in

मिन्हाज मर्चेंट का कॉलम: भारत की तरक्की को पश्चिम के लोग पचा क्यों नहीं पा रहे Politics & News

मिन्हाज मर्चेंट का कॉलम:  भारत की तरक्की को पश्चिम के लोग पचा क्यों नहीं पा रहे Politics & News

[ad_1]

  • Hindi News
  • Opinion
  • Minhaj Merchant’s Column Why The People Of The West Are Unable To Digest India’s Progress

5 घंटे पहले

  • कॉपी लिंक

मिन्हाज मर्चेंट, लेखक, प्रकाशक और सम्पादक

पश्चिम में भारतीयों का प्रभाव दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। एक तमिल वैज्ञानिक डॉ. श्यामला गोपालन की बेटी कमला हैरिस अमेरिकी चुनावों में डोनाल्ड ट्रम्प को टक्कर दे रही हैं। वहीं ट्रम्प के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जेडी वान्स की पत्नी उषा चिलुकुरी के माता-पिता भी आंध्र प्रदेश से हैं।

विश्व बैंक के अध्यक्ष अजय बंगा इस पद पर पहुंचने वाले पहले भारतीय हैं। आईएमएफ की डिप्टी प्रबंध-निदेशक गीता गोपीनाथ जल्द ही इस संस्था में शीर्ष पर पहुंच सकती हैं। पूरे अमेरिका में अनेक फॉर्च्यून 500 कम्पनियों के सीईओ भारतवंशी हैं, जैसे गूगल में सुंदर पिचाई, माइक्रोसॉफ्ट में सत्या नडेला, अडोबी में शांतनु नारायण और आईबीएम में अरविंद कृष्णा। अमेरिका में भारतीय ही सबसे धनी जनसांख्यिकीय-समूह हैं, जिनकी औसत वार्षिक आय 1,20,000 डॉलर से अधिक है। यह चीनी, यहूदियों और श्वेत अमेरिकियों से भी अधिक है।

लेकिन जब कोई समुदाय इतनी राजनीतिक, व्यावसायिक और वैज्ञानिक सफलता प्राप्त करता है, तो स्वाभाविक ही उसके प्रति ईर्ष्या भी उत्पन्न होती है। भारत के मून-मिशन चंद्रयान-3 पर एक हालिया रिपोर्ट में पुष्टि की गई है कि चंद्रमा की प्रारंभिक सतह पिघली हुई (मैग्मा) थी, जिससे वैज्ञानिक जगत में हलचल मच गई।

वॉशिंगटन पोस्ट ने चंद्रयान-3 पर एक प्रमुख खबर प्रकाशित की। यह पिछले साल चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास रोवर उतारने वाला पहला वैश्विक मून मिशन बन गया था। प्रमुख ब्रिटिश विज्ञान पत्रिका नेचर ने पिछले सप्ताह प्रकाशित एक अकादमिक पेपर में प्रज्ञान रोवर द्वारा एकत्र किए गए डेटा का विश्लेषण किया।

लगभग तुरंत ही वॉशिंगटन पोस्ट की वेबसाइट नस्लवादी टिप्पणियों से भर गई। अधिकांश ने कहा कि भारत जैसा गरीब देश चंद्रमा पर अंतरिक्ष मिशन भेजने पर पैसा क्यों खर्च कर रहा है। एक अमेरिकी पाठक ने लिखा, भारत में हजारों लोग बेघर हैं, फुटपाथ पर सोते हैं, पुलों के नीचे रहते हैं। फिर भी, उसकी सरकार के पास चंद्रमा पर मैग्मा की तलाश के लिए पैसा है। हालांकि कुछ अन्य समझदार पाठकों ने कहा कि हर देश के पास चंद्रमा पर यान भेजने की क्षमता नहीं।

जैसे-जैसे पश्चिम में भारत का रुतबा बढ़ रहा है, उसके विरुद्ध प्रतिक्रिया के संकेत भी बढ़ते जा रहे हैं। कोलकाता में एक युवा डॉक्टर के साथ दुष्कर्म और हत्या के बाद भारत को दुनिया की रेप-कैपिटल कहने वाले लोगों की पोस्ट्स से सोशल मीडिया भरा पड़ा है।

