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बराड़ा क्षेत्र से सटे यमुनानगर के गांव सारन में काफी लंबे समय से खच्चर पालने और बेचने का व्यवसाय किया जा रहा है. पहले यह लोग शौकिया तौर पर खच्चर बेचते थे, लेकिन अब यह व्यवसाय का रूप ले चुका है. हालांकि, इसको पालने में काफी खर्च आता है, इसके बावजूद पहाड़ी क्षेत्र में इनकी बहुत मांग है. मां वैष्णो देवी, श्री अमरनाथ, श्री केदारनाथ, श्री बद्रीनाथ समेत अन्य कई पहाड़ी तीर्थस्थलों पर यहां के खच्चर यात्री और सामान ढोने का काम कर रहे हैं.
सारन निवासी मुकेश कुमार और विशाल ने बताया कि शुरूआती दौर में उनके पूर्वज खच्चर को रेहड़े में जोड़कर सामान इत्यादि ढोने का काम करते थे. लेकिन मशीनरी युग में धीरे-धीरे यह काम खत्म हो गया और इन खच्चरों की मांग पहाड़ी क्षेत्र में अधिक होती है, इसलिए उन्होंने यहां खच्चर पालन का व्यवसाय शुरू कर दिया.
उन्होंने बताया कि इसके लिए करीब 40 हजार से डेढ़ लाख में खच्चर का बच्चा खरीदकर लाते हैं और इसके बाद पालन पोषण होने के बाद दो से ढाई लाख रुपए तक का बिक जाता है. उन्होंने कहा कि करीब एक-डेढ़ साल तक इन खच्चरों को पालते हैं और खच्चरों को रखने के लिए बड़ा अस्तबल और मौसम के अनुसार छत का भी इंतजाम किया जाता है.
विशाल मेले में होती है खरीदारी
उन्होंने बताया कि गाय, भैंस, भेड़-बकरी, सुअर समेत अन्य पशुओं के पालन पर सरकार सब्सिडी युक्त आर्थिक सहायता प्रदान करती है, लेकिन खच्चर पालन में उन्हें कोई वित्तीय मदद नहीं मिलती. उन्होंने बताया कि कुछ समय पहले उनकी एक खच्चर मर गई, जिससे उन्हें लाखों का नुकसान हुआ. ऐसे में सरकार की तरफ से उनके लिए भी योजना बनाई जाए, क्योंकि खच्चरों के लिए कोई बीमा योजना भी नहीं है. यदि खच्चर पालकों को मदद मिले तो इससे उन्हें प्रोत्साहन मिल सकता है.
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