in

मेघना पंत का कॉलम: समय के साथ समाज बदलता है, रिश्तों को भी बदलना चाहिए Politics & News

मेघना पंत का कॉलम:  समय के साथ समाज बदलता है, रिश्तों को भी बदलना चाहिए Politics & News

[ad_1]

  • Hindi News
  • Opinion
  • Meghna Pant’s Column: Society Changes With Time, So Should Relationships.

5 घंटे पहले

  • कॉपी लिंक

मेघना पंत पुरस्कृत लेखिका, पत्रकार और वक्ता

शादियां आउटडेटेड हो गई हैं- जया बच्चन की इस हालिया टिप्पणी को लेकर इंटरनेट पर आशा के अनुरूप ही परिणाम मिले। कई लोगों ने इस कथन को नैतिक तौर पर गलत बताते हुए नाक-भौं सिकोड़ी और कुछ अन्य ने इस पर सहमति जताई। लेकिन जया शायद विवाह संस्था को समाप्त करने के लिए नहीं कह रही थीं। वे तो इसके “सॉफ्टवेयर-अपडेट’ की ओर संकेत कर रही थीं।

हम भारतीय निजी चर्चाओं में जिस हकीकत को मानते तो हैं, लेकिन सार्वजनिक रूप से स्वीकारते नहीं- वो यह है कि विवाह अपने आप में समस्या नहीं है, लेकिन विवाह का पुराना उद्देश्य अब अतीत की बात हो चुका है। ऐसे में अगर हम बिना रक्षात्मक हुए सावधानी से सुनें तो जया ने इन सवालों पर फिर से सोचने के लिए कहा है कि हम विवाह क्यों, कब और कैसे करते हैं।

भारत में विवाह हमेशा से महज एक निजी पसंद से बढ़कर रहा है। यह एक मील का पत्थर, नैतिकता का प्रमाणपत्र और लगभग किसी सार्वजनिक जलसे जैसा होता है। मसलन, पच्चीस साल की किसी अविवाहित महिला को हमारा समाज ऐसे देखता है, जैसे उसकी “अनुपयोगिता’ अब सिद्ध ही होने वाली हो।

तीस साल के अविवाहित पुरुष को बारम्बार टोका जाता है कि अब तो “सेटल’ हो जाओ, जैसे कि वह कोई इंसान नहीं लावारिस सूटकेस हो। हम विवाह को दो व्यक्तियों की परस्पर साझेदारी नहीं, बल्कि वयस्क होने के पासपोर्ट, सामाजिक स्वीकार्यता और पारिवारिक गौरव की तरह लेते हैं। उत्तरदायित्व का सर्टिफिकेट, एक सामाजिक तमगा, जो तय करता है कि आप ‘सेटल्ड’ हैं या ‘फेल्ड’।

लेकिन एक विनम्रता भरी सच्चाई यह है- जो किसी को अपमानित नहीं बल्कि सोचने को मजबूर करती है- कि विवाह अपने आप में अभी आउटडेटेड नहीं हुआ है। लेकिन वो वजहें जरूर अब चलन के बाहर हो चली हैं, जिनके चलते हम लोगों को विवाह के लिए मजबूर करते हैं।

वो दुनिया अब नहीं रही, जिसमें वे नियम गढ़े गए थे। आज महिलाएं कमाती हैं, पुरुष खाना बनाते हैं। युवा जोड़े पैरेंट्स बनना या तो टालते हैं या इसकी सम्भावना को पूरी तरह से खारिज कर देते हैं। जैसे-जैसे भावनात्मक जरूरतें इवॉल्व होती हैं, अपेक्षाएं भी बदलती हैं।

विवाह के आउटडेटेड होने पर बहस करने के बजाय हम इससे बेहतर सवाल कर सकते हैं कि क्या हमने विवाह की वजहों को अपडेट किया? विवाह को एक पुरानी परंपरा के तौर पर खारिज करने के बजाय हमें पूछना चाहिए कि क्या हम सही वजहों से विवाह कर रहे हैं?

अकेले रह जाने, जज किए जाने, या दुनिया से पिछड़ जाने जैसे डर के कारण किए गए विवाह शायद ही किसी को संतोष दें। लेकिन तैयारी, स्पष्टता और परस्पर सम्मान के आधार पर किए गए विवाह में एक खूबसूरत और मजबूत रिश्ते की पूरी संभावना है। ऐसे में विवाह पर रोक लगाने की बात तो दूर, उसे हतोत्साहित भी नहीं किया जाना चाहिए। लेकिन अब उसे एक ऐसे जरूरी चेकपॉइंट की तरह भी नहीं देखा जाना चाहिए, जिसे 25 या 30 की उम्र तक आपको पार करना ही है। यानी अब विवाह सुरक्षा नहीं, सामंजस्य के लिए कीजिए।

विवाह के दशकों पुराने तौर-तरीके आज के भारतीय जन-जीवन में भले फिट नहीं बैठते हों, लेकिन प्यार, साथ और साझेदारी- आज भी मायने रखते हैं और हमेशा रखेंगे। ऐसा नहीं है कि हमारे देश में विवाह अब कम होने चाहिए, लेकिन यकीनन वे और बेहतर होने चाहिए। एक समय यह विचार बहुत क्रांतिकारी लगा करता था कि कि महिलाएं खुद अपना करियर चुन सकती हैं या पुरुष देखभाल करने वाले पिता बन सकते हैं। लेकिन समय के साथ समाज बदलता है। रिश्तों को भी बदलना चाहिए। (ये लेखिका के अपने विचार हैं)

खबरें और भी हैं…

[ad_2]
मेघना पंत का कॉलम: समय के साथ समाज बदलता है, रिश्तों को भी बदलना चाहिए

भिवानी: मांगों को लेकर रिटायर्ड कर्मचारी संघ ने उपायुक्त कार्यालय पर किया प्रदर्शन Latest Haryana News

भिवानी: मांगों को लेकर रिटायर्ड कर्मचारी संघ ने उपायुक्त कार्यालय पर किया प्रदर्शन Latest Haryana News

रोहतक: दोस्त पुलिस कार्यक्रम में छात्राओं ने समझी महिला थाने की कार्यप्रणाली  Latest Haryana News

रोहतक: दोस्त पुलिस कार्यक्रम में छात्राओं ने समझी महिला थाने की कार्यप्रणाली Latest Haryana News