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- Ruchir Sharma’s Column: The Strength Of Manufacturing Depends On Many Things
रुचिर शर्मा ग्लोबल इन्वेस्टर व लेखक
जहां एक तरफ इस पर चर्चाएं चल रही हैं कि क्या अमेरिका अपने मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को मजबूत बनाने के लिए डॉलर का अवमूल्यन करने के लिए तैयार है या नहीं, यह नोट किया जाना चाहिए कि डॉलर दुनिया की सबसे मजबूत मुद्रा नहीं है और दशकों से ऐसा नहीं रहा है। यह खिताब स्विस फ्रैंक के नाम है।
स्विस फ्रैंक पिछले 50 वर्षों, 25 वर्षों, 10 वर्षों और 5 वर्षों में शीर्ष प्रदर्शन करने वाली मुद्रा रही है। वह पिछले साल भी शीर्ष के करीब रही थी, जब कुछ अन्य संकटग्रस्त मुद्राओं ने भी डॉलर के मुकाबले बेहतर वापसी की थी। लेकिन जहां तक टिकाऊपन का सवाल है तो कोई भी स्विट्जरलैंड के फ्रैंक का मुकाबला नहीं कर सकता।
फिर भी स्विट्जरलैंड इस धारणा को खारिज करता है कि एक मजबूत मुद्रा किसी देश के निर्यात को गैर-प्रतिस्पर्धी बनाकर उसके व्यापारिक कौशल को कमजोर कर देती है। उलटे उसके निर्यात में वृद्धि हुई है। उसकी जीडीपी (75%) और वैश्विक निर्यात (लगभग 2%) में उसका योगदान ऐतिहासिक उच्च स्तर के करीब है।
वास्तव में, मुद्राओं के मूल्यांकन को लेकर वैश्विक चर्चाएं अनावश्यक रूप से उन्मादग्रस्त हो गई हैं, जबकि यह किसी देश की प्रतिस्पर्धी स्थिति को आकार देने वाले कई फैक्टर्स में से एक भर ही है। जर्मनी और जापान के स्वर्णयुग वाले दिनों की तरह स्विट्जरलैंड ने भी ऐसी उच्च गुणवत्ता वाली वस्तुओं और सेवाओं के लिए प्रतिष्ठा हासिल की है कि दुनिया मेड इन स्विट्जरलैंड का लेबल देखते ही करंसी प्रीमियम का भुगतान करने को तैयार हो जाती है।
हालांकि स्विस बैंक अवैध सम्पत्तियों के एक आश्रय के रूप में बदनाम हैं, लेकिन स्विट्जरलैंड की अर्थव्यवस्था ने लंबे समय से असाधारण गतिशीलता और प्रतिस्पर्धी रेंज दिखाई है। एक दशक से भी अधिक समय से स्विट्जरलैंड ने संयुक्त राष्ट्र की सबसे इनोवेटिव अर्थव्यवस्थाओं की रैंकिंग में अपना दबदबा बनाए रखा है।
वह इनोवेशन में बड़े पैमाने पर संसाधन लगाता है- उदाहरण के लिए व्यावहारिक विश्वविद्यालयीन शिक्षा और आर-एंड-डी के माध्यम से। वह प्रति कार्य-घंटे पर 100 डॉलर से अधिक जीडीपी उत्पन्न करता है- जो दुनिया की शीर्ष-20 में किसी भी अन्य अर्थव्यवस्था की तुलना में अधिक है। उसकी विकेंद्रीकृत राजनीतिक और आर्थिक प्रणाली छोटे उद्यमों को प्रोत्साहित करती है, जिनका स्विस कंपनियों में 99% से अधिक योगदान है। फार्मास्यूटिकल्स से लेकर लग्जरी सामानों तक में प्रतिस्पर्धी व्यवसायों में भी उसकी बड़ी हिस्सेदारी है।
हार्वर्ड की ग्रोथ लैब ने निर्यात की जटिलता के लिए स्विट्जरलैंड को शीर्ष 20 अर्थव्यवस्थाओं में पहला स्थान दिया है। यह निर्यात की जाने वाली वस्तुओं को उत्पादित करने के लिए आवश्यक उन्नत कौशल का एक माप है। उसके निर्यात में चॉकलेट और घड़ियों से लेकर दवाइयां और रसायन तक सब शामिल हैं। यह इस धारणा को झुठलाता है कि मजबूत मुद्राएं कारखानों पर ताले लगा देती हैं।
वास्तव में, जीडीपी के 18% के साथ स्विट्जरलैंड का मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर विकसित अर्थव्यवस्थाओं में सबसे बड़ा है। उसके आधे से अधिक निर्यात हाई-टेक हैं- जो अमेरिका, जर्मनी या जापान के स्तर से दोगुने से अधिक हैं।
चूंकि उन्नत वस्तुएं अधिक महंगी हैं, इसलिए उसने 1980 के दशक की शुरुआत से ही हर साल उसके चालू खाते को सरप्लस में रखने में मदद की है, और यह तब से ही जीडीपी के औसतन 4% से अधिक रहा है। स्विट्जरलैंड ने चुपचाप ही एक सदाबहार-अर्थव्यवस्था बना ली है। चाहे डॉलर बढ़ रहा हो या गिर रहा हो, और चाहे वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी में हो या सुधार में, स्विस फ्रैंक लगातार बढ़ता रहा है।
कई नीति-निर्माता पूर्वी एशियाई अर्थव्यवस्थाओं के बारे में सोचते हैं कि उन्होंने समृद्धि पाने के लिए अपनी मुद्रा के अवमूल्यन का रास्ता अपनाया है। ये सच है कि कम मूल्यांकित विनिमय दरों ने दक्षिण कोरिया से लेकर चीन तक की निर्यात-मैन्युफैक्चरिंग पाॅवरहाउस के रूप में तेजी से बढ़ने में मदद की है। लेकिन बुनियादी ढांचे में निवेश और विदेशी पूंजी के लिए खुलेपन सहित दूसरे फैक्टर्स की भी इसमें भूमिका है।
पिछले दशक में, निर्यात जटिलता के लिए भारत की हार्वर्ड ग्रोथ लैब रैंकिंग दुनिया में लगभग 15 स्थान ऊपर चढ़कर 44वें स्थान पर पहुंच गई, लेकिन वैश्विक माल-निर्यात में उसका हिस्सा 1.8% के आसपास स्थिर रहा है। प्रतिभाओं के पलायन और इनोवेशन में अपर्याप्त निवेश भी अहम फैक्टर्स हैं। भारत में आर-एंड-डी पर खर्च जीडीपी का केवल 0.65 प्रतिशत है, स्विट्जरलैंड इससे पांच गुना अधिक खर्च करता है।
- जर्मनी और जापान की तरह स्विट्जरलैंड ने भी ऐसी उच्च गुणवत्ता वाली वस्तुओं और सेवाओं के लिए प्रतिष्ठा हासिल की है कि दुनिया मेड इन स्विट्जरलैंड का लेबल देखते ही करंसी प्रीमियम का भुगतान करने को तैयार हो जाती है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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रुचिर शर्मा का कॉलम: मैन्युफैक्चरिंग की मजबूती कई बातों पर निर्भर करती है