बागवानी में बढ़ी रूचि : चार साल में शाहपुरिया के 25 किसानों ने 200 एकड़ में लगाया बाग


खेत में लगाया गया अनार का बाग और बीच में लगाई गई सब्जी ।  संवाद

खेत में लगाया गया अनार का बाग और बीच में लगाई गई सब्जी । संवाद
– फोटो : Sirsa

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नरेश बैनीवाल
नाथूसरी चोपटा। नहरी पानी की कमी, बारिश समय पर ना होना, सेम की समस्या, फसलों में विभिन्न प्रकार की बीमारियां आने से किसानों को परंपरागत खेती से घाटा झेलना पड़ा रहा है। ऐसे में गांव शाहपूरिया के किसानों ने हौसला हारने के बजाय विभिन्न प्रकार के फलों के बाग लगा कर कमाई का जरिया खोजा।
गांव 25 किसानों ने करीब 200 एकड़ जमीन में अनार, अमरुद, बेरी, अंजीर सहित कई प्रकार की के फलों के बाग लगाए रखे हैं। इससे परंपरागत कृषि के साथ अतिरिक्त आमदन शुरू हो गई। फलों के पौधों की कतारों में सब्जियां लगाकर भी कमाई कर रहे हैं। लीक से हटकर कुछ करने के जज्बे ने गांव शाहपुरिया के किसानों को अलग पहचान भी दिलवाई। जिससे किसानों के लिए प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं।
पैंतालिसा क्षेत्र के गांव शाहपूरिया में रेतीली जमीन व नहरी पानी की कमी, सेम की समस्या के कारण किसानों ने परंपरागत खेती के साथ अतिरिक्त कमाई का जरिया खोजना शुरू किया। सरकार की बागवानी स्कीमों को देखते हुए किसानों ने बागवानी की तरफ रुख किया तो पिछले चार वर्ष में 25 किसानों ने 200 एकड़ में बाग लगा कर परंपरागत खेती के साथ अतिरिक्त कमाई शुरू कर दी। इन किसानों में राजवीर ने दस एकड़ में अनार का बाग लगाया। कृष्ण कुमार सिंवर ने 25 एकड़ में किन्नू और माल्टा का बाग लगाया। हनुमान राजपूत ने पांच एकड़ में अंजीर, रामकुमार कुलड़िया ने भी दो एकड़ में अंजीर, इंद्रपाल यादव ने दो एकड़ में अनार का बाग लगाया। इसके साथ ही हरी सिंह कुलड़िया ने 12 एकड़ में अनार किन्नू माल्टा का बाग लगा कर कमाई शुरू की। अनूप कुमार ने चार एकड़ में बेरी का बाग और चार एकड़ में अनार का, रामकुमार सिंवर ने चार एकड़ में अमरूद का, देवीलाल ने चार एकड़ में किन्नू माल्टा, सही राम गोदारा ने चार एकड़ में अनार और छह एकड़ में अमरूद का, ताराचंद यादव ने चार एकड़ में अनार का बाग लगा कर अतिरिक्त कमाई का जरिया खोजा। रावता राम ने पांच एकड़ में, धर्मपाल ने चार एकड़ अनार व दो एकड़ में अमरूद, किसान रतन लाल ने पांच एकड़ में किन्नू व अनार का बाग लगाया। मंगत राम ने पांच एकड़ में अनार का बाग लगाया। हनुमान सिंवर ने 1 एकड़ में नींबू व 3 एकड़ में अनार का बाग लगाया। बनवारी लाल ने दो एकड़ में अमरूद व एक एकड़ में अनार लगाया। बलवंत सिंवर ने दो एकड़ में अनार लगाया। मंगत राम सिंवर ने नौ एकड़ मे अनार का बाग लगाया। मेवा सिंह ने ढ़ाई एकड़ मे अनार का बाग लगाया। राजेंद्र बिछला ने दो एकड़ में अनार का बाग लगाया। इस प्रकार गांव के अन्य कई किसानों ने एक से लेकर 5 एकड़ तक जमीन पर बागवानी शुरू कर दी है। संवाद
किसान बोले- जमीन रेतीली, पानी भी नहीं तो लगाया बाग, अब मिल रहा है लाभ
इन किसानों बताया कि रेतीली जमीन और नहरी पानी की कमी के कारण परंपरागत खेती से बचत कम होने लगी। सरकार द्वारा चलाई गई बागवानी स्कीमों के तहत उन्होंने अपने खेतों में डिग्गियां इत्यादि बनाकर ड्रिप सिस्टम से सिंचाई शुरू कर दी। इससे पानी की बचत होने लगी तथा पौधों को सीधे उनकी जड़ों में खाद और पानी मिलने लगा। बागवानी के साथ-साथ परंपरागत खेती भी होने लगी। सब्जियों में टमाटर, प्याज, आलू, फूल गोभी, मटर, गाजर, भिंडी, घीया, करेला, बैंगन, हरी मिर्च, शिमला मिर्च, पत्ता गोभी, व मूली व तरबूज की खेती कर कमाई कर रहे हैं।
मंडी से परेशान है किसान, समाधान की मांग
किसानों ने कहा कि मंडी दूर होने के कारण यातायात खर्च ज्यादा हो जाता है। इससे फलों को वहां ले जाकर बेचने में यातायात खर्च ज्यादा आता है। तथा बचत कम होती है। उनका कहना है कि अगर फलों की मंडी या फ्रूट प्रोसेसिंग प्लांट नाथूसरी चोपटा में विकसित हो जाए तो यातायात खर्च कम होने से बचत ज्यादा हो जाएगी।

