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रोहतक के गांव मदीना में हंस दास अपनी पत्नी और मां के साथ।

हरियाणा के रोहतक में 20 साल से रह रहे हंस दास को अब पाकिस्तान भेजे जाने का डर सता रहा है। उनका कहना है कि वह पाकिस्तान में भारी प्रताड़ित और जलील होने के बाद परिवार के साथ भारत आए थे। अब यहां की नागरिकता भी मिल गई है, लेकिन जिन्हें नागरिकता नहीं मिली
.
हंस दास ने बताया है कि उनके साथ बहुत अत्याचार होते थे। स्कूल में जमीन पर बैठाते, कलमा पढ़वाते, मुस्लिम बनने का दबाव डालते थे। नमाज पढ़ने नहीं आई तो कांटेदार डंडे से पीटा। टीचर हिंदू नाम नहीं लेना चाहता था, इसलिए लक्ष्मण की जगह उसने लश्कर नाम लिख दिया।
उन्होंने कहा –
मैं हिंदुओं से प्रार्थना करना चाहता हूं कि एकता बनाए रखो। जो लोग पहलगाम तक घुसकर हिंदुओं के खिलाफ आतंक फैला सकते हैं, इसी से अंदाजा लगाओ कि वे पाकिस्तान में रह रहे हिंदुओं के साथ क्या करते होंगे।

रोहतक के गांव मदीना में हंस दास अपनी मां, पत्नी और 5 बच्चों के साथ रहते हैं।
हंस दास ने पाकिस्तान को लेकर ये बातें बताईं…
- हिंदू हैं, इसलिए पाकिस्तान छोड़ना पड़ा: पंचर की दुकान चलाने वाले हंस दास ने बताया- मेरा परिवार 23 जून 2005 को पाकिस्तान छोड़कर रोहतक पहुंचा था। हम हिंदू हैं, इसलिए पाकिस्तान में हम पर अत्याचार होते थे। यही कारण रहा कि हमें यहां आना पड़ा। वहां हमारी जमीन थी, वह भी छोड़ दी।
- स्कूल में काफी भेदभाव हुआ: उन्होंने बताया- अत्याचार कुछ इस तरह के थे कि मैं जब स्कूल जाता था तो शिक्षक कहते थे कि कलमा पढ़ो, तभी तुम्हें पढ़ाया जाएगा। मुसलमान बन जाओ। स्कूल में सभी बच्चे सीट पर बैठते थे, मुझे जमीन पर बैठाया जाता था। मेरे साथ इतना भेदभाव होता था।

- नमाज नहीं पढ़ी तो कांटेदार डंडे से पीटा: हंस दास बताते हैं- जब मैं छोटा था तो मुझे नमाज पढ़ने नहीं आती थी। तब मुझसे काजी करते थे कि नमाज पढ़ो। मैंने कहा कि मुझे नमाज पढ़नी नहीं आती। इस पर उन्होंने कहा कि कोई हिंदू-विंदू नहीं है। फिर वह मुझे पकड़कर मस्जिद ले गए। वहां उन्होंने मुझे कांटेदार डंडे से पीटा, जिससे मेरा शरीर लहूलुहान हो गया। इसके बाद मैं भी नमाजियों की लाइन में बैठ गया और उनकी तरह ऊपर-नीचे होता रहा। मेरे पास और कोई चारा नहीं था।
- भाई का नाम बदल दिया: वह कहते हैं- मेरे बड़े भाई का नाम लश्कर दास है। जब वह पैदा हुआ तो उसका नाम लक्ष्मण दास रखा गया था, लेकिन स्कूल में उसका नाम बदल दिया गया। उसका जो टीचर था, उसकी सोच बुरी थी। वह कहता था कि मैं हाजिरी लेते हुए हिंदू नाम नहीं बोल सकता। इसलिए, मैं इसका नाम लक्ष्मण की जगह लश्कर कर रहा हूं।
- हरियाणा से पहुंचे मुस्लिमों ने मदद की: हंस दास ने बताया- कुछ मुस्लिम यहां रोहतक से पाकिस्तान पहुंचे थे। वे हरियाणवी बोलते थे और हमारा बहुत सहयोग करते थे। वे कहते थे कि जब बंटवारे के समय मार-काट हुई थी, उस समय कुछ हिंदुओं ने हमारा सहयोग कर ट्रेन में चढ़ाया था। हमारे ऊपर वह एहसान है। अब हमारे बच्चे बड़े हो गए हैं। वे इस एहसान को नहीं मानते, इसलिए आप या तो मुस्लिम बन जाओ या फिर यहां से चले जाओ।
- मुस्लिम व्यक्ति ने आते-आते धमकी दी: हंस दास ने कहा- जब हम वहां से निकले तो लोग पूछने लगे कि कहां जा रहे हो? इस पर हमने कहा कि मदीना जा रहे हैं। उन्होंने समझा कि मक्का-मदीना जा रहे हैं। जब लास्ट में हम बस में बैठने लगे तो एक व्यक्ति भागता हुआ आया कि आप लोग कहां जा रहे हो? तुम जहां भी जा रहे हो, वहां भी एक दिन मुसलमानों का राज आएगा।

