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लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन का कॉलम: एक नई राजनीति को गढ़ रहे  हैं युवा और जेन-जी वोटर्स Politics & News

लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन का कॉलम:  एक नई राजनीति को गढ़ रहे  हैं युवा और जेन-जी वोटर्स Politics & News

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3 घंटे पहले

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लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन कश्मीर कोर के पूर्व कमांडर

न्यूयॉर्क से वर्जीनिया तक के चुनावों में युवा मतदाताओं द्वारा समावेशिता और नीति-आधारित राजनीति को अपनाना सांस्कृतिक विभाजन के दौर को चुनौती दे रहा है। जब जोहरान ममदानी ने न्यूयॉर्क सिटी के मेयर का चुनाव जीता तो इसके मायने एक स्थानीय चुनाव से कहीं अधिक थे।

इसमें एक पीढ़ीगत बदलाव था- क्रोध-आधारित राजनीति से समावेशिता, सहानुभूति और सुशासन की ओर। इसने एक नई राजनीतिक ऊर्जा का संकेत दिया है। अमेरिका में जेन-जी और युवा मिलेनियल्स चुनावी परिणामों को नए सिरे से गढ़ रहे हैं।

रिपोर्ट बताती हैं कि वे पार्टी और विचारधारा से कम, रोजमर्रा के मुद्दों से अधिक प्रभावित होते हैं- जैसे किराया दरें, छात्र ऋण, स्थिर वेतन और कॉस्ट ऑफ लिविंग। ममदानी ने अपने प्रचार-अभियान में इन चिंताओं पर बखूबी ध्यान दिया। इस पीढ़ी की मूल्य प्रणाली अलग है।

इसमें दिखावे के बजाय प्रामाणिकता, बयानबाजी के बजाय सामाजिक न्याय और सहानुभूति शामिल है। नेपाल से बांग्लादेश और मेडागास्कर तक दुनिया के लोकतंत्रों में युवाओं में यही अंडर-करंट देखा जा रहा है- जहां वे पारदर्शिता, समावेशिता और निर्णय-निर्माण में भागीदारी मांग रहे हैं।

देखें तो ममदानी की जीत महज जनसांख्यिकीय से मिला फायदा नहीं, बल्कि एक ऐसे नेतृत्व की चाहत को दर्शाती है, जिसमें मूल्यों का समावेश हो। यह दिखाती है कि युवा वोटरों को सहानुभूति और डिलीवरी- दोनों की अपेक्षा रखने वालों के तौर पर देखा जाना चाहिए।

ये सच है कि बीते दशक में दुनिया दक्षिणपंथ की ओर झुकी दिखी है- लोकलुभावन राष्ट्रवाद, मजबूत नेताओं की राजनीति और सांस्कृतिक ध्रुवीकरण। फिर भी 2025 में अनेक अमेरिकी चुनावों के परिणाम बताते हैं कि संतुलन का कांटा फिर केंद्र की ओर खिसक रहा है।

मेयर से गवर्नरों के पद तक डेमोक्रेट्स ने कई प्रांतों और शहरों में जीत दर्ज की है। वर्जीनिया में भारतवंशी गजाला हाशमी लेफ्टिनेंट गवर्नर चुनी गईं। गवर्नर पद पर भी डेमोक्रेट्स ने कब्जा जमाया। न्यू जर्सी और कैलिफोर्निया में भी प्रगतिशील उम्मीदवार पकड़ मजबूत रखने में सफल हुए।

इस सब में जो बात उभरकर सामने आती है वह सिर्फ पार्टी प्रदर्शन नहीं, बल्कि उसके पीछे का पैटर्न है- समावेशी संदेश, युवा उम्मीदवार और आक्रोश के बजाय असल मुद्दों पर केंद्रित प्रचार। ये परिणाम संकेत देते हैं कि शहरी और उपनगरीय मतदाता तमाशे के बजाय वास्तविक मूल्यों को तरजीह दे रहे हैं।

इन परिणामों को स्वाभाविक तौर पर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की हो-हल्ले, ध्रुवीकरण, पहचान संबंधी प्रतिशोध के नैरेटिव और सांस्कृतिक टकराव वाली राजनीतिक शैली का जवाब भी माना जा सकता है। विविधता वाले युवाओं से भरे न्यूयॉर्क जैसे शहरों के लिए तो यह व्याख्या तर्कपूर्ण लगती है। लेकिन अब भी इसे देशव्यापी जनादेश नहीं माना जा सकता।

अमेरिकी राजनीति के संरचनात्मक विभाजनों को महज एक चुनाव नहीं मिटा सकता। हां, ये परिणाम अपेक्षाओं और लहजे में आ रहे पीढ़ीगत बदलावों की शुरुआत को जरूर बताता है। विभाजनकारी भूख घटती दिख रही है और उद्देश्य और समावेशिता की खोज उसकी जगह ले रही है। लेकिन ये बदलाव सतत रहेगा या नहीं, यह इस पर निर्भर करता है कि दोनों पार्टियां कैसे खुद को बदलती हैं और जेन-जी का जुड़ाव कितना टिकाऊ रहता है।

ममदानी की जीत की असली कहानी नेतृत्व में है। उनका प्रचार वैचारिक नाटकीयता नहीं, ठोस नीति पर केंद्रित रहा। इसने दिखाया कि आज की राजनीति में लाभ उनका होता है, जो भरोसे के साथ व्यावहारिक क्रियान्वयन को जोड़ सकते हैं।

नस्ल और धर्म की सीमाओं से परे सामने आया उनका जुड़ाव न्यूयॉर्क के वोटरों की विविधता के अलावा उस पीढ़ी की परिपक्वता को भी बताता है, जो खुद को अलग-थलग मानने से इनकार करती है। नेतृत्व की शांत, भागीदारीपूर्ण और नीति-आधारित यह शैली आने वाले वर्षों में शहरी शासन का मॉडल बना सकती है। लेकिन बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या यह मॉडल महानगरों से परे, उपनगरों और ग्रामीण अमेरिका तक भी फैल सकता है, जहां ट्रम्पवाद की अपील अब भी मजबूत है?

भारत के लोगों के लिए भी संकेत स्पष्ट है : युवा पीढ़ी हर जगह ऐसी राजनीति पर जोर दे रही है, जिसमें भागीदारी को दिखावे से ऊपर रखा जाता है। काठमांडू, ढाका, एंटानानारिवो हो या न्यूयॉर्क, युवा ऐसे नेता चाहते हैं- जो वास्तविक मुद्दों पर बात करें, वैचारिक हठधर्मिता पर नहीं।

युवा वोटरों ने सियासत का नया ककहरा रचा है, जो सहानुभूति, व्यावहारिकता और वैश्विक जागरूकता से परिभाषित है। यह क्रांति से अधिक एक चेतावनी है कि राजनीति पहले शहरों में करवट लेती है, फिर इसकी गूंज बाहर फैलती है।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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