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राजदीप सरदेसाई का कॉलम: रिया ​को बदनाम करने वाले क्या अब उनसे माफी मांगेंगे? Politics & News

राजदीप सरदेसाई का कॉलम:  रिया ​को बदनाम करने वाले क्या अब उनसे माफी मांगेंगे? Politics & News

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2 घंटे पहले

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राजदीप सरदेसाई वरिष्ठ पत्रकार

पत्रकारों पर अकसर यह आरोप लगाया जाता है कि वे दूसरों से तो जवाबदेही मांगते हैं, लेकिन खुद को शायद ही कभी कठघरे में खड़ा करते हैं। जब दिल्ली हाईकोर्ट के एक जज के घर पर बड़ी मात्रा में नकदी पाई गई, तो कई टीवी एंकरों ने आक्रोश के स्वर में पूछा कि न्यायाधीशों का न्याय कौन करेगा!

लेकिन जब सीबीआई ने सुशांत सिंह राजपूत आत्महत्या मामले में क्लोजर रिपोर्ट दायर करते हुए बताया कि किसी भी तरह की गड़बड़ी का सबूत नहीं पाया गया है तो वैसा कोई आक्रोश मीडिया में नहीं पाया गया। जबकि देश जानना चाहता है कि उन लोगों की ओर से कोई माफी मांगी जाएगी या नहीं, जिन्होंने सुशांत की गर्लफ्रेंड रिया चक्रबर्ती के खिलाफ चरित्र-हनन अभियान चलाया था।

रिया तब अचानक विवादों में घिर गई थीं, जब जून 2020 में सुशांत को उनके मुंबई स्थित घर में मृत पाया गया था। इसके बाद कई हफ्तों और महीनों तक रिया और उनके परिवार को परेशान किया गया। उन पर सुशांत की रहस्यमयी मौत में शामिल होने का आरोप लगाया गया।

शुरू में प्राइम टाइम टीवी नैरेटिव ने सुझाया कि रिया और उनका परिवार सुशांत को आत्महत्या के लिए उकसाने का दोषी है। फिर दावा किया गया कि यह हत्या की साजिश थी। रिया पर सुशांत के पैसों पर नजर रखने वाली महिला होने से लेकर ड्रग-डीलर होने तक के दुर्भावनापूर्ण आरोप गढ़े गए।

उन पर काला जादू करने का इलजाम तक लगाया गया। सोशल मीडिया का हाल तो इससे भी बुरा था। रिया को मुख्य अपराधी मानकर ‘जस्टिस फॉर सुशांत’ हैशटैग से लगातार अभियान चलाया गया। कुछ भी साबित नहीं हुआ था, फिर भी रिया को गिरफ्तार कर लिया गया और एक महीने तक भायखला जेल में रखा गया।

आज लगभग पांच साल बाद रिया को निर्दोष करार दिया गया है। लेकिन उनका फिल्म करियर लगभग खत्म हो चुका है। उनके भाई एमबीए करने विदेश जाने वाले थे, लेकिन नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो की जांच ने उनके सपने को चकनाचूर कर दिया। रिया के पिता आर्मी डॉक्टर थे और उन्होंने 25 साल तक सैनिकों की सेवा की थी, लेकिन उन्हें भी नहीं बख्शा गया। एक परिवार को टीआरपी के लिए निशाना बनाया जाता रहा।

याद करें कि वह कोविड लॉकडाउन का समय था। लोग अपने घरों में कैद थे। ऐसे में जब टीवी मीडिया को उनका मार्गदर्शन करना चाहिए था, तब मीडिया के एक वर्ग ने ‘खोजी’ पत्रकारिता के नाम पर खराब तरह की जासूसी का विकल्प चुना।

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महेश भट्ट के साथ रिया की व्हाट्सएप चैट्स को सार्वजनिक कर दिया गया, ताकि एक स्तरहीन चर्चा शुरू की जा सके, जिसका सुशांत मामले से कोई ठोस संबंध नहीं था। मामले में आदित्य ठाकरे को घसीटने से लेकर दीपिका पादुकोण और करण जौहर जैसे बॉलीवुड सितारों से पुलिस पूछताछ तक, कुछ एंकरों द्वारा समाचार बुलेटिन को प्राइम टाइम रियलिटी शो बनाने का हरसंभव प्रयास किया गया था।

एक मायने में, रिया का मामला गलाकाट प्रतिस्पर्धा के दौर में न्यूज-टीवी के नैतिक रसातल में चले जाने को दर्शाता है। 1990 के दशक के मध्य में इसने एक आशाजनक शुरुआत की थी, लेकिन अब बहुत सारे चैनलों पर सनसनी और शोरगुल का आलम नजर आता है।

रिया न्यूज-टीवी के स्त्री-द्वेष की भी शिकार हुई थीं। एक स्वतंत्र युवा स्त्री को अपनी ही छवि का शिकार बना दिया गया था। सुशांत और रिया की कहानी को टीवी सोप ओपेरा के रूप में पेश किया जा रहा था। और यही मुझे अपने मूल प्रश्न पर लेकर आता है कि क्या रिया को दोषी ठहराने वालों को जवाबदेह ठहराया जाएगा? यह सिर्फ व्यक्तिगत मानहानि का मामला नहीं है।

पत्रकार- जिनमें मैं भी शामिल हूं- किसी स्टोरी की गलत रिपोर्टिंग कर सकते हैं और समय-समय पर उन्हें इसके लिए माफी मांगनी पड़ती है। लेकिन रिया का मामला सिर्फ गलत पत्रकारिता का नहीं था। यह एक असहाय युवती के जीवन और प्रतिष्ठा को नष्ट करने का जानबूझकर किया गया दुर्भावनापूर्ण प्रयास था।

उन्हें अपना पक्ष रखने का भी मौका नहीं दिया गया। मैंने अगस्त 2020 में रिया का इंटरव्यू किया था। वे शोकपूर्ण किंतु शांत थीं। यह पहली बार था जब किसी ने उनसे बात करने की कोशिश की थी। लेकिन उस इंटरव्यू के लिए भी मुझ पर बार-बार हमले किए गए।

अगर टीवी मीडिया में विश्वसनीयता को बहाल करना है तो रिया का मामला ऐसा उदाहरण बनना चाहिए, जिसे कभी नहीं दोहराया जाना चाहिए। रिया को अपने जीवन के ये पांच साल कभी वापस नहीं मिलेंगे, लेकिन वे अपनी गरिमा वापस पाने की हकदार जरूर हैं। शुरुआत के लिए उनसे बिना शर्त माफी मांगना अच्छी पहल होगी।

रिया चक्रबर्ती का मामला एक ऐसा उदाहरण बनना चाहिए, जिसे कभी नहीं दोहराया जाना चाहिए। रिया को अपने जीवन के ये बीते पांच साल कभी वापस नहीं मिलेंगे, लेकिन वे अपनी गरिमा वापस पाने की हकदार जरूर हैं।

(ये लेखक के अपने विचार हैं।)

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