नरेश बैनीवाल

नाथूसरी चोपटा। नहरी पानी की कमी, बारिश समय पर ना होना, सेम की समस्या, फसलों में विभिन्न प्रकार की बीमारियां आने से किसानों को परंपरागत खेती से घाटा झेलना पड़ा रहा है। ऐसे में गांव शाहपूरिया के किसानों ने हौसला हारने के बजाय विभिन्न प्रकार के फलों के बाग लगा कर कमाई का जरिया खोजा।

गांव 25 किसानों ने करीब 200 एकड़ जमीन में अनार, अमरुद, बेरी, अंजीर सहित कई प्रकार की के फलों के बाग लगाए रखे हैं। इससे परंपरागत कृषि के साथ अतिरिक्त आमदन शुरू हो गई। फलों के पौधों की कतारों में सब्जियां लगाकर भी कमाई कर रहे हैं। लीक से हटकर कुछ करने के जज्बे ने गांव शाहपुरिया के किसानों को अलग पहचान भी दिलवाई। जिससे किसानों के लिए प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं।

पैंतालिसा क्षेत्र के गांव शाहपूरिया में रेतीली जमीन व नहरी पानी की कमी, सेम की समस्या के कारण किसानों ने परंपरागत खेती के साथ अतिरिक्त कमाई का जरिया खोजना शुरू किया। सरकार की बागवानी स्कीमों को देखते हुए किसानों ने बागवानी की तरफ रुख किया तो पिछले चार वर्ष में 25 किसानों ने 200 एकड़ में बाग लगा कर परंपरागत खेती के साथ अतिरिक्त कमाई शुरू कर दी। इन किसानों में राजवीर ने दस एकड़ में अनार का बाग लगाया। कृष्ण कुमार सिंवर ने 25 एकड़ में किन्नू और माल्टा का बाग लगाया। हनुमान राजपूत ने पांच एकड़ में अंजीर, रामकुमार कुलड़िया ने भी दो एकड़ में अंजीर, इंद्रपाल यादव ने दो एकड़ में अनार का बाग लगाया। इसके साथ ही हरी सिंह कुलड़िया ने 12 एकड़ में अनार किन्नू माल्टा का बाग लगा कर कमाई शुरू की। अनूप कुमार ने चार एकड़ में बेरी का बाग और चार एकड़ में अनार का, रामकुमार सिंवर ने चार एकड़ में अमरूद का, देवीलाल ने चार एकड़ में किन्नू माल्टा, सही राम गोदारा ने चार एकड़ में अनार और छह एकड़ में अमरूद का, ताराचंद यादव ने चार एकड़ में अनार का बाग लगा कर अतिरिक्त कमाई का जरिया खोजा। रावता राम ने पांच एकड़ में, धर्मपाल ने चार एकड़ अनार व दो एकड़ में अमरूद, किसान रतन लाल ने पांच एकड़ में किन्नू व अनार का बाग लगाया। मंगत राम ने पांच एकड़ में अनार का बाग लगाया। हनुमान सिंवर ने 1 एकड़ में नींबू व 3 एकड़ में अनार का बाग लगाया। बनवारी लाल ने दो एकड़ में अमरूद व एक एकड़ में अनार लगाया। बलवंत सिंवर ने दो एकड़ में अनार लगाया। मंगत राम सिंवर ने नौ एकड़ मे अनार का बाग लगाया। मेवा सिंह ने ढ़ाई एकड़ मे अनार का बाग लगाया। राजेंद्र बिछला ने दो एकड़ में अनार का बाग लगाया। इस प्रकार गांव के अन्य कई किसानों ने एक से लेकर 5 एकड़ तक जमीन पर बागवानी शुरू कर दी है। संवाद

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इन किसानों बताया कि रेतीली जमीन और नहरी पानी की कमी के कारण परंपरागत खेती से बचत कम होने लगी। सरकार द्वारा चलाई गई बागवानी स्कीमों के तहत उन्होंने अपने खेतों में डिग्गियां इत्यादि बनाकर ड्रिप सिस्टम से सिंचाई शुरू कर दी। इससे पानी की बचत होने लगी तथा पौधों को सीधे उनकी जड़ों में खाद और पानी मिलने लगा। बागवानी के साथ-साथ परंपरागत खेती भी होने लगी। सब्जियों में टमाटर, प्याज, आलू, फूल गोभी, मटर, गाजर, भिंडी, घीया, करेला, बैंगन, हरी मिर्च, शिमला मिर्च, पत्ता गोभी, व मूली व तरबूज की खेती कर कमाई कर रहे हैं।

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किसानों ने कहा कि मंडी दूर होने के कारण यातायात खर्च ज्यादा हो जाता है। इससे फलों को वहां ले जाकर बेचने में यातायात खर्च ज्यादा आता है। तथा बचत कम होती है। उनका कहना है कि अगर फलों की मंडी या फ्रूट प्रोसेसिंग प्लांट नाथूसरी चोपटा में विकसित हो जाए तो यातायात खर्च कम होने से बचत ज्यादा हो जाएगी।

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