, बल्कि संघर्ष का अपना क्षेत्र है। सूचना-युद्ध को जीतना भी अब एक हुनर है।

वास्तव में ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत का सैन्य-आचरण पृथक से अध्ययन का विषय होना चाहिए। इसके माध्यम से हमने गैर-परम्परागत लॉन्च टाइमिंग्स और एक्सेस रूट्स के जरिए शत्रु को सामरिक रूप से हतप्रभ कर दिया था।

हमने खुफिया सूचनाओं का प्रभावी ढंग से लाभ उठाया और उन लक्ष्यों पर हमला किया, जो प्रतीकात्मक और रणनीतिक महत्व के थे। ऐसा करके पाकिस्तान के डीप-स्टेट और राजनीतिक नेतृत्व को संकेत दे दिया गया कि भारत की रेड-लाइंस अब केवल कागजी नहीं हैं।

इसके अलावा भारत ने अंतरराष्ट्रीय-समुदाय में अपने मित्रों और विरोधियों दोनों तक ही अपनी क्षमताओं का संदेश पहुंचाया। अमेरिका और फ्रांस ने इस बात को स्वीकारा कि भारत की यह प्रतिक्रिया जायज थी। तुर्किये और मलेशिया के विरोध के स्वरों को अधिक महत्व नहीं मिला।

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हालांकि अमेरिका के लिबरल मीडिया ने हमारा समर्थन नहीं किया, जैसा कि अपेक्षित भी था। लेकिन अमेरिकी सैन्य पत्रिकाओं- जिनमें प्रतिष्ठित ‘वॉर ऑन द रॉक्स’ जर्नल भी शामिल है- ने भारत के सैन्य अभियानों की यथार्थवादी सराहना की। इन संकेतों के साथ वैश्विक जनमत की आम सहमति और खुले स्रोत के सूचना प्रवाह को आकार देने की आवश्यकता थी। यहां हमें आत्मनिरीक्षण करना चाहिए।

इस अनुभव से यह बात उजागर होती है कि हमें राष्ट्रीय स्ट्रैटेजिक कम्युनिकेशन पर एकाग्र एक समर्पित, वैधानिक निकाय की आवश्यकता है। यह एक नागरिक-सैन्य-मीडिया इंटरफेस होगा, जो अलग-थलग नहीं होकर भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा तंत्र के एक हिस्से के रूप में काम कर सकता है।

इसमें विदेश मंत्रालय, रक्षा, गृह और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के प्रतिनिधियों सहित सूचना-युद्ध में अनुभव रखने वाले वरिष्ठ सैन्य अधिकारी, मीडियाजन, डिजिटल प्लेटफॉर्म, संज्ञानात्मक मनोविज्ञान और व्यवहार विज्ञान के विशेषज्ञ, डेटा वैज्ञानिक, एआई विशेषज्ञ और डिजिटल निगरानी पेशेवर, रणनीतिक मामलों की जानकारी रखने वाले शिक्षाविद शामिल हो सकते हैं। साथ ही इसका राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय (एनएससीएस) के साथ स्थायी सम्पर्क होना भी आवश्यक होगा।

ध्यान रहे कि इसका उद्देश्य एक प्रचार-मशीन बनाना नहीं, बल्कि वास्तविक तथ्यों के प्रसार का एक मैकेनिज्म बनाना होगा- जो पुख्ता नैरेटिव गढ़ सके, गलत सूचनाओं का मुकाबला कर सके और समय के साथ अपना एक प्रभाव बनाने में सक्षम हो। इसे रियल टाइम में सूचना से जुड़े खतरों की निगरानी करनी चाहिए, मैसेजिंग की रणनीतियों पर सलाह देनी चाहिए और केवल प्रतिक्रिया में नहीं, बल्कि पहले से ही मल्टी-प्लेटफॉर्म कैम्पेन तैनात करने चाहिए।

भारत में डिजिटल क्रिएटर्स, फिल्म निर्माताओं और कंटेंट रणनीतिकारों का भी एक जीवंत समूह है, जिन्हें संकट के समय में शामिल किया जा सकता है। 2022 के बाद से यूक्रेन के शानदार सूचना अभियान से मिलने वाले सबक स्पष्ट हैं। रणनीतिक संचार शांति के समय में बनाई जाने वाली विलासिता नहीं है।

यह एक युद्ध-क्षमता है, जिसे संकट के समय उत्तरदायी, तैयार, पूर्वाभ्यास से युक्त और संसाधनों से लैस होना चाहिए। याद रखें कि आधुनिक वॉरफेयर के पांच डोमेन- भूमि, समुद्र, वायु, अंतरिक्ष और साइबर में अब एक छठा डोमेन भी जुड़ गया है : नैरेटिव।

याद रखें कि आधुनिक वॉरफेयर के पांच डोमेन- भूमि, समुद्र, वायु, अंतरिक्ष और साइबर में अब एक छठा डोमेन भी जुड़ गया है : नैरेटिव। हम इसमें मात नहीं खा सकते। स्ट्रैटेजिक-कम्युनिकेशन मौजूदा दौर की बड़ी जरूरत बन चुका है। (ये लेखक के अपने विचार हैं।)

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