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मिन्हाज मर्चेंट का कॉलम: कांग्रेस की सोच को किस दिशा में ले जा रहे हैं राहुल? Politics & News

मिन्हाज मर्चेंट का कॉलम:  कांग्रेस की सोच को किस दिशा में ले जा रहे हैं राहुल? Politics & News

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2 घंटे पहले

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मिन्हाज मर्चेंट, लेखक, प्रकाशक और सम्पादक

जनवरी 2013 में जब राहुल गांधी को कांग्रेस उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया था, तब उन्होंने कहा था कि सत्ता जहर है। उस समय यूपीए-2 सरकार संकट में थी। विपक्ष और मीडिया उस पर ‘पॉलिसी-पैरा​लिसिस’ के आरोप लगा रहे थे। तब पार्टी कार्यकर्ताओं से बात करते हुए राहुल ने भावुक होकर कहा था, हमें सत्ता के पीछे नहीं भागना चाहिए, बल्कि इसका इस्तेमाल दूसरों को सशक्त बनाने के लिए करना चाहिए।

इसके नौ महीने बाद- सितम्बर 2013 में- राहुल गांधी कांग्रेस नेता अजय माकन के साथ एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में आए और मनमोहन सरकार द्वारा स्वीकृत एक अध्यादेश को फाड़ दिया। इस अध्यादेश ने सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले को पलट दिया था, जिसमें निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को आपराधिक मामले में दोषी ठहराए जाने पर संसद या विधानसभा का सदस्य बनने से रोक दिया गया था।

यह अध्यादेश लालू यादव की मदद के लिए बनाया गया था, जिन्हें उस समय चारा घोटाला मामले में दोषी ठहराया गया था। यह राजीव गांधी के उस अध्यादेश जैसा ही तुष्टीकरण का कार्य था, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के शाहबानो फैसले को पलट दिया गया था। राहुल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा : ‘मैं आपको बताता हूं कि अध्यादेश पर मेरी क्या राय है। यह पूरी तरह से बकवास है। इसे फाड़कर फेंक देना चाहिए!’

मनमोहन सिंह उस समय एक आधिकारिक यात्रा पर अमेरिका में थे। बराक ओबामा से मुलाकात के कुछ घंटे पहले ही उन्हें राहुल की इस हरकत के बारे में बताया गया। वे अपने इस सार्वजनिक अपमान से बहुत दु:खी हुए, लेकिन अपमान का घूंट पी लिया।

भारत लौटने पर केंद्रीय मंत्रिमंडल ने चुपचाप अध्यादेश वापस ले लिया। राहुल का रुख नैतिक रूप से सही था कि नेताओं का दोष सिद्ध होने के बाद उन्हें चुनाव लड़ने से रोकने वाले अदालती आदेश को क्यों पलटा जाए? इसके एक दशक बाद- जुलाई 2023 में- लालू और राजद पुरानी दुश्मनी भुलाकर 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन का समर्थन करने वालों में पहले थे। राहुल ने भी उनका खुले दिल से स्वागत किया। बिहार में, कांग्रेस और राजद ने गठबंधन बनाकर चुनाव लड़ा।

लेकिन एक अध्यादेश पर अपनी ही सरकार को चुनौती देने वाले राहुल ने उस घटना के करीब 12 साल बाद क्या अपना यह विचार बदल दिया है कि सत्ता जहर है? 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस द्वारा 99 सीटें जीतने के बाद पार्टी ने भविष्यवाणी की थी कि भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार छह महीने भी नहीं टिकेगी।

उसके पास केवल 240 सीटें थीं और उसे टीडीपी, जदयू और अन्य सहयोगियों ने सहारा दिया था। राहुल ने पूरी ताकत से मोर्चा खोल लिया था। 2013 में जहर लगने वाली सत्ता अब उन्हें भाजपा को हराने के हथियार की तरह लगने लगी थी।

2019 के चुनावों में भी राहुल ने राफेल डील में कथित भ्रष्टाचार को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला किया था। जब मोदी ने इसके जवाब में खुद को घोटालों से भारत की रक्षा करने वाला चौकीदार कहा, तो राहुल ने यह कहते हुए कटाक्ष किया कि- ‘चौकीदार चोर है!’

जब इनमें से कोई भी तरीका काम नहीं आया, तो राहुल ने अमेरिका में ‘डीप स्टेट’ द्वारा अपनाई रणनीति का इस्तेमाल किया। पेंटागन, व्हाइट हाउस, स्टेट डिपार्टमेंट और सीआईए में काम करने वाले नौकरशाहों और टेक्नोक्रेटों का यह चेहराविहीन समूह भाजपा की रणनीतिक स्वायत्तता की विदेश नीति से खुश नहीं था।

अदाणी समूह पर राहुल के लगातार हमलों की जड़ें भी ‘डीप स्टेट’ द्वारा जॉर्ज सोरोस को भारत को कमजोर करने के लिए तैनात करने में हैं। अदाणी समूह भारतीय बुनियादी ढांचे के निर्माण की परियोजनाओं से जुड़ा है, जिनमें बंदरगाह, हवाई अड्डे, ग्रीन एनर्जी और डेटा सेंटर शामिल हैं।

अमेरिका में पूंजी जुटाने की अदाणी समूह की क्षमता को नुकसान पहुंचाना भारत की आर्थिक प्रगति को धीमा करने के लिए था। विडम्बना यह है कि अब हिंडनबर्ग ने ही घोषणा कर दी है कि वह बंद होने जा रहा है। उस पर धोखाधड़ी के आरोप भी लगे हैं।

इस बीच राहुल ने कांग्रेस की ​विचारधारा को सेंटर-लेफ्ट से हार्ड-लेफ्ट की ओर मोड़ दिया है। उनके विचार सीपीएम से मिलने लगे हैं। कांग्रेस अल्पसंख्यकों के हितों पर भी ज्यादा फोकस कर रही है। दूसरी तरफ, सार्वजनिक-विमर्श की मर्यादा तार-तार हुई है।

सोनिया गांधी ने 2007 में मोदी को मौत का सौदागर कहा था। मणिशंकर अय्यर ने भी मोदी के लिए अभद्र शब्दों का प्रयोग किया। राहुल ने कहा था कि सत्ता के साथ ही जहर भी आता है। वे गलत थे। यह सत्ता के बिना भी आ सकता है!

राहुल गांधी ने कांग्रेस पार्टी की ​विचारधारा को सेंटर-लेफ्ट से हार्ड-लेफ्ट की ओर मोड़ दिया है। उनके विचार धीरे-धीरे सीपीएम से मिलने लगे हैं। कांग्रेस अल्पसंख्यकों के हितों पर भी अब ज्यादा ध्यान केंद्रित कर रही है।

(ये लेखक के अपने विचार हैं।)

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