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तालिबान के काबुल पर कंट्रोल के बाद कुछ लोगों ने अमेरिकी प्लेन के पहिए पर लटककर देश छोड़ने की कोशिश की थी, उनमें से कुछ की गिरकर मौत हो गई थी।
अफगानिस्तान में 15 अगस्त को तालिबान हुकूमत के चार साल हो गए हैं। 2021 में आज के दिन ही तालिबान लड़ाकों ने राजधानी काबुल पर कब्जा कर लिया था। इसके बाद आम लोग हड़बड़ी में देश छोड़कर भागने लगे।
अफगानी नागरिक बस किसी भी तरह देश से बाहर निकलना चाहते थे, इसलिए कुछ लोग अमेरिकी प्लेन के पहिए से लटक गए थे, इस दौरान कुछ लोगों की आसमान से गिरने से मौत हो गई।
दूसरी तरफ 20 साल तक तालिबान से लड़ने वाले अमेरिका ने अपने लोगों को निकालने के लिए स्पेशल हेलिकॉप्टर भेजा। वहीं, तालिबान के काबुल पहुंचते ही राष्ट्रपति अशरफ गनी हेलिकॉप्टर से देश छोड़कर भाग निकले।
काबुल में रूसी दूतावास ने दावा किया था कि गनी अपने साथ हेलिकॉप्टर में 169 मिलियन डॉलर (करीब 1400 करोड़ रुपए) लेकर भागे थे। हालांकि गनी ने इन सभी दावों को सिरे से खारिज किया था।

काबुल पर तालिबान के कंट्रोल के बाद कई लोग देश छोड़ने के लिए इंटरनेशनल एयरपोर्ट में घुस गए थे।

प्लेन में जगह नहीं मिलने पर कुछ लोग प्लेन के पहिए पर चढ़ गए थे। इस दौरान कुछ हादसे का शिकार हो गए।

अमेरिका ने अपने डिप्लोमैट्स को काबुल से निकालने के लिए स्पेशल प्लेन भेजा था।

अफगानिस्तान छोड़ने के लिए लोग कंटीली बाड़ फांद कर इंटरनेशनल एयरपोर्ट के अंदर जाने की कोशिश कर रहे थे।

काबुल पर कब्जे के बाद अफगानी नेताओं ने अपने समर्थकों के साथ पब्लिक मीटिंग की थी।

अमेरिका जाने के लिए 600 से ज्यादा अफगान नागरिक मिलिट्री प्लेन में सवार हो गए थे।

देश छोड़ने के लिए अमेरिकी सैनिकों को अपने डॉक्यूमेंट्स दिखाते अफगानी नागरिक।
बीते चार सालों में तालिबान ने महिलाओं की पढ़ाई-लिखाई बंद करके उन्हें चार दीवारी में बंद कर दिया है। जबकि पाकिस्तान के साथ आए दिन बॉर्डर पर हिंसक झड़पें होती रहती हैं। आगे स्टोरी में जानिए चार साल में अफगानिस्तान कितना बदला है…
अफगानिस्तान में सबसे गंभीर महिला संकट
तालिबान के सत्ता में लौटने के बाद अफगान महिलाओं को सबसे ज्यादा मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। ह्यूमन राइट्स वॉच की 2024 की रिपोर्ट के मुताबिक अफगानिस्तान में दुनिया का सबसे गंभीर महिला अधिकार संकट है।
अगस्त 2025 में जारी यूएन विमेन और केयर इंटरनेशनल रिपोर्ट के मुताबिक, सितंबर 2023 से अब तक 24.3 लाख से ज्यादा अफगान शरणार्थी ईरान और पाकिस्तान से वापस लौटे हैं, जिनमें से एक तिहाई (लगभग 8 लाख) महिलाएं और लड़कियां हैं। ये महिलाएं गरीबी, बाल विवाह, हिंसा, शोषण और सरकारी प्रतिबंधों से जूझ रही हैं।

