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कथा सुनाते हुए कथावाचक राजेश्वरानंद महाराज।
अंबाला सिटी। आशा सिंह गार्डन में श्रीमद् भागवत कथा के तीसरे दिन आचार्य स्वामी राजेश्वरानंद महाराज ने त्रेतायुग में भगवान विष्णु के पांचवें अवतार के रूप में वामन अवतार लिया था।
पहले चार अवतार मत्स्य, कच्छप, वाराह और नरसिंह थे। वामन अवतार में उन्होंने राजा बलि से तीन पग जमीन मांग कर धरती की रक्षा की थी। छठवां अवतार भगवान ने परशुराम का लिया। इसके बाद भगवान श्रीराम के रूप में भगवान विष्णु इस धरती पर जन्मे थे। वामन अवतार में भगवान वामन श्री हरि के पहले ऐसे अवतार थे जो मानव रूप में प्रकट हुए थे।
उनके पिता वामन ऋषि और माता अदिति थी। वह बौने ब्राह्मण के रूप में जन्मे थे। वामन भगवान को दक्षिण भारत में उपेंद्र के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि वह इंद्र के छोटे भाई थे। भागवत पुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने इंद्र का देवलोक में पुन अधिकार स्थापित करने के लिए यह अवतार लिया।
दरअसल, देवलोक पर असुर राजा बली ने विजयश्री हासिल कर इसे अपने अधिकार में ले लिया था। राजा बली विरोचन के पुत्र और प्रह्लाद के पौत्र थे। उन्होंने अपने तप और पराक्रम के बल पर देवलोक पर विजयश्री हासिल की थी। राजा बलि महादानी राजा थे, उनके दर से कोई खाली हाथ नहीं लौटता था।
यह बात जब वामन भगवान को पता चली तो वह एक बौने ब्राह्मण के वेश में बली के पास गए और उनसे अपने रहने के लिए तीन पग के बराबर भूमि देने का आग्रह किया। गुरु शुक्राचार्य के चेताने के बावजूद बली ने वामन को वचन दे डाला। इस तरह भगवान ने दो पग में धरती, आकाश नाम लिया, चौथा पग उन्होंने राजा बलि के सिर पर रखा था। जिसके बाद से राजा बलि को मोक्ष प्राप्त हुआ।
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