- हमारी बहन-बेटी सेफ नहीं थी: हंस दास कहते हैं- आज कल तो सोशल मीडिया पर सब दिख जाता है, लेकिन जब हम 2005 में भारत आए थे तब सोशल मीडिया भी नहीं था। उस समय का अत्याचार तो कहीं दिखता भी नहीं था। हमारी बहन-बेटी सेफ नहीं थी। 8 साल की बेटी को उठाकर ले जाएंगे और कहेंगे कि मुस्लिम हो गई। जबकि, बच्ची को तो धर्म का पता भी नहीं होता। वे लोग उससे शादी कर लेते थे।
- स्कूल में कश्मीर फंड लेकर आतंक फैलाया जाता है: हंस दास ने बताया- हम जब स्कूल में पढ़ते थे तो हमसे फीस के साथ कश्मीर फंड लिया जाता था। डॉक्टरों से भी कश्मीर फंड लिया जाता था। उस फंड से कश्मीर में आतंक फैलाया जाता है। 2007 में मेरा पासपोर्ट एक्सपायर हो गया तो मैंने SP से कहा कि मैं पाकिस्तान का पासपोर्ट नहीं बनवाउंगा। हमारे पैसों से ही पाकिस्तान आतंकवादियों को फंडिंग करता है और भारत में आतंक फैलाता है।
10 परिवारों के 100 लोग भारत आए हंस राज ने बताया है कि 2005 में 10 परिवारों के 100 सदस्य भारत आए थे। इनमें से 5 परिवार रतिया फतेहाबाद, 4 काहनौर व एक मदीना में आ गया। 2019 में जब CAA कानून आया, जिसमें उन्हें भारत की नागरिकता मिल गई। काहनौर में 10 लोगों को नागरिकता मिल चुकी है। फतेहाबाद में 33 में से 6 को मिली, बाकी को जल्दी मिल जाएगी। ऐलनाबाद में 450 में से 150 को नागरिकता मिल चुकी है। हमारे पास अब सारे दस्तावेज हैं।


रोहतक में हंस दास की पंचर की दुकान है। इससे ही उनके परिवार का गुजारा होता है।
पंचर की दुकान लगाकर गुजारा कर रहे उन्होंने कहा कि जब परिवार भारत आए थे तो 45 दिन का वीजा लेकर आए थे। उसके बाद वीजा के दिन बढ़वाते गए। हमें नियम पता था कि 12 साल रहने के बाद ही भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं। इसके तहत हमने आवेदन किया और हमें नागरिकता मिल गई थी। अब यहां दिहाड़ी मजदूरी और पंचर की दुकान चलाकर अपना गुजारा कर रहे हैं।
भारत स्वर्ग लग रहा, लेकिन भय भी है हंस दास बताते हैं कि पाकिस्तान से यहां आए तो अब यह जगह हमें स्वर्ग लगती है। अब तक किसी तरह की कोई परेशानी भी नहीं हुई है। हालांकि, पहलगाम हमले के बाद मन में भय जरूर है कि कहीं सरकार कोई ऐसा कदम न उठाए जिससे प्रताड़ना झेलकर आए हिंदुओं को फिर से नर्क में शरण लेनी पड़े।
उन्होंने कहा कि जब 1947 में मारकाट हुई थी, तब मेरे दादा 4 भाई थे। उनमें से दो भारत आ गए और 2 पाकिस्तान में ही रह गए। हालांकि, चिट्ठी और फोन के जरिए बात होती रहीं। यहां आने के बाद उनकी शादियां यहीं पर हुईं। वे भारतीय नागरिक हैं। मेरी भी शादी यहीं हुई है। मेरे 5 बच्चे हैं। मेरे भाई और बहन की शादी भी यहीं पर हुई है।
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