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- Rukmini Banerjee’s Column The ‘impact’ Of The Improving Conditions In Education Is Now Visible
रुक्मिणी बनर्जी ‘प्रथम’ एजुकेशन फाउंडेशन से सम्बद्ध
हर साल की शुरुआत में लोग ‘असर’ (एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट) का इंतजार करते हैं। 2005 से यह रिपोर्ट ग्रामीण भारत में बच्चों की शिक्षा की मौजूदा स्थिति पर रोशनी डालती आ रही है। ‘असर’ सर्वेक्षण गांवों में किया जाता है।
भारत के प्रत्येक ग्रामीण जिले में 30 गांवों में जाकर, 20 परिवारों के बच्चों से जानकारी ली जाती है। सर्वेक्षण तीन प्रमुख सवालों पर आधारित होता है- क्या बच्चा स्कूल जाता है? क्या वह एक आसान पैराग्राफ पढ़ सकता है? क्या वह साधारण गणितीय प्रश्न हल कर सकता है? परिवारों और गांवों से एकत्र किए गए आंकड़ों से जिले की रिपोर्ट तैयार होती है।
जिलों से राज्य तथा देश की छवि बनती है। इस बार देश के लगभग सभी ग्रामीण जिलों में ‘असर’ सर्वे के दौरान साढ़े तीन लाख परिवारों के साढ़े छह लाख बच्चों से मुलाकात हुई। सर्वेक्षण सितम्बर से नवम्बर के बीच किया गया, जिसके आधार पर ‘असर’ रिपोर्ट बनी। इसका विमोचन 28 जनवरी को किया गया।
‘असर 2024’ से कई महत्त्वपूर्ण बातें सामने आई हैं। पहला, 6-14 आयु वर्ग के 98% बच्चे विद्यालय में नामांकित हैं। महामारी के दौरान चिंता थी कि बच्चे स्कूल वापस नहीं आएंगे, लेकिन हुआ इसके विपरीत। न केवल बच्चे स्कूल लौटे, बल्कि नामांकन का अनुपात भी बढ़ा। दूसरा, 2005 से आंकड़े बताते आ रहे हैं कि प्राथमिक स्कूलों में बच्चों के बुनियादी कौशल कमजोर हैं।
2010 में, कक्षा 3 में सरकारी स्कूलों में नामांकित ग्रामीण बच्चों में से केवल 17% सरल पाठ पढ़ पाने में सक्षम थे। यह आंकड़ा धीरे-धीरे बढ़कर 2018 तक 21% तक पहुंचा। महामारी के कारण स्कूल दो साल बंद रहे। जब 2022 में स्कूल दोबारा खुले, तो कक्षा 3 के बच्चों की पढ़ने की क्षमता 2010 के स्तर तक गिर चुकी थी।
यह स्कूल बंद होने का स्वाभाविक प्रभाव था। लेकिन दो साल बाद, 2024 में जब फिर से ‘असर’ सर्वेक्षण हुआ तो पाया गया कि राष्ट्रीय स्तर पर कक्षा 3 के 23.4% बच्चे सरल पाठ पढ़ पा रहे थे। गणित में सुधार देखने को मिला।
इसी तरह, यदि हम कक्षा 5 पर नजर डालें, तो 2012 में सरकारी स्कूलों के 42% ग्रामीण छात्र-छात्राएं सरल पाठ पढ़ सकते थे। 2018 तक यह आंकड़ा बढ़कर 44% हो गया। महामारी के बाद, 2022 में यह घटकर 38.5% रह गया।
अगले दो वर्षों में सुधार देखने को मिला, और 2024 तक पढ़ने की क्षमता का अनुपात बढ़कर 45% हो गया। उल्लेखनीय यह है कि 2020 से 2024 के बीच हुए इस बदलाव में सरकारी स्कूलों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
प्राथमिक कक्षा के बच्चों में हुए इस बदलाव को कैसे समझा जाए? 2010 से 2018 के बीच बुनियादी पढ़ने-लिखने के स्तर में धीरे-धीरे सुधार हो रहा था। स्कूलों में सामान्य आयु-आधारित शिक्षण प्रक्रिया के माध्यम से बच्चे आगे बढ़ रहे थे। पिछले 5-6 वर्षों में देश की परिस्थितियों और शिक्षा व्यवस्था में कई बदलाव आए हैं।
महामारी का नकारात्मक प्रभाव, स्कूलों का बंद होना, घर की आर्थिक परिस्थितियों का तनाव, बीमारी का डर आदि। 2020 में नई शिक्षा नीति एक सुनहरा अवसर लेकर आई। इस नीति के तहत पूर्व-प्राथमिक और प्राथमिक शिक्षा पर अधिक ध्यान दिया गया, जिससे लक्ष्य-उन्मुख शिक्षण को बढ़ावा मिला और बच्चों के सीखने के नए अवसर पैदा हुए।
एनईपी 2020 के तहत केंद्र और राज्य सरकारों ने बुनियादी कौशल को मजबूत करने के लिए ठोस कदम उठाए। निपुण भारत मिशन शुरू किया गया और उस पर विशेष ध्यान दिया गया। साथ ही, महामारी के दौरान घर में भी बच्चों की पढ़ाई को लेकर गतिविधियां बढ़ीं।
‘असर’ के आंकड़ों से दो बातें साबित होती हैं। पहला, जहां सरकारी तंत्र ने बुनियादी क्षमता को मजबूत करने का कार्य किया है, वहां के परिणाम बेहद आशाजनक हैं। दूसरा, जहां स्कूल और परिवार ने मिलकर काम किया, वहां बच्चों ने भी यह भरोसा दिलाया है कि वे एक-दो वर्षों में तेजी से आगे बढ़ सकते हैं।
जहां सरकारी तंत्र ने बुनियादी क्षमता को मजबूत करने का कार्य किया, वहां के परिणाम बेहद आशाजनक हैं। जहां स्कूल और परिवार ने मिलकर काम किया, वहां बच्चों ने भी भरोसा दिलाया है कि वे तेजी से आगे बढ़ सकते हैं। (ये लेखिका के अपने विचार हैं)
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