[ad_1]
- Hindi News
- Opinion
- Rajdeep Sardesai’s Column The Break In The ‘India’ Alliance Tells Us A Lot
5 घंटे पहले

- कॉपी लिंक
राजदीप सरदेसाई वरिष्ठ पत्रकार
जून 2023 में विपक्ष के एक वरिष्ठ नेता ने कहा था, मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा के खिलाफ एक महागठबंधन हम चाहते तो हैं, लेकिन मुझे लगता नहीं यह मुमकिन है। उनके ये शब्द भविष्य-सूचक साबित हुए हैं। पटना की गर्मी में नेताओं के एक साथ आने और भाजपा-विरोधी समूह बनाने के 18 महीने से भी कम समय बाद इंडिया गठबंधन लगभग खत्म होने की कगार पर है। केवल अंतिम संस्कार करने की देरी है। बहुत सम्भव है वह भी दिल्ली चुनाव के बाद हो जाए।
एक मायने में जो पटकथा सामने आ रही है, उसको देखकर ‘ये तो होना ही था’ का भाव मन में जगता है। मोदी के ‘400 पर’ के रथ को रोकने के लिए बनाया गया गठबंधन आम चुनाव खत्म होने के बाद टिकने नहीं वाला था। मोदी की प्रधानमंत्री पद पर वापसी के साथ ही विपक्षी दलों की क्षेत्रीय मजबूरियों ने राष्ट्रीय प्राथमिकताओं को पीछे छोड़ दिया है।
क्या किसी को गम्भीरता से उम्मीद थी कि ममता बनर्जी और वामपंथियों के बीच बंगाल में कोई तालमेल बनेगा? क्या बिहार में लालू और नीतीश कभी एक-दूसरे पर फिर से भरोसा कर सकते थे? क्या उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती कश्मीर में वर्चस्व की लड़ाई में एक जाजम पर आने वाले थे? शिवसेना (उद्धव) भी उग्र हिंदुत्व के अपने अतीत को कब तक भुला सकती थी?
दिल्ली के मामले में तो यह बात सबसे ज्यादा स्पष्ट है। आठ महीने पहले ही कांग्रेस और आप ने राष्ट्रीय राजधानी में गठबंधन बनाकर लोकसभा चुनाव लड़ा था, वहीं पंजाब में वे एक-दूसरे से भिड़ रहे थे। यह कभी भी एक स्वाभाविक गठबंधन नहीं हो सकता था। इसमें किसी तरह की केमिस्ट्री नहीं थी।
एक राजनीतिक स्टार्ट-अप के रूप में आप दिल्ली में कांग्रेस पार्टी के मलबे पर ही तो उभरी थी। 2011 में अरविंद केजरीवाल के इंडिया अगेंस्ट करप्शन अभियान ने मनमोहन सरकार को कमजोर कर दिया था और 2014 के आम चुनावों में भाजपा के लिए सत्ता-विरोधी माहौल बनाया था। ये केजरीवाल ही थे, जिन्होंने 2013 में तीन बार की कांग्रेस मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को हराया था। राजधानी में कांग्रेस का पतन नाटकीय तेजी से हुआ। पार्टी ने एक दशक में दिल्ली में एक भी सीट नहीं जीती है।
यही वजह है कि दिल्ली में कांग्रेस ने अब अपनी ढपली अपना राग अलापा है तो इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि दोनों पक्षों की ओर से आम सहमति बनाने की कोशिशें बहुत कम हुई हैं। इसके बजाय, हम कांग्रेस और आप के बीच जुबानी जमाखर्च देख रहे हैं, जो भाजपा को तो कर्णप्रिय लगेगा।
विडंबना यह है कि सितंबर 2024 में ही राहुल गांधी ने हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए आप के साथ गठबंधन को हरी झंडी दिखाई थी। हालांकि चुनाव जीतने के प्रति पूरी तरह आश्वस्त हरियाणा कांग्रेस ने गठबंधन की कोशिशों को नाकाम कर दिया। अब हरियाणा और महाराष्ट्र में हार के बाद पार्टी कोई फैसला लेने की स्थिति में नहीं है। इस बार केजरीवाल की बारी है ‘एकला चलो रे’ करने की।
वास्तव में विपक्षी नेताओं की महत्वाकांक्षाएं और व्यक्तिगत अहंकार इतने बड़े हैं कि आश्चर्य होता है उन्होंने गठबंधन बनाने की कोशिश भी की थी। गठबंधन के मूल प्रस्तावक नीतीश कुमार तो सबसे पहले उससे बाहर निकले।
ममता बनर्जी- जिन्होंने बंगाल में वामपंथियों के साथ गठबंधन करने के लिए कांग्रेस को कभी माफ नहीं किया- राहुल गांधी की सहायक की भूमिका कभी नहीं निभा सकती थीं। कांग्रेस नेतृत्व- जिसका एक हिस्सा 99 लोकसभा सीटों से बहक गया है और जमीनी हकीकत से बेखबर है- अभी भी खुद को सत्ता के स्वाभाविक दावेदार के रूप में देखता है। शरद पवार गठबंधन-निर्माता की भूमिका निभा सकते थे, लेकिन वे अब 84 वर्ष के हो चुके हैं और महाराष्ट्र की हार और पार्टी में टूट के बाद उनके पास मतभेदों को दूर करने के लिए ऊर्जा नहीं बची है।
जिस तरह 1970 के दशक में जनता पार्टी का प्रयोग किसी भी कीमत पर इंदिरा गांधी को सत्ता से बेदखल करने की इच्छा से शुरू हुआ था, उसी तरह इंडिया गठबंधन भी मोदी-विरोध के एकसूत्री एजेंडे से ही उभरा। लेकिन वैचारिक आधार से रहित विपक्षी राजनीति अल्पकालिक नुस्खों पर जीवित नहीं रह सकती।
जनता पार्टी सिर्फ दो साल से अधिक चली, इंडिया गठबंधन की पारी तो और भी छोटी रही है। कम से कम, जनता पार्टी के पास कुछ समय के लिए जयप्रकाश नारायण जैसा विशाल व्यक्तित्व तो था; लेकिन इंडिया गठबंधन के पास तो कोई प्रबुद्ध नेतृत्व ही नहीं था, न ही कोई साझा न्यूनतम एजेंडा।
जिस तरह 1970 के दशक में जनता पार्टी का प्रयोग किसी भी कीमत पर इंदिरा गांधी को सत्ता से बेदखल करने की इच्छा से शुरू हुआ था, उसी तरह इंडिया गठबंधन भी मोदी-विरोध के एकसूत्री एजेंडे से ही उभरा है। (ये लेखक के अपने विचार हैं)
[ad_2]
राजदीप सरदेसाई का कॉलम: ‘इंडिया’ गठबंधन में आई टूट हमें बहुत कुछ बताती है