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राजदीप सरदेसाई का कॉलम: कांग्रेस पार्टी ने हरियाणा में विनेश पर दांव क्यों लगाया? Politics & News

राजदीप सरदेसाई का कॉलम:  कांग्रेस पार्टी ने हरियाणा में विनेश पर दांव क्यों लगाया? Politics & News
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8 घंटे पहले

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राजदीप सरदेसाई वरिष्ठ पत्रकार

हरियाणा की पुरुष-प्रधान राजनीति में यह नया दृश्य है। हट्टे-कट्टे जाट मर्दों से भरे एक हॉल में, एक महिला सभी के ध्यान का केंद्र हैं। ओलिम्पिक पहलवान से राजनेता बनी विनेश फोगाट भी अपनी ‘स्टार वैल्यू’ जानती हैं। उन्होंने शरद ऋतु की धूप में बड़ी भीड़ को कुछ घंटों इंतजार करवाया, लेकिन कोई भी इससे बहुत चिंतित नहीं दिखा।

बुजुर्गों से लेकर उत्साही किशोरों तक, हर कोई हरियाणा की नवीनतम ‘आइकन’ की एक झलक पाना चाहता था। कोई उनके सिर पर पारम्परिक पगड़ी बांधता है, एक सरपंच उन्हें चांदी की गदा भेंट करना चाहते हैं, अन्य सेल्फी के लिए कतार में खड़े हैं। एक छोटे-से भाषण, विजयी मुस्कान और दर्शकों की ओर हाथ हिलाते हुए विनेश अपनी अगली रैली के लिए चली जाती हैं। कुश्ती के मैदान से राजनीतिक दंगल तक की उनकी यह यात्रा बहुत फुर्तीली रही है!

पेरिस ओलिम्पिक में, विनेश ने मौजूदा चैम्पियन युई सुसाकी को हराकर सनसनी फैला दी थी, लेकिन फाइनल से पहले उन्हें विवादास्पद रूप से ‘ओवरवेट’ होने के कारण अयोग्य घोषित कर दिया गया। हरियाणा के जींद जिले के जुलाना के गेहूं और सरसों के खेत पेरिस की चमकीली रोशनियों से बहुत दूर हैं, लेकिन लड़ाई यहां भी कम चुनौतीपूर्ण नहीं।

कांग्रेस ने बीते 15 सालों से यह सीट नहीं जीती है। वास्तव में, अब तक किसी भी महिला ने यहां मुख्यधारा की पार्टी से चुनाव नहीं लड़ा है। इस जाट-बहुल निर्वाचन-क्षेत्र में विभिन्न दलों के एक दर्जन उम्मीदवार मैदान में हैं। विनेश जीतीं तो जुलाना की पहली महिला विधायक होंगी।

विनेश को चुनाव-मैदान में उतारने के कांग्रेस के फैसले ने उन्हें एक और ‘टॉकिंग-पॉइंट’ दे दिया है। हाल के वर्षों में, अधिकांश मशहूर हस्तियों ने भाजपा में शामिल होने का विकल्प चुना है। सितारे तब अधिक चमकते हैं, जब वे जीतने वाले पक्ष में होते हैं और पिछले एक दशक से हरियाणा और उसके बाहर भाजपा राजनीति की एक प्रमुख ताकत रही है।

पिछले साल ओलिम्पिक पहलवानों द्वारा भाजपा सांसद बृज भूषण शरण सिंह पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ सड़क पर विरोध-प्रदर्शन किया गया था, जिसे सत्ताधारी प्रतिष्ठान को चुनौती देने की तरह देखा गया। शायद यही वजह है कि आज विनेश को सत्ता-विरोधी नायिका के रूप में पेश किया जाता है।

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हरियाणा की सत्ता में 10 साल बिताने के बाद भाजपा भी सरकार-विरोधी लहर का सामना कर रही है। लेकिन बदलाव की हवा को लोकप्रिय भावना का प्रतिनिधित्व करने के लिए करिश्माई व्यक्तित्वों की जरूरत होती है। तो क्या कांग्रेस को अपना शुभंकर मिल गया है?

लेकिन हरियाणा के बाहर, विनेश के बारे में लोगों की राय विभाजित है। भाजपा की सोशल मीडिया सेना नियमित रूप से उन पर निशाना साधती है, खेल के प्रति उनकी प्रतिबद्धता पर सवाल उठाती है और उन पर आरोप लगाती है कि वे विरोध-प्रदर्शनों का इस्तेमाल अपने राजनीतिक करियर की सीढ़ी के रूप में कर रही हैं।

उन्होंने पेरिस में पदक नहीं जीता था। क्या उन्हें निर्धारित वजन-वर्ग में बने रहने की अपनी विफलता को स्वीकार नहीं करना चाहिए, बजाय इसके कि वे किसी और पर इसका दोष मढ़ दें? आखिरी मिनट में प्रतिस्पर्धा से नाटकीय ढंग से बाहर होने ने विनेश की जीवन-कथा को और दिलचस्प बना दिया है।

‘दंगल’ जैसी बड़ी फिल्म ने फोगाट परिवार के नाटकीय उत्थान को दर्शाया था, लेकिन राजनीति खेल और सेल्युलाइड से कहीं ज्यादा कठोर हो सकती है। राजनीतिक करियर चुनकर, विनेश ने ओलिम्पिक पोडियम पर चढ़ने के अपने सपने को त्याग दिया है।

हरियाणा के राज-समाज में पुरुष हमेशा पहली पायदान पर रहते हैं। यह ऐसा राज्य है, जिसने 1966 से केवल 87 महिला विधायकों को चुना है। पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी शैलजा से पूछें, जो आलाकमान के साथ निकटता के बावजूद खुद को हाशिए पर पाती हैं। या किरन चौधरी, जिन्हें हमेशा बंसीलाल की ‘बहू’ के रूप में देखा जाता रहा, लेकिन कभी उनकी उत्तराधिकारी नहीं माना गया। या फिर दिवंगत सुषमा स्वराज, जो केंद्र में भाजपा की अग्रणी नेता बन सकती थीं, लेकिन अपने गृह राज्य में शीर्ष पर पहुंचने के लिए संघर्ष करती रहीं।

यही कारण है कि विनेश का राजनीति के मंच पर आना बताता है कि बदलाव की हवा बह रही है। पेरिस में दो पदक जीतने वाली मनु भाकर जिस आत्मविश्वास से मीडिया कार्यक्रमों में जाती हैं, वो दर्शाता है कि पीढ़ीगत बदलाव पारंपरिक रूढ़ियों से बाहर आ रहा है। अगर विनेश जुलाना से पहली महिला विधायक बनती हैं, तो वे हरियाणवी-महिलाओं के सामने एक बानगी साबित हो सकती हैं। (ये लेखक के अपने विचार हैं)

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