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बिहार में चुनावी शंखनाद, महागठबंधन और NDA के बीच मुकाबला, दांव पर नीतीश से लेकर तेजस्वी तक की स Politics & News

बिहार में चुनावी शंखनाद, महागठबंधन और NDA के बीच मुकाबला, दांव पर नीतीश से लेकर तेजस्वी तक की स Politics & News

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चुनाव आयोग द्वारा सोमवार (6 अक्टूबर,2025) को बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा की. मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने बताया कि राज्य में चुनाव दो चरणों में होंगे- पहला चरण 6 नवंबर को और दूसरा चरण 11 नवंबर को होगा. वोटों की गिनती और नतीजों की घोषणा 14 नवंबर को होगी. इस ऐलान के साथ ही बिहार की सियासत में चुनावी रणभेरी बज चुकी है.

राज्य में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) और विपक्षी ‘इंडिया’ गठबंधन के बीच सीधा मुकाबला तय हो गया है. जनता दल (यूनाइटेड) के अध्यक्ष और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में राजग जहां एक और कार्यकाल की उम्मीद कर रहा है, वहीं राष्ट्रीय जनता दल (राजद), कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों से मिलकर बने इंडिया गठबंधन का लक्ष्य सत्ता से एनडीए को बेदखल करना है.  वहीं, चुनावी समीकरण में तीसरी ताकत के रूप में प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी ने भी सभी 243 सीटों पर लड़ने का ऐलान कर मुकाबले को और दिलचस्प बना दिया है.

महागठबंधन का चुनावी अभियान
महागठबंधन की ओर से आरजेडी नेता तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाया गया है. विपक्ष ने चुनाव से पहले मतदाता सूची में की गई कथित गड़बड़ियों और ‘वोट चोरी’ के मुद्दे को प्रमुख चुनावी हथियार बनाया है. कांग्रेस और आरजेडी ने मिलकर ‘वोटर अधिकार यात्रा’ निकाली, जिसमें राहुल गांधी और तेजस्वी यादव ने राज्यभर में घूमकर चुनाव आयोग पर आरोप लगाया कि वह बीजेपी को फायदा पहुंचाने के लिए मतदाता सूची में हेराफेरी कर रही है.

इसके बाद तेजस्वी यादव ने अपनी अलग ‘बिहार अधिकार यात्रा’ शुरू की, जिसमें उन्होंने बेरोजगारी और बढ़ते अपराध जैसे मुद्दों पर नीतीश सरकार को घेरा. इस यात्रा में उन जिलों को भी शामिल किया गया जिन्हें पिछली यात्रा में छोड़ा गया था. राजनीतिक हलकों में यह भी चर्चा है कि इस यात्रा के पीछे तेजस्वी के कुछ अतिरिक्त राजनीतिक उद्देश्य भी हो सकते हैं, खासकर सीट बंटवारे की चल रही बातचीत के बीच ऐसी अटकलें लगाई गईं.

कांग्रेस की कमजोरी और आरजेडी की मजबूती
महागठबंधन के सामने आंतरिक चुनौतियां भी हैं. 1990 में सत्ता से बाहर होने के बाद से कांग्रेस का वोट प्रतिशत लगातार गिरता गया है. पार्टी की राज्य इकाई को कमजोर और उत्साहहीन माना जाता है. वहीं, लालू यादव का परिवार कानूनी मामलों में उलझा हुआ है, जिसमें तेजस्वी यादव भी ‘लैंड फॉर जॉब’ घोटाले के चलते ईडी की जांच का सामना कर रहे हैं. तेजस्वी की लोकप्रियता संगठन में काफी है, लेकिन उनके भाई तेजप्रताप यादव के बयानों और रवैये के चलते कई बार उन्हें राजनीतिक काम के साथ पारिवारिक मैनेजमेंट पर भी ध्यान देना पड़ता है. इसके बावजूद, आरजेडी को मुस्लिम-यादव (MY) वोट बैंक का मजबूत आधार प्राप्त है, जो राज्य की लगभग 30% आबादी है.