वे इस तथ्य से अनभिज्ञ हैं कि अमेरिका और यूरोप में दुष्कर्म की घटनाएं भारत की तुलना में कहीं अधिक होती हैं, लेकिन उनका कम प्रचार होता है। ब्रिटेन में भी भारत के खिलाफ प्रतिक्रिया तेज हो गई है। 2022 में भारत की जीडीपी ने ब्रिटेन की जीडीपी को पीछे छोड़ दिया था।

यह देखते हुए कि 1947 में स्वतंत्रता के समय भारत की अर्थव्यवस्था ब्रिटेन का एक अंश थी, यह एक उल्लेखनीय उपलब्धि है। अमेरिका की तरह, ब्रिटेन में भी भारतीयों की औसत वार्षिक आय किसी भी जनसांख्यिकीय समूह की तुलना में अधिक है।

बात केवल भारत तक ही सीमित नहीं है। सदियों से पश्चिमी मीडिया ने एक श्वेत वर्चस्ववादी नैरेटिव पेश किया है। वे इस बात को स्वीकार नहीं कर पाते कि अतीत में एक ब्रिटिश कॉलोनी रहा देश इतना आगे बढ़ सकता है।

1950 के दशक तक तो ऐसे नैरेटिव मुख्यधारा का हिस्सा थे। पश्चिम को रंगभेदी दक्षिण अफ्रीका के साथ व्यापार करने और खेल खेलने से ऐतराज न था। 1960 के दशक के मध्य तक अश्वेत अमेरिकियों को कई अमेरिकी राज्यों में केवल गोरों के रेस्तरां में जाने की अनुमति नहीं थी और उनके बच्चों को गोरों के स्कूलों में जाने से रोक दिया गया था। जबकि तथ्य यह है कि पश्चिम ने उपनिवेशों से कर वसूल करके और 250 से अधिक वर्षों तक अफ्रीकियों को गुलाम बनाकर संपत्ति अर्जित की है। पश्चिम में आज भी शेष दुनिया के प्रति नस्लवादी दृष्टिकोण है।

नायल फर्ग्यूसन और एंड्रयू रॉबर्ट्स जैसे इतिहासकार पक्षपातपूर्ण ऐतिहासिक नैरेटिव को सामने रखते हैं। वे इस बात को नजरअंदाज करते हैं कि कैसे उपनिवेशवाद के कारण भारत- जो कि 1750 में वैश्विक जीडीपी में 24% योगदान देता था- घटकर 1947 में सिर्फ 3% तक सीमित रह गया।

आईएमएफ की गीता गोपीनाथ ने पिछले सप्ताह पुष्टि की कि भारत की अर्थव्यवस्था 2027 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगी। इसने भी भारत-विरोधी प्रतिक्रियाओं को जन्म दिया है। अगर नवम्बर में कमला गोपालन-हैरिस अमेरिका की राष्ट्रपति बन गईं तो पश्चिम में अनेक टिप्पणीकार निश्चित ही जल-भुन उठेंगे।

जब कोई देश या उसका समुदाय इतनी राजनीतिक, व्यावसायिक और वैज्ञानिक सफलता प्राप्त करता है, तो उसके प्रति ईर्ष्या भी उत्पन्न होती है। जैसे-जैसे भारत का रुतबा बढ़ रहा है, उसके विरुद्ध प्रतिक्रिया के संकेत भी बढ़ते जा रहे हैं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)

खबरें और भी हैं…

[ad_2]
मिन्हाज मर्चेंट का कॉलम: भारत की तरक्की को पश्चिम के लोग पचा क्यों नहीं पा रहे

Haryana: आचार संहिता का उल्लंघन करने पर आप नेता को कारण बताओ नोटिस जारी  haryanacircle.com

Haryana: आचार संहिता का उल्लंघन करने पर आप नेता को कारण बताओ नोटिस जारी haryanacircle.com

हाईकोर्ट का अहम फैसलाः एक साथी की मौत के बाद नहीं लड़ा जा सकता तलाक का केस, लड़के की मां की अपील खारिज  Latest Haryana News

हाईकोर्ट का अहम फैसलाः एक साथी की मौत के बाद नहीं लड़ा जा सकता तलाक का केस, लड़के की मां की अपील खारिज Latest Haryana News