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राजदीप सरदेसाई का कॉलम: क्या वाकई जम्मू-कश्मीर में हालात ‘सामान्य’ हो गए थे? Politics & News

राजदीप सरदेसाई का कॉलम:  क्या वाकई जम्मू-कश्मीर में हालात ‘सामान्य’ हो गए थे? Politics & News

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7 घंटे पहले

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राजदीप सरदेसाई वरिष्ठ पत्रकार

जम्मू-कश्मीर को लेकर होने वाली चर्चाओं में एक शब्द बार-बार सामने आता है- “सामान्य हालात’। राजनेता और विश्लेषकगण अकसर दावा करते हैं कि अब घाटी में “सामान्य हालात’ बहाल हो रहे हैं। लेकिन कड़वी सच्चाई यह है कि पिछले साढ़े तीन दशकों से कश्मीर में चाहे जो हालात रहे हों, वे “सामान्य’ तो हरगिज नहीं थे। पहलगाम में हुआ आतंकी हमला हमें एक बार फिर याद दिलाता है कि रक्तरंजित घाटी में हर बार जब उम्मीद की खिड़की खोली जाती है तो उसे दहशत के सौदागरों द्वारा फौरन बंद करा दिया जाता है।

याद करें कि अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के तुरंत बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘नए कश्मीर’ के बारे में एक सपना बुना था कि यह ‘सामान्य हालात’ की ओर एक बड़ा कदम है। वादा किया गया था कि कश्मीर में निवेश की बाढ़ आएगी, बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे का विकास होगा और उसकी हसीन वादियों की रुपहले परदे पर भी वापसी हो जाएगी। वह तेजी से नए भारत में मुख्यधारा में शामिल हो जाएगा। ये सच है कि वहां पर नई सड़कें, राजमार्ग, सुरंगें बनाई गई हैं।

लेकिन ‘सामान्य हालात’ केवल बुनियादी ढांचे के ही आसरे नहीं होते। उन हालात को भला कैसे ‘सामान्य’ मान लिया जाए, जब देश के इकलौते मुस्लिम बहुल राज्य को रातों-रात एक फरमान द्वारा विभाजित करके केंद्र शासित प्रदेश बना दिया जाता है? जब तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों को हिरासत में लेकर उनके घर में नजरबंद कर दिया जाता है? जब हजारों कश्मीरियों को कठोर कानूनों के तहत गिरफ्तार करके जेल में ठूंस दिया जाता है? जब स्कूल महीनों तक बंद रहते हैं और इंटरनेट बंद होना आम बात हो जाती है? जब हजारों सुरक्षा बल घाटी के हर कोने में घूम रहे होते हैं? जब पाकिस्तान कश्मीर में हिंसा फैलाने के लिए युवाओं को प्रशिक्षण देना जारी रखता हो?

‘सामान्य हालात’ का ढिंढोरा पिछले साल हुए चुनावों में तब भी बजाया गया था, जब लोकसभा तथा विधानसभा दोनों में पहले से अधिक मतदान हुआ। अलगाववादी समूहों द्वारा चुनावों के बहिष्कार और मतदाताओं पर दबाव बनाने का संकेत नहीं मिला। हुर्रियत कॉन्फ्रेंस को शक्तिशाली भारतीय मशीनरी ने प्रभावी रूप से कमजोर कर दिया है।

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उमर अब्दुल्ला निर्वाचित मुख्यमंत्री हैं, लेकिन यह ‘सामान्य’ कैसे हो सकता है जब मुख्यमंत्री के पास लगभग कोई अधिकार नहीं हैं- अधिकारियों की नियुक्ति या तबादले के भी नहीं। यह ‘सामान्य’ कैसे हो सकता है, जब एक अनिर्वाचित उपराज्यपाल- जिनका कश्मीर से कोई ताल्लुक नहीं है- को कानून-व्यवस्था के सभी अधिकार दे दिए गए हैं? जम्मू-कश्मीर के लोगों ने बड़ी संख्या में इस उम्मीद में मतदान किया था कि वहां होने वाले चुनाव राज्य का दर्जा बहाल करने की प्रस्तावना हैं।

लेकिन वह वादा अभी भी अधूरा है। ‘सामान्य स्थिति’ के नैरेटिव को पर्यटन में उछाल ने भी मजबूत किया। श्रीनगर के बगीचों में ट्यूलिप खिल रहे थे, पीक-सीजन में डल झील पर शिकारे और हाउस-बोट ओवर-बुक्ड थे, पहलगाम में ट्रैकिंग और गुलमर्ग में स्कीइंग पर्यटकों को आकर्षित कर रही थी। नए होटलों की योजना बनाई जा रही थी। केंद्र ने भी जम्मू-कश्मीर को एक टूरिस्ट-फ्रेंडली डेस्टिनेशन के रूप में बढ़ावा दिया था। श्रीनगर जी20 टूरिज्म समिट की मेजबानी कर रहा था। लेकिन टूरिज्म ही तो ‘सामान्य हालात’ का संकेत नहीं होता।

केंद्र ने दावा किया कि हाल के वर्षों में आतंकी हमलों में मारे गए नागरिकों की संख्या में कमी आई है। लेकिन ये आंकड़े एक भयावह सच्चाई को छिपाते हैं। जहां सशस्त्र बलों और आतंकवादी समूहों के बीच मुठभेड़ें बेरोकटोक जारी रही हैं, वहीं पुंछ-राजौरी क्षेत्र के घने जंगलों में हमले नए सिरे से बढ़े हैं। यह कैसे ‘सामान्य’ है कि आतंकवादी टारगेटेड-हमलों में लिप्त हैं? यह कैसे ‘सामान्य’ है कि कश्मीरी पंडित अभी भी अपने घरों में वापस नहीं लौट पा रहे हैं? यह कैसे ‘सामान्य’ है कि अमरनाथ यात्रा पर आतंकवादी हमले का खतरा हमेशा बना रहता है?

पाकिस्तानी नेटवर्क द्वारा समर्थित इस्लामिक आतंकवादी इस क्षेत्र में अपनी हरकतों को अंजाम देना जारी रखे हुए हैं। पाकिस्तान लश्कर-मॉड्यूल को पनाह देना जारी रखे हुए है। हाल के वर्षों में ‘हाइब्रिड’ आतंकवादियों का उदय हुआ है, जो पाकिस्तानी आतंकवादियों और स्थानीय कश्मीरियों का मिश्रण हैं। यह कैसे ‘सामान्य’ है कि घाटी के नौजवान बेरोजगारी और ड्रग्स के खतरे के बीच गोला-बारूद में सांत्वना तलाशते हैं?

  • सरकार सीमापार आतंकवाद को खत्म करने में विफल रही है। पठानकोट से पहलगाम तक- पाकिस्तान आतंक को प्रायोजित करना जारी रखे है। पाकिस्तान को अपने किए की कीमत चुकानी होगी। लेकिन भारत को भी दु:ख और गुस्से की इस घड़ी में एकजुट रहना होगा।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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