सीट बंटवारे पर पेंच, नई पार्टियों की एंट्री
महागठबंधन में अभी सीट बंटवारे को लेकर सहमति नहीं बन पाई है. 2020 में आरजेडी ने 144 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 75 जीती थीं. कांग्रेस ने 70 में से 19 सीटें जीतीं, जबकि वाम दलों का प्रदर्शन शानदार रहा- सीपीआई-एमएल ने 19 में से 12, सीपीएम ने 4 में से 2 और सीपीआई ने 6 में से 2 सीटें जीती थीं. इस बार गठबंधन में तीन नई पार्टियां- विकासशील इंसान पार्टी (VIP), झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) और लोजपा का एक धड़ा शामिल हुआ है. दिलचस्प बात यह है कि VIP पांच साल पहले महागठबंधन छोड़कर एनडीए में शामिल हो गई थी. अब पार्टी के मुकेश सहनी 60 सीटों और उपमुख्यमंत्री पद की मांग कर रहे हैं. इन सभी पार्टियों की बढ़ती मांगों को देखते हुए सीट बंटवारे पर आम सहमति बनाना महागठबंधन के लिए मुश्किल चुनौती साबित हो सकता है. तेजस्वी यादव युवाओं के मुद्दों पर फोकस करके अपनी छवि को नया रूप देने की कोशिश में हैं. उन्होंने रोजगार, पलायन और कानून व्यवस्था जैसे अहम मुद्दों को चुनावी एजेंडे में सबसे ऊपर रखा है.

एनडीए की रणनीति, विकास और ‘डबल इंजन’ पर भरोसा
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जेडीयू और बीजेपी इस चुनाव में सत्ता बरकरार रखने और सीटों की संख्या बढ़ाने के लक्ष्य के साथ उतरी हैं. एनडीए विकास और ‘डबल इंजन की सरकार’  यानी केंद्र में नरेंद्र मोदी और राज्य में नीतीश कुमार  के नारे पर चुनाव लड़ रही है.

राज्य में मुख्यमंत्री पद पर लंबे समय से काबिज नीतीश कुमार अपनी ‘सुशासन’ छवि के लिए जाने जाते हैं. हाल ही में उनकी सरकार ने कई लोकप्रिय योजनाएं शुरू की हैं, जिनमें सामाजिक सुरक्षा पेंशन में वृद्धि, 75 लाख महिलाओं को 10,000 रुपये की आर्थिक सहायता और बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट शामिल हैं. केंद्र सरकार ने भी बिहार में कई विकास योजनाओं की शुरुआत की है.

बीजेपी और जेडीयू को RSS के संगठनों, जैसे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, के संगठित कैडर का फायदा मिलता है. नीतीश कुमार खुद कुर्मी जाति से आते हैं (लगभग 3%), और उन्होंने खुद को अत्यंत पिछड़े वर्गों (EBC) का नेता बनाकर पेश किया है, जो राज्य की सबसे बड़ी सामाजिक समूह है. हालांकि बीजेपी को अब भी एक ‘सवर्ण पार्टी’ के रूप में देखा जाता है, जो राज्य की कुल आबादी का 10% से थोड़ा अधिक हैं.

विपक्ष का कहना है कि नीतीश की गिरती सेहत और बीजेपी-जेडीयू के बीच ‘बड़े भाई’ बनने की होड़ गठबंधन की एक कमजोरी हो सकती है. 2020 में बीजेपी ने 74 सीटें जीती थीं और दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी थी, जबकि जेडीयू को 43 सीटों पर जीत मिली थी.

जन सुराज: प्रशांत किशोर की नई चुनौती
चुनावी रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर ने जन सुराज पार्टी के जरिए खुद को तीसरे मोर्चे के रूप में पेश किया है. उन्होंने जाति आधारित राजनीति की जगह शासन व्यवस्था और मौजूदा दलों की विफलताओं को मुद्दा बनाया है. किशोर ने ऐलान किया है कि उनकी पार्टी सभी 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी. उन्होंने एनडीए नेताओं पर तीखे हमले किए हैं. उनके निशाने पर उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी, मंत्री अशोक चौधरी, मंगल पांडे और बीजेपी सांसद संजय जायसवाल रहे हैं.

