अर्थशास्त्रियों का मानना है कि मौजूदा खुदरा मुद्रास्फीति के आंकड़े महंगाई की असल तस्वीर पेश नहीं करते, क्योंकि यह पुराने उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण (2011-12) पर आधारित है। उनका कहना है कि जीवन-यापन की वास्तविक लागत को सही ढंग से आंकने के लिए इस सर्वेक्षण को जल्द से जल्द अपडेट किया जाना चाहिए। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल में खुदरा महंगाई दर घटकर 3.16% पर आ गई जो लगभग छह वर्षों का सबसे निचला स्तर है, लेकिन शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य सामानों पर बढ़ते खर्च को देखते हुए विशेषज्ञ इसे अधूरी तस्वीर मानते हैं।
मद्रास स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के निदेशक प्रो. एन. आर. भानुमूर्ति ने कहा कि उपभोक्ताओं की खपत में बदलाव आया है और वर्तमान सूचकांक में उसका समुचित प्रतिनिधित्व नहीं है। उन्होंने सुझाव दिया कि नए सर्वेक्षण में खाद्य वस्तुओं का भारांश घट सकता है और मोबाइल जैसे नए खर्च शामिल होने चाहिए। जेएनयू के पूर्व प्रोफेसर डॉ. अरुण कुमार ने भी यही रेखांकित किया कि मौजूदा उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) न तो अमीर और न ही गरीब की सच्ची स्थिति दिखाता है, क्योंकि उपभोग के पैटर्न समय के साथ बदलते रहते हैं।
CPI आंकड़ों की गणना में बदलाव जरूरी
बदलते उपभोग पैटर्न को देखते हुए अर्थशास्त्रियों ने उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) की गणना में बदलाव की मांग की है। अब लोग होटल-रेस्तरां में अधिक खर्च कर रहे हैं, जबकि स्कूल फीस और स्वास्थ्य सेवाओं पर भी खर्च बढ़ा है। इसके चलते उपभोग पैटर्न और विभिन्न मदों का भारांश भी बदल गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि इन परिवर्तनों को CPI में प्रतिबिंबित किया जाना चाहिए, लेकिन अभी तक मौजूदा प्रणाली में संशोधन नहीं हुआ है। उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण के माध्यम से यह समझा जाता है कि परिवार किन वस्तुओं और सेवाओं पर खर्च करते हैं। वर्तमान में CPI की गणना 2011-12 के सर्वेक्षण के आधार पर होती है, जबकि यह सर्वेक्षण हर पांच साल में अपडेट किया जाना चाहिए। हाल ही में 2022-23 और 2023-24 में नया सर्वेक्षण किया गया है, जिसके आधार पर सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय 2024 को नया आधार वर्ष बनाने की प्रक्रिया में है।
प्रो. एन. आर. भानुमूर्ति ने स्पष्ट किया कि अप्रैल में खुदरा महंगाई दर 3.16% भले ही दिख रही हो, लेकिन इसका मतलब कीमतों में गिरावट नहीं, बल्कि केवल उनकी बढ़ोतरी की दर में कमी है। जेएनयू के डॉ. अरुण कुमार ने भी कहा कि मुद्रास्फीति और कीमतों को समझने में यह अंतर महत्वपूर्ण है—मुद्रास्फीति कम होने का अर्थ यह नहीं है कि चीजें सस्ती हो रही हैं, बल्कि अब उनकी कीमतें धीमी दर से बढ़ रही हैं।

घर के बजट पर दबाव बना हुआ
जेएनयू के पूर्व प्रोफेसर डॉ. अरुण कुमार ने कहा कि दाम अभी भी बढ़ रहे हैं, यानी घर के बजट पर दबाव बना हुआ है। उन्होंने स्पष्ट किया कि अगर आमदनी उसी अनुपात में नहीं बढ़ रही है, तो महंगाई का असर लोगों की क्रय शक्ति पर पड़ेगा। उनके अनुसार, महंगाई की दर सभी तबकों के लिए समान नहीं होती, क्योंकि यह उपभोग के स्तर और वस्तुओं की प्राथमिकता पर निर्भर करती है। डॉ. कुमार ने कहा कि कारोबारी वर्ग महंगाई से लाभ कमा सकता है, लेकिन मध्यम वर्ग, किसान और श्रमिकों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। गरीब वर्ग की खपत मुख्यतः खाद्य पदार्थों पर केंद्रित होती है, जबकि अमीर तबका अन्य सेवाओं पर अधिक खर्च करता है।
वर्तमान उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) में खाद्य और पेय वस्तुओं की हिस्सेदारी 45.86% है, जबकि स्वास्थ्य, शिक्षा और घरेलू सेवाओं जैसे विविध मदों की हिस्सेदारी मात्र 28.32% है। डॉ. कुमार ने जोर देकर कहा कि शिक्षा और स्वास्थ्य का भारांश बढ़ाने की आवश्यकता है, क्योंकि अब सेवा क्षेत्र अर्थव्यवस्था का लगभग 55–60% हिस्सा बन चुका है, जबकि CPI में इसकी भागीदारी सिर्फ 26% है। उन्होंने कहा कि नए उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण से इस असंतुलन को दूर किया जा सकता है और मुद्रास्फीति की ज्यादा वास्तविक तस्वीर सामने लाई जा सकती है।
Source: https://www.indiatv.in/paisa/business/inflation-may-have-decreased-but-spending-on-education-and-health-increased-economists-raised-the-demand-for-change-in-this-survey-2025-05-18-1136299