दोस्त से दुश्मन बने पाकिस्तान और अफगान तालिबान
तालिबान ने 2021 में जब काबुल पर कब्जा किया था तब पाकिस्तान के तत्कालीन पीएम इमरान खान ने कहा था कि अफगानों ने गुलामी की जंजीरें तोड़ दी हैं।
लेकिन बीते चार सालों में हालात पूरी तरह बदल चुके हैं। अब पाकिस्तान के आर्मी चीफ आसिम मुनीर तालिबान से अपील कर रहे हैं कि वो पाकिस्तानी तालिबान (TTP) पर कार्रवाई करे।
पाकिस्तान चाहता है कि तालिबान, TTP पर कार्रवाई करे, लेकिन तालिबान इसे पाकिस्तान का आंतरिक मामला बताकर दखल देने से इनकार कर चुका है।
अफगानिस्तान की पूर्व राजदूत रोया रहमानी का कहना है कि तालिबान की TTP से वैचारिक और ऐतिहासिक नजदीकी के कारण वह उस पर कार्रवाई नहीं करेगा, जिससे तनाव और बढ़ेगा।
इसके अलावा अफगान तालिबान डूरंड लाइन को इंटरनेशनल बॉर्डर मानने के लिए तैयार नहीं है। यह लाइन पश्तूनों (पख्तून) को दो देशों में बांटती है, जिसे अफगानिस्तान नहीं मानता है। यहां पर भी अक्सर दोनों देशों के सैनिकों में खूनी झड़प होती रहती है।

तालिबान 1.0 और 2.0 में अंतर
तालिबान ने अपनी पिछली हुकूमत (1996 से 2001) के मुकाबले इस बार अपनी स्ट्रैटजी में कई बदलाव किए हैं। ह्यूमन राइट्स वॉच की रिसर्चर फेरेश्ता अब्बासी ने मुताबिक, तालिबान 2.0 की नीतियां तालिबान 1.0 की तरह ही दमनकारी हैं, लेकिन उनकी जनसंपर्क रणनीति और रीजनल डिप्लोमेसी में बड़ा बदलाव है।
वहीं, मंत्रया इंस्टीट्यूट की एक एक्सपर्ट के मुताबिक तालिबान 2.0 की विदेश नीति ज्यादा व्यावहारिक है, लेकिन उनकी विचारधारा में कोई बदलाव नहीं है।
विदेश नीति में बदलाव- तालिबान 1.0 की विदेश नीति अलगाववादी थी, जिसमें कट्टर इस्लामी कानूनों पर जोर था। इसके उलट, तालिबान 2.0 ने भारत, चीन, ईरान और रूस जैसे रीजनल पावर के साथ अपने डिप्लोमैटिक संबंधों को बढ़ावा दिया है।
मीडिया का इस्तेमाल- तालिबान 2.0 ने मीडिया के इस्तेमाल को लेकर ज्यादा समझदारी दिखाई है। 2021 में तख्तापलट के बाद तालिबान की पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में उसके प्रवक्ता जबिहुल्लाह मुजाहिद ने महिलाओं के अधिकारों और शांतिपूर्ण शासन की बात की थी।
इकोनॉमिक मैनेजमेंट- तालिबान 2.0 ने खुद को लगातार आर्थिक तौर पर स्थिर रखने की कोशिश की है। ब्रूकिंग्स की 2023 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, तालिबान ने अफगान करेंसी को स्थिर किया, महंगाई को कम किया और एक्सपोर्ट को बढ़ावा दिया।
इसके उलट तालिबान 1.0 में आर्थिक विकास पर कम ध्यान था। सरकार इनकम के लिए मुख्य तौर पर अफीम की खेती और बॉर्डर टैक्स पर निर्भर थी।
sources:
- https://www.aljazeera.com/news/2024/12/28/analysis-why-have-pakistans-ties-with-the-afghan-taliban-turned-frigid
- https://www.hrw.org/news/2025/08/05/afghanistan-relentless-repression-4-years-into-taliban-rule
- https://www.researchgate.net/publication/393492952_Taliban_10_and_20_in_Afghanistan_Same_Policies_Persistent_Vision
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