दिलचस्प बात यह है कि जिन पर बीजेपी का ‘गुप्त समर्थन’ होने का आरोप लगता रहा है, वही प्रशांत किशोर अब एनडीए के नेताओं पर सबसे तीखे हमले कर रहे हैं. माना जा रहा है कि वे जल्द ही महागठबंधन के नेताओं को भी अपने निशाने पर ले सकते हैं, जिससे मतदाताओं में रोमांच और बढ़ गया है.

बिहार चुनाव में इन नेताओं की साख होगी दांव पर

नीतीश कुमार
JDU नेता नीतीश कुमार वर्तमान में मुख्यमंत्री हैं. उनके सामने 20 साल बाद सत्ता-विरोधी लहर और नेतृत्व की थकान से मुकाबले की चुनौती होगी. साथ ही उन्हें गठबंधन पर निर्भरता और अपनी राजनीतिक विरासत के बीच संतुलन भी बनाना होगा. अगर वह जीत जाते हैं तो बिहार के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री के रूप में पहचान पक्की होगी लेकिन इस बार उनकी पार्टी की हार होती है तो उनके राजनीतिक वर्चस्व का अंत माना जाएगा.

तेजस्वी यादव 
तेजस्वी यादव बिहार में विपक्ष के नेता हैं. इस चुनाव में उनके पास लालू यादव की छाया से बाहर निकलने का मौका है. साथ ही उनके सामने चुनौती है एमवाई (मुस्लिम-यादव) वोट बैंक से आगे आधार बढ़ाने की. अगर वह यह चुनाव जीत जाते हैं तो बिहार की युवा राजनीति का नया चेहरा बनेंगे, लेकिन हारे तो उनकी छवि हमेशा दूसरे नंबर पर रहने वाले नेता की बन सकती है.

चिराग पासवान 
लोजपा (रामविलास) के प्रमुख चिराग खुद को बिहार की राजनीति में नमक बता चुके हैं. वह बिहार में एनडीए का दलित चेहरा हैं. उनके सामने खेल बिगाड़ने वाले नेता की भूमिका से हटकर असली ताकतवर नेता बनने की चुनौती होगी. साथ ही साथ उनके समर्थक इस उम्मीद में होंगे कि दिल्ली की सियासत में गहरी पैठ वाले चिराग पटना में भी अपनी ताकत को सीटों में तब्दील करें. इस बार के चुनाव में अगर उनकी पार्टी का प्रदर्शन अच्छा रहता है तो राजनीति में उन्हें अलग ताकत हासिल होगी, लेकिन हार जाने पर उन्हें हाशिए पर जाना पड़ सकता है.

प्रशांत किशोर
बिहार के इस बार के चुनाव में सियासी गुणा-गणित में एक जाना पहचाना नाम खूब चर्चा में हैं.  बात हो रही है जन सुराज के प्रमुख प्रशांत किशोर की. चुनावी रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत सामने चुनौती है बिहार की दोध्रुवीय राजनीति को तोड़ना. इस चुनाव में उनकी करारी हार से उन पर राजनीति में अप्रासंगिक होने का खतरा होगा.

राहुल गांधी
कांग्रेस के नेता और केंद्र की राजनीति में अहम महत्व रखने वाले राहुल गांधी बिहार चुनाव में विपक्षी गठबंधन के स्टार प्रचारक रहे हैं. उनकी रैलियों में भीड़ भी दिखी लेकिन अब इस चुनाव में उनके नेतृत्व और पार्टी के जनाधार की बड़ी परीक्षा होगी. इंडिया गठबंधन में अपनी अहमियत साबित करने के लिए उन्हें कई अहम उपब्लधियों की बेहद जरूरत है. कांग्रेस का बिहार विधानसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन बिहार में पार्टी की वापसी और इंडिया गठबंधन में मजबूती की कहानी बयां करेगी, लेकिन अगर पार्टी को हार मिलती है तो फिर कांग्रेस और ज्यादा हाशिए पर चली जाएगी.

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