[ad_1]
- Hindi News
- Opinion
- Manoj Joshi’s Column Pakistan Is Falling Into A Pit Of Its Own Making
4 घंटे पहले

- कॉपी लिंक
मनोज जोशी विदेशी मामलों के जानकार
हाल ही में मुंबई में नानी पालकीवाला स्मृति व्याख्यान में बोलते हुए विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा, ‘हमारे पड़ोसी देशों में एक पाकिस्तान ही है, जो सीमापार आतंकवाद को समर्थन देता है, और अब वह खुद अपने बनाए गड्ढे में गिरने लगा है।’ पाकिस्तान के सबसे लोकप्रिय राजनेता और पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को बाकायदा प्रताड़ित करने के बाद 14 साल कारावास की सजा सुनाई गई है।
वे मई 2023 से ही बेबुनियाद आरोपों के चलते सलाखों के पीछे हैं। अलगाववादी उग्रवाद कहर ढा रहा है। 2024 में हुई हिंसा की विभिन्न घटनाओं में 1600 से अधिक नागरिक और 685 सुरक्षाकर्मी मारे गए। यह आंकड़ा 2014 से हर साल बढ़ रहा है। इसका कारण खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान में अलगाववादी समूहों की सक्रियता और पाकिस्तान में शिया-अहमदिया समुदायों को निशाना बनाकर की जाने वाली साम्प्रदायिक हिंसा है।
पाकिस्तान एक साधारण देश नहीं है। यह हमारा पड़ोसी होने के साथ ही परमाणु हथियारों से लैस भी है और एशिया के नक्शे में इसकी रणनीतिक स्थिति भी महत्वपूर्ण है। लेकिन यह आज जिस हाल में है, उसके लिए उसकी हुकूमत और अर्थव्यवस्था की नाकामी जिम्मेदार है।
1950 में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से जुड़ने के बाद से पाकिस्तान को 24 बार इस वैश्विक संस्था से बेलआउट लेना पड़ा है। सबसे हालिया मामला सितम्बर 2024 का है, जब शहबाज शरीफ सरकार ने आईएमएफ से 7 अरब डॉलर का राहत-पैकेज हासिल किया।
इसकी मदद से हुकूमत पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में आई रूकावट, बेरोजगारी और वहां से प्रतिभाओं के पलायन जैसी समस्याओं से निपटने की उम्मीद कर रही है। लेकिन इसके साथ ही आईएमएफ ने 2025 के लिए पाकिस्तान की विकास दर का अनुमान घटाकर 3% कर दिया है।
ऐसा लगता है कि पाकिस्तान को अपने लगभग सभी पड़ोसियों के साथ समस्या है। यकीनन, भारत का मुद्दा इस्लामाबाद ने खुद अपने लिए बना रखा है, क्योंकि वह जम्मू-कश्मीर को अस्थिर करने की कोशिश करने वाले आतंकवादियों को समर्थन देता है। लेकिन तालिबानी राज वाले अफगानिस्तान से तो उसको दोस्ती की उम्मीद थी।

पिछले साल, इस्लामाबाद और काबुल के बीच भी तनाव बढ़ गया और पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में कथित तहरीक-ए-तालिबान शिविरों के खिलाफ हवाई हमले किए। ईरान से भी पाकिस्तान के दोस्ताना ताल्लुकात नहीं हैं। पिछले साल दोनों ने अपने-अपने देशों में शरण लेने वाले अलगाववादी समूहों के खिलाफ सैन्य हमले किए।
कुछ मायनों में पाकिस्तान 2006 से 2010 तक की स्थिति से बेहतर हालत में है, जब आतंकवादियों के अनेक समूहों- जिनमें टीटीपी, तहरीक-ए-निफाज शरीयत-ए-मुहम्मदी (टीएनएसएम), लश्कर-ए-इस्लाम, चेचेन उग्रवादी, अलकायदा आदि शामिल थे- ने पाकिस्तान पर हमला किया था।
2006 में फंड फॉर पीस द्वारा बनाए गए फ्रेजाइल स्टेट्स इंडेक्स ने पाकिस्तान को सोमालिया (6वें) और हैती (8वें) के ठीक बाद 9वें स्थान पर रखा था। ये वो साल थे, जब परवेज मुशर्रफ वहां के सेना-प्रमुख और राष्ट्रपति दोनों थे और उग्रवादी वारदातों के अलावा पाकिस्तान में अचानक आई बाढ़ ने भी वहां की अर्थव्यवस्था को तहस-नहस कर दिया था। कुल मिलाकर राजनीतिक माहौल दमन और अस्थिरता का था, जिसने जल्द ही मुशर्रफ के राष्ट्रपति पद को लील लिया था।
पाकिस्तान की मौजूदा रैंकिंग 27 है, जो युगांडा (28वां) और कांगो गणराज्य (29वां) से थोड़ा ही ऊपर है। अपने सुरक्षा तंत्र, अर्थव्यवस्था, राज्यसत्ता की वैधता और बाहरी हस्तक्षेप के मुद्दे पर उसकी हालत सबसे खस्ता है।
फ्रेजाइल स्टेट इंडेक्स 12 इंडिकेटर्स में से प्रत्येक के लिए 10 में से कोई एक स्कोर देता है। स्कोर जितना अधिक होगा, किसी देश की हालत उतनी ही बदहाल मानी जाएगी। 12.7 स्कोर के साथ नॉर्वे का प्रदर्शन इसमें सबसे अच्छा है, वहीं 111.3 स्कोर के साथ सोमालिया सबसे खस्ताहाल है।
जब भारत पाकिस्तान की तरफ से सीमापार आतंकवाद का सामना करता है तो इससे निपटने में आने वाली सबसे बड़ी समस्या यही है कि वहां की हुकूमत इस मामले में ज्यादा कुछ नहीं कर सकती। और नई दिल्ली इस मामले में सीधे पाकिस्तानी फौज के साथ बात करने में झिझकती है। लेकिन हकीकत यही है कि सीमा पार आतंकवाद को समाप्त करने के लिए पाकिस्तानी फौज की प्रतिबद्धता के बिना हालात में कोई बदलाव नहीं होने वाला है।
सीमापार आतंकवाद से निपटने में आने वाली सबसे बड़ी समस्या यही है कि पाकिस्तान की हुकूमत इस मामले में ज्यादा कुछ नहीं कर सकती। और नई दिल्ली इस मामले में सीधे पाकिस्तानी फौज के साथ बात करने में झिझकती है। (ये लेखक के अपने विचार हैं।)
[ad_2]
मनोज जोशी का कॉलम: अपने ही बनाए गड्ढे में गिरता चला जा रहा है पाकिस्तान