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अमेरिका में विदेशी छात्र
Indian Students Jobs: अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा जैसे देशों में अब भारतीयों के लिए राह आसान नहीं होने वाली है। हाल के वर्षों में इन देशों में विदेशी छात्रों, विशेषकर भारतीय छात्रों के लिए नौकरी के अवसरों में भारी गिरावट देखी गई है। यहां नौकरी पाना अब आसान भी नहीं है, खासकर उन भारतीय छात्रों के लिए जो बेहतर अवसरों की तलाश में संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और यूके जैसे देशों में जाने की योजना बना रहे हैं। गुरुग्राम स्थित उद्यमी राजेश साहनी, जीएसएफ एक्सेलरेटर के संस्थापक और सीईओ ने चेतावनी दी है कि अंतर्राष्ट्रीय छात्रों के लिए अब इन देशों में नौकरी के लिहाज से ‘हनीमून’ अवधि समाप्त हो रही है।
‘हनीमून खत्म हो गया है’
राजेश साहनी ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पोस्ट में लिखा “अंतर्राष्ट्रीय छात्रों के लिए यूएसए, कनाडा और यूके में कोई नौकरी नहीं है। हनीमून खत्म हो गया है, माता-पिता को महंगी शिक्षा पर करोड़ों खर्च करने से पहले दो बार सोचना चाहिए।”
राजेश साहनी ने क्या कहा?
राजेश साहनी हार्वर्ड बिजनेस स्कूल (एडवांस्ड मैनेजमेंट प्रोग्राम) के पूर्व छात्र हैं और इनके पास लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से फेलोशिप है। उन्होंने कहा कि विदेश में कॉलेज से स्नातक करने और हाई सैलरी वाली नौकरी पाने का पुराना तरीका अब काम नहीं कर रहा है। साहनी ने कहा, “इंजीनियरिंग के छात्रों, खासकर IITians के पास एक आसान तरीका था, अमेरिका में मास्टर्स करें और $200K की शुरुआती तकनीकी नौकरी पाएं। यह तरीका अब काम नहीं करता है।”
लोगों ने दी प्रतिक्रिया
राजेश साहनी की सोशल मीडिया पोस्ट ने फॉलोअर्स के बीच बहस छेड़ दी, जिसमें एक वर्ग ने दावा किया कि साहनी सही हैं, जबकि अन्य ने कहा कि अगर आप प्रतिभाशाली हैं तो पर्याप्त अवसर हैं। एक ने कहा कि अब खेल साख से हटकर योग्यता पर आ गया है। जिन लोगों के पास कौशल है वो अब भी रास्ता खोज लेंगे।
इस वजह से छिड़ी बहस
यह घटनाक्रम अमेरिका स्थित टेक दिग्गज कंपनी माइक्रोसॉफ्ट की ओर से वैश्विक स्तर पर लगभग 6,000 कर्मचारियों या अपने कार्यबल के 3 प्रतिशत को नौकरी से निकालने की पृष्ठभूमि में आया है, जिनमें से कई भारतीय पेशेवर हैं। इमिग्रेशन, एच-1बी वीजा और टैरिफ पर डोनाल्ड ट्रंप की हालिया कार्रवाई को ध्यान में रखें, तो भारतीय छात्रों को सबसे अधिक परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।
अमेरिका में विदेशी छात्र
यह भी जानें
देखने वाली बात यह भी है कि, अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा ने हाल के वर्षों में अपने वीजा और प्रवास नीतियों को अधिक सख्त किया है। पोस्ट-स्टडी वर्क वीजा की अवधि में कटौती, H-1B और अन्य कार्य वीजा के नियमों में बदलाव और आव्रजन की सीमाओं ने विदेशी छात्रों के लिए नौकरी पाना कठिन बना दिया है। वैश्विक आर्थिक मंदी और बढ़ती बेरोजगारी के चलते ये देश अब अपने नागरिकों को नौकरियों में प्राथमिकता दे रहे हैं। विदेशी छात्रों को नौकरी देने में कंपनियों को कानूनी और वित्तीय परेशानियों का सामना करना पड़ता है, जिससे वो हिचकिचाते हैं। तकनीकी क्षेत्र में ऑटोमेशन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के कारण बहुत सी पारंपरिक नौकरियां खत्म हो रही हैं। कंपनियां अब विशेष कौशल की मांग करती हैं, जो हर छात्र के पास नहीं होता है।
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भारतीय छात्रों के लिए USA, UK और कनाडा में नौकरी नहीं, खत्म हुआ ‘हनीमून’