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- Minhaj Merchant’s Column Poverty Is Decreasing In The Country And The World Is Keeping An Eye On It
मिन्हाज मर्चेंट, लेखक, प्रकाशक और सम्पादक
क्या भारत में गरीबी दर घट रही है? और अगर ऐसा है, तो सरकार अभी भी 80 करोड़ से ज्यादा भारतीयों को मुफ्त अनाज क्यों दे रही है? पहले सवाल का जवाब है- हां, भारत में गरीबी दर वाकई घट रही है, और पहले से कहीं ज्यादा तेजी से। आरबीआई के पूर्व गवर्नर सी. रंगराजन की अध्यक्षता वाली समिति की नई रिपोर्ट के अनुसार गरीबी दर 2011-12 में 29.5% थी, जो 2023-24 में घटकर 4.9% हो गई है। यह एक असाधारण गिरावट है। रंगराजन कहते हैं गिरावट की दर पिछले 12 साल की अवधि में 2.02% प्रति वर्ष रही है।
तब सवाल उठता है कि अगर पिछले 12 सालों में गरीबी में इतनी नाटकीय गिरावट आई है, तो सरकार प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत 806.7 मिलियन भारतीयों को मुफ्त अनाज क्यों दे रही है? इसका जवाब आंशिक रूप से राजनीतिक और आंशिक रूप से वैज्ञानिक है। मुफ्त खाद्यान्न योजना को गरीबों के वोटों के लिए शुरू किया गया था, लेकिन यह पोषण संबंधी सप्लीमेंट के लिए भी थी।
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) एक प्रसिद्ध पत्रिका डाउन टु अर्थ प्रकाशित करता है। इसने एक रिपोर्ट का हवाला दिया कि भारत में हर साल 17 लाख से ज्यादा लोगों की कुपोषण से मृत्यु हो जाती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 71% भारतीय पौष्टिक भोजन नहीं खरीद सकते।
हालांकि गरीबी दर गिरकर 4.9% हो गई है, लेकिन पोषण एक गंभीर चिंता का विषय बना हुआ है। गरीब भारतीयों का एक बड़ा हिस्सा पौष्टिक आहार नहीं खरीद सकता। इसलिए मुफ्त खाद्यान्न सहायता दी जाती है। बचे हुए पैसों को ज्यादा पौष्टिक भोजन पर लगाया जा सकता है।
जैसा कि विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अमेरिकी सेनेटर एलिसा स्लोटकिन से कहा- सेनेटर, आपने कहा कि लोकतंत्र आपकी मेज पर भोजन नहीं लाता। वास्तव में, दुनिया के जिस हिस्से में मैं रहता हूं, वहां ऐसा होता है। आज चूंकि हम एक लोकतांत्रिक समाज हैं, इसलिए हम 800 मिलियन से ज्यादा लोगों को पोषण-सहायता और भोजन देते हैं।
विश्व बैंक ने भी भारतीय गरीबी में गिरावट की पुष्टि की है। इंडियन एक्सप्रेस में लिखते हुए सी. रंगराजन और एस. महेंद्र देव (प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष) ने बताया कि विश्व बैंक ने हाल ही में 100 से अधिक विकासशील देशों के लिए गरीबी और समानता संबंधी संक्षिप्त रिपोर्ट जारी की है।
इसमें कहा गया है कि भारत ने पिछले दशक में गरीबी में उल्लेखनीय कमी की है। अत्यधिक गरीबी (क्रय शक्ति समता के संदर्भ में प्रतिदिन 2.15 डॉलर से कम पर जीवन यापन करना) 2011-12 में 16.2% से घटकर 2022-23 में 2.3% हो गई। इस अवधि में 17 करोड़ से अधिक लोग अत्यधिक गरीबी की स्थिति से ऊपर उठ गए।
निम्न-मध्यम आय वाले देशों के लिए गरीबी रेखा के मानदंड से नीचे के लोगों की संख्या (प्रतिदिन 3.65 डॉलर) 61.8% से घटकर 28.1% हो गई। यदि गरीबी को परिभाषित करने के लिए घरेलू आय का कट-ऑफ स्तर बढ़ा दिया जाए, तो गरीबी दर तेजी से बढ़कर 28.1% हो जाती है। यह लगभग 50 करोड़ भारतीयों का जनसांख्यिकीय समूह है, जिसे पोषण संबंधी सहायता की आवश्यकता है।
प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के अंतर्गत अतिरिक्त 30 करोड़ और लोगों को शामिल किया गया है, ताकि स्पष्ट चुनावी लाभ के साथ व्यापक जनसांख्यिकीय समूह तक भी पहुंचा जा सके। भारत में गरीबी के निरंतर प्रसार के बावजूद गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या में कमी देखी जा सकती है।
1947 में स्वतंत्रता के बाद से भारत में अकाल नहीं पड़ा है। जबकि ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के 190 वर्षों के दौरान 31 बड़े अकाल पड़े थे, जिनमें से आखिरी 1943 का बंगाल अकाल था। उसमें 30 लाख लोग मारे गए थे।
रंगराजन गरीबी दर में गिरावट को जीडीपी में वृद्धि से सही ढंग से जोड़ते हैं। वे लिखते हैं कि गरीबी का निर्धारण जीडीपी वृद्धि, कीमतों और सेफ्टी नेट जैसे फैक्टर्स से होता है। जीडीपी वृद्धि 2022-23 में 7.6% से बढ़कर 2023-24 में 9.2% हो गई, यानी एक वर्ष में 1.6% की वृद्धि।
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) 2022-23 में 6.7% से घटकर 2023-24 में 5.4% हो गया यानी 1.3% अंकों की गिरावट। हालांकि इसी अवधि के दौरान खाद्य मुद्रास्फीति 6.6% से बढ़कर 7.5% हो गई है। ऐसे में लगता नहीं कि अगले चरण में कल्याणकारी कार्यक्रमों में कोई महत्वपूर्ण बदलाव होगा।
भारत की कम प्रति व्यक्ति आय (2,900 डॉलर) की ओर इशारा किया जाता है। पर इसकी सही माप क्रय शक्ति समता पर आधारित है। मुंबई में 500 रु. में हवाई अड्डे से शहर तक पहुंचा जा सकता है, टोक्यो में 5,000 रु. लगते हैं। (ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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मिन्हाज मर्चेंट का कॉलम: देश में गरीबी घट रही है और इस पर दुनिया की नजर है

