[ad_1]
- Hindi News
- Opinion
- Ruchir Sharma’s Column The Increase In The Number Of Billionaires Can Also Be A Warning Signal
रुचिर शर्मा ग्लोबल इन्वेस्टर व बेस्टसेलिंग राइटर
हर साल मैं यह देखने के लिए फोर्ब्स की फेहरिस्त का विश्लेषण करता हूं कि किन देशों में अरबपतियों की सम्पत्ति उनके देश की जीडीपी के हिस्से के रूप में बढ़ रही है। या किन देशों में सम्पत्ति अरबपतियों के पारिवारिक साम्राज्य में केंद्रित होकर रह जा रही है या उन बुरे उद्योगों में तब्दील हो रही है, जो उत्पादकता से अधिक भ्रष्टाचार के लिए जाने जाते हैं। जिन देशों में इस तरह के मामले सबसे ज्यादा मिलते हैं, वहां पूंजीवाद-विरोधी विद्रोहों का खतरा भी सबसे अधिक रहता है।
इस साल चेतावनियों के संकेत स्वीडन की ओर इशारा कर रहे हैं। भले ही कई प्रगतिशील लोग स्वीडन को एक समाजवादी-स्वर्ग के तौर पर देखते हों, लेकिन वहां अरबपतियों की संपत्ति जीडीपी के 31% तक हो गई है। यह 20 बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सर्वाधिक है।
आज स्वीडन में 45 अरबपति हैं, जो अमेरिका से प्रति व्यक्ति पैमाने पर डेढ़ गुना अधिक हैं। अब तक के सबसे धनी अमेरिकी जॉन डी. रॉकफेलर हैं, जिनकी सम्पत्ति 1910 के आसपास जीडीपी की 1.5% से अधिक थी। आज किसी अमेरिकी के पास इतनी दौलत नहीं। आज के रॉकफेलर स्वीडन में हैं, जिनमें से सात की सम्पत्ति जीडीपी के हिस्से में रॉकफेलर से अधिक है।
एक कार्यशील अर्थव्यवस्था से अरबपतियों की संतुलित श्रेणी निर्मित होती है, जिसमें रियल एस्टेट और कमोडिटी जैसे सेक्टरों की ‘बैड वेल्थ’ की तुलना में टेक और मैन्युफैक्चरिंग जैसे उद्योगों की ‘गुड वेल्थ’ अधिक होती है। ऐसा नहीं है कि रियल एस्टेट और कमोडिटी सेक्टर खराब हैं। लेकिन कार या सॉफ्टवेयर जैसे सेक्टरों की तुलना में उत्पादकता में उनका कम योगदान होता है।
लेकिन स्वीडन में आज ‘गुड बिलियनेअर्स’ की संख्या ‘बैड बिलियनेअर्स’ की तुलना में आधी रह गई है। स्वीडन भले ही टेक-उद्यमियों के लिए बेहतर स्थान के तौर पर प्रसिद्ध हो, लेकिन इनमें से तीन ही फोर्ब्स की सूची में जगह पा सके हैं। अरबपतियों की सम्पत्ति में ‘गुड वेल्थ’ का हिस्सा महज 12% है, जो शीर्ष 10 विकसित देशों की सूची में तीसरा सबसे निम्नतम है।
स्वीडन ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अनियंत्रित वेलफेयर-स्टेटिज्म के अपने प्रयोग की विफलता के बाद वेल्थ-क्रिएशन को प्रोत्साहित करना शुरू किया। भारी करों के चलते वहां की मशहूर हस्तियां और उद्योगपति पलायन करने लगे।
1990 के दशक की शुरुआत में आए वित्तीय संकटों ने स्वीडन को समाजवाद के प्रति अपनी प्रतिबद्धता पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर किया। उसने उच्च आय करों से भुगतान की जाने वाली मुफ्त शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा को समाप्त नहीं किया। लेकिन धन, विरासत, निगमों और अचल संपत्ति पर करों को समाप्त या कम करते हुए कल्याणकारी राज्य का आकार छोटा कर दिया।
2000 के दशक का मध्य आते-आते वहां के सुपर-रिच पलायन नहीं कर रहे थे। उलटे वे हावी हो गए थे। स्वीडन के अरबपतियों की लगभग 70% संपत्ति विरासत (इनहेरिटेंस) से आती है, जो फ्रांस और जर्मनी के बाद तीसरी सबसे अधिक है।
स्वीडन हाल के वर्षों में अरबपतियों की संख्या में उछाल देखने वाला एकमात्र बड़ा कल्याणकारी राज्य नहीं है। फ्रांस में भी ऐसा हुआ है। लेकिन दोनों में विशेष असंतुलन है। स्वीडन में विकृत कर और ईजी-मनी (आसानी से मिलने वाला कर्ज) है।
वह वेतन की तुलना में पूंजी पर बहुत कम कर लगाता है, और कभी-कभी पूंजी पर प्रतिगामी कर लगाता है। स्वीडन ने ब्याज दरों को यूरोपीय औसत से भी नीचे रखा है। कम दरों से संपत्ति की कीमतें बढ़ती हैं, जबकि अमीरों के लिए अधिक लाभ कमाने के लिए पैसे उधार लेना आसान हो जाता है।
हाल के चुनावों में, राजनीतिक गुस्सा असमानता नहीं अप्रवासियों और अपराध पर केंद्रित रहा है। कई प्रमुख व्यवसायी अपनी संपत्ति का दिखावा करने के बजाय दान देने के लिए अधिक जाने जाते हैं। लेकिन मेरे थ्री-बिलियनेअर्स मेट्रिक्स पर स्वीडन की समग्र रैंकिंग मेरे द्वारा ट्रैक किए जाने वाले 20 देशों में सबसे खराब है, और यह अच्छा संकेत नहीं है।
मैंने 2010 में ये विश्लेषण शुरू किए थे, जब भारत में ‘बैड बिलियनेअर्स’ की बढ़ती सम्पत्ति ने वेल्थ-क्रिएशन के खिलाफ ऐसी प्रतिक्रिया को जन्म दिया, जो व्यावसायिक-गतिविधियों को रोकने के लिए पर्याप्त थी। इसके बाद वाले दशक में अरबपतियों के मेट्रिक्स पर निराशाजनक परिणाम ने दुनिया भर में विद्रोहों का संकेत दिया।
इनमें चिली में 2019 में सामाजिक-विषमता के खिलाफ बड़े पैमाने पर दंगे भड़कने से पहले और फ्रांस में 2023 में ‘टैक्स-द-रिच’ रैलियों के फैलने से पहले हुए विद्रोह शामिल हैं। पेरिस के विरोध-प्रदर्शनों में तो शीर्ष अरबपतियों को नाम लेकर निशाना बनाया गया था।
अर्थव्यवस्था में वेल्थ-क्रिएशन को प्रोत्साहित करना जरूरी तो है, लेकिन संतुलन भी आवश्यक है। अरबपतियों के हाथों में बहुत ज्यादा पैसा केंद्रित होने से राजनीतिक प्रतिरोध या नीतिगत उलटफेर का खतरा पैदा हो जाता है। (ये लेखक के अपने विचार हैं।)
[ad_2]
रुचिर शर्मा का कॉलम: अरबपतियों की संख्या बढ़ना खतरे की घंटी भी हो सकती है