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फर्जी एनकाउंटर केस में 2 पूर्व पुलिसकर्मी दोषी: मोहाली सीबीआई कोर्ट 4 फरवरी को सुनाएगी सजा; आर्मी जवान और नाबालिग को मारा था – Mohali News Chandigarh News Updates

फर्जी एनकाउंटर केस में 2 पूर्व पुलिसकर्मी दोषी:  मोहाली सीबीआई कोर्ट 4 फरवरी को सुनाएगी सजा; आर्मी जवान और नाबालिग को मारा था – Mohali News Chandigarh News Updates

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मोहाली सीबीआई अदालत ने दो पूर्व पुलिस कर्मियों को दोषी ठहराया।

पंजाब के अमृतसर जिले में 1992 में दो लोगों के फर्जी एनकाउंटर से जुड़े मामले में सीबीआई की विशेष अदालत ने दो पूर्व पुलिस मुलाजिमों को दोषी ठहराया है। दोषियों में पुरुषोत्तम सिंह तत्कालीन थानेदार मजीठा और एसआई गुरभिंदर सिंह शामिल हैं। उन्हें हत्या व साज

.

हालांकि उस समय वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों द्वारा दावा किया गया था कि उक्त दोनों कट्टर आतंकवादी थे, जिन पर इमाम घोषित था । वे हत्या, जबरन वसूली, डकैती आदि के सैकड़ों मामलों में शामिल थे। हरभजन सिंह उर्फ ​​शिंदी यानी पंजाब की बेअंत सिंह सरकार में तत्कालीन कैबिनेट मंत्री गुरमेज सिंह के बेटे की हत्या भी शामिल था। हालांकि असल में इनमें एक आर्मी का जवान और दूसरा 16 साल का नाबालिग था।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर शुरू की जांच

इस मामले की जांच सीबीआई ने 1995 ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर शुरू की थी। सीबीआई की जांच में सामने आया कि बलदेव सिंह उर्फ ​​देबा को 6 अगस्त 1992 एसआई मोहिंदर सिंह और हरभजन सिंह, तत्कालीन एसएचओ पीएस छहरटा के नेतृत्व वाली पुलिस पार्टी ने गांव बसेरके भैनी में उसके घर से उठाया था।

इसी तरह लखविंदर सिंह उर्फ ​​लक्खा फोर्ड निवासी गांव सुल्तानविंड को भी 12 सितंबर 1992 को प्रीत नगर अमृतसर में उसके किराए के घर से कुलवंत सिंह नामक एक व्यक्ति के साथ पकड़ा गया था, जिसका नेतृत्व एसआई गुरभिंदर सिंह, तत्कालीन एसएचओ पीएस मजीठा के नेतृत्व वाली पुलिस पार्टी ने किया था, लेकिन बाद में कुलवंत सिंह को छोड़ दिया गया था।

मोहाली सीबीआई अदालत में दो लोगों को दोषी करार दिया है।

फौजी छुट्‌टी पर घर आया हुआ था

अमृतसर जिले के भैणी बासकरे के फौजी जवान बलदेव सिंह देवा को जब वह छुट्‌टी आया हुआ था। पुलिस ने उसे अपनी हिरासत में ले लिया था। इसके बाद झूठा पुलिस मुकाबला दिखाकर उसकी हत्या कर दी थी। दूसरा मामला 16 साल के नाबालिग लखविदंर सिंह की हत्या से जुड़ा हुआ था। उसे भी इसी भी तरह घर से उठाकर मारा था।

लेकिन इसके बाद उसका कोई सुराग नहीं लग पाया था। काफी समय तक परिवार वाले उनकी तलाश करते रहे। उन्होंने इस मामले में अदालत तक जंग लड़ी। इसके बाद इन मामलों की जांच पर पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी।

CBI जांच में पुलिस की कहानी पड़ गई झूठी

जांच के दौरान, सीबीआई ने पाया कि पुलिस स्टेशन छेहरटा की पुलिस ने मंत्री के बेटे की हत्या के मामले में देबा और लक्खा को झूठा फंसाया। जिसकी हत्या 23.7.1992 को हुई थी और उसके बाद 12.9.1992 को छेहरटा पुलिस ने उस हत्या के मामले में बलदेव सिंह उर्फ ​​देबा की गिरफ्तारी दिखाई थी और 13.9.1992 को दोनों मारे गए और पुलिस ने कहानी गढ़ी कि हथियार और गोला-बारूद की बरामदगी के लिए बलदेव सिंह उर्फ ​​देबा को गांव संसारा के पास ले जाते समय आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ हुई।

इसमें बलदेव सिंह उर्फ ​​देबा और एक हमलावर मारा गया, जिसकी बाद में पहचान लखविंदर सिंह उर्फ ​​लक्खा उर्फ ​​फोर्ड के रूप में हुई। सीबीआई ने निष्कर्ष निकाला कि दोनों को उठाया गया, अवैध हिरासत में रखा गया और फिर फर्जी मुठभेड़ में मार दिया गया।

पोस्टमार्टम से भी पुलिस का झूठा आया सामना

सीबीआई ने यह भी पाया कि पुलिस द्वारा दिखाए गई मुठभेड़ की कथित घटना पर पुलिस वाहनों के दौरे के बारे में लॉग बुक में कोई प्रविष्टि नहीं थी। यहां तक ​​कि पुलिस ने यह भी दिखाया कि मुठभेड़ के दौरान मारे गए अज्ञात हमलावर आतंकवादी की पहचान घायल बलदेव सिंह देबा ने की थी,। हालांकि देबा की पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार उसकी तुरंत मृत्यु हो गई थी, इसलिए उसके द्वारा पहचान की दलील नहीं उठती।

32 गवाहों से 19 की हो चुकी है मौत

30.8.1999 को सीबीआई ने एसएस सिद्धू, हरभजन सिंह, मोहिंदर सिंह, पुरुषोत्तम लाल, चमन लाल, गुरभिंदर सिंह, मोहन सिंह, पुरुषोत्तम सिंह और जस्सा सिंह के खिलाफ अपहरण, आपराधिक साजिश, हत्या, झूठे रिकॉर्ड तैयार करने के लिए चार्जशीट दायर की। लेकिन गवाहों के बयान 2022 के बाद दर्ज किए गए। क्योंकि इस अवधि के दौरान उच्च न्यायालयों के आदेशों पर मामला स्थगित रहा।

पीड़ित परिवार के वकील सरबजीत सिंह वेरका ने कहा कि हालांकि सीबीआई ने इस मामले में 37 गवाहों का हवाला दिया था, लेकिन मुकदमे के दौरान केवल 19 गवाहों के बयान दर्ज किए गए हैं क्योंकि सीबीआई द्वारा उद्धृत अधिकांश गवाहों की देरी से सुनवाई के दौरान मृत्यु हो गई थी और अंत में घटना के 32 साल बाद न्याय मिला है।

इसी तरह इस विलंबित मुकदमे के दौरान, आरोपी हरभजन सिंह, मोहिंदर सिंह, पुरुषोत्तम लाल, मोहन सिंह और जस्सा सिंह की भी मृत्यु हो गई थी और आरोपी एसएस सिद्धू तत्कालीन डीएसपी, अमृतसर, चमन लाल तत्कालीन सीआईए इंचार्ज, अमृतसर, गुरभिंदर सिंह तत्कालीन एसएचओ पीएस मजीठा और एएसआई पुरुषोत्तम सिंह ने इस मामले में मुकदमे का सामना किया।

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