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भिवानी में हाथ की चक्की और उंखली में कूटकर तैयार किए जा रहे देशी मसाले और बाजरा की खिचड़ी, स्वाद लाजवाब Latest Haryana News

भिवानी में हाथ की चक्की और उंखली में कूटकर तैयार किए जा रहे देशी मसाले और बाजरा की खिचड़ी, स्वाद लाजवाब Latest Haryana News

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हाथ की चक्की और उंखली में कूटकर तैयार किए जा रहे देशी मसाले और स्वदेशी उत्पाद न केवल स्वाद में लाजवाब हैं, बल्कि महिलाओं की सेहत का भी खास राज हैं। इनदिनों शहर के बाल भवन में स्वदेशी मेला चल रहा है। जिसके अंदर एग्रो फूड की स्टॉल भी आकर्षण का केंद्र बनी है। महिलाएं ही देशी व पुरानी तकनीक से खाद वस्तुएं अपने हाथ से तैयार कर रही हैं।

महम रोड के आर्यन गोल्ड एग्रो फूड की संचालिका राजकलां कासनिया ने बताया कि पिछले पांच साल से उनके यहां सरसों तेल, पीली सरसों तेल, तिल का तेल, मूंगफली का तेल, नारियल तेल, अरंडी का तेल कोल्ड प्रेस चक्की से तैयार किया जा रहा है। ये कोल्ड चक्की राजस्थान के जोधपुर से लाई गई थी। वहीं उनके पास हाथ की चक्की और उंखली हैं। जिनके अंदर वे मसाले और ऑटा व दाल पीसती हैं। ये काम महिलाएं ही करती हैं। वहीं नीषा चौहान तिगड़ाना ने बताया कि हाथ की चक्की के अंदर बेशन, चना दाल, ऑटा, बाजरे का आटा, मक्की का आटा तैयार किया जाना है। इस चक्की को हाथ से चलाने वाली महिलाओं को कभी जोड़ दर्द नहीं सताता है। पुराने जमाने में महिलाएं इस चक्की के माध्यम से ही घर के अंदर ऑटो, दाल तैयार करती थी और उंखल में मशाले कूटती थी। उखल में बाजारा की खिचड़ी भी कूटकर तैयार की जाती है, जिसका स्वाद भी लाजवाब है। वहीं राजकलां के पति मास्टर जगबीर कासनिया का कहना है कि उसकी पत्नी और बेटे को हमेशा से ही स्वदेशी वस्तुओं से बड़ा लगाव रहा है। इसी के चलते उन्होंने इस दिशा में कदम बढ़ाया और आज काफी स्वदेशी उत्पाद वे खुद तैयार कर रहे हैं, जिनका लोगों में भी अच्छा खासा रुझान मिल रहा है। मेले में भी स्टॉल पर स्वदेशी खाद्य वस्तुओं को न केवल लोग खरीदना पसंद करते हैं, बल्कि मिलावटखोरी के इस दौर में इनके तैयार करने के प्राचीन तौर तरीकों को भी बेहतर और भरोसेमंद मान रहे हैं।

हाथ की चक्की और उखल में छीपा है सेहत का राज: नीशा चौहान
नीषा चौहान ने बताया कि हाथ की चक्की और उखल में सेहत का राज छिपा है। हर सब काम ऑटोमेटिक मशीनों से होने लगा है। महिलाएं हर काम सहायक उपकरणों के माध्यम से करना पसंद करती हैं। यही वजह रहती है कि अधिकांश महिलाओं को जोड़ों व कमर दर्द रहता है। उन्हें काम में आलस आता है। लेकिन प्राचीन जमाने की चक्की हाथ से चलाते समय और उखल में कूटते समय पूरे शरीर की कसरत हो जाती थी। ये महिलाएं न केवल तंदुरुस्त रहती बल्कि उनकी उम्र भी आज के मुकाबले कहीं अधिक होती थी। यही पुरानी परंपरा और स्वदेशी वस्तुओं के प्रयोग का चलन फिर से लाने के लिए ये स्टॉलें लगाई गई हैं।

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