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प्रो. चेतन सिंह सोलंकी आईआईटी बॉम्बे में प्रोफेसर
हर मां अपने बच्चे को जो प्रारंभिक सबक देती है, उसमें से एक है दांतों को ब्रश करना और बताना कि कैसे हर सुबह और शाम ब्रश करना हमारे मुंह के स्वास्थ्य के लिए जरूरी है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि दांतों को ब्रश करना भी नुकसानदेह हो सकता है? अजीब लगता है ना? यकीनन, इस विषय पर आपसे पहले कभी किसी ने चर्चा नहीं की होगी।
दांतों को ब्रश करना एक रोजमर्रा की हानिरहित गतिविधि लगती है। लेकिन जब आप इस प्रक्रिया को करीब से देखेंगे, तब आपको इसका असर पता चलेगा। पूरी दुनिया में खपत होने वाली ऊर्जा का 80 से 85% कार्बन आधारित स्रोतों से आता है, जैसे कोयला, तेल और गैस। यानी हर बार, जब हम ऊर्जा या सामग्री का उपयोग करते हैं, कार्बन-उत्सर्जन होता है।
दांत ब्रश करने के लिए क्या-क्या चाहिए? सबसे पहला है, टूथपेस्ट। इसे बनाने में लगने वाली मशीनें और उपकरण बिजली से चलते हैं। ये मशीनें भी कभी मैन्युफैक्चर हुई होंगी। इनके निर्माण और टूथपेस्ट के कारखानों में लगने वाली बिजली के कारण कार्बन उत्सर्जन होता है। आप टूथपेस्ट-ट्यूब अकेली नहीं खरीदते। यह सुंदर चमकीले गत्ते के डिब्बे में पैक होती है। गत्ते के उत्पादन और उस पर छपाई में भी ऊर्जा लगती है, जिससे और कार्बन उत्सर्जन होता है।
टूथपेस्ट की फैक्ट्री घर के आस-पास नहीं है ना। ये 500 या 1000 किमी दूर होगी। इसका मतलब है कि टूथपेस्ट का सफर है, फैक्ट्री से गोदाम, गोदाम से आस-पास की दुकान, फिर हमारा घर। पूरी प्रक्रिया में ट्रांसपोर्टेशन भी हुआ यानी फिर से ऊर्जा की खपत।
वह दुकान जहां से आप टूथपेस्ट खरीदते हैं, वहां पंखे, लाइट्स आदि बिजली से चलते हैं और हम भी अधिकांशतः दुकान तक पैदल तो नहीं जाते, किसी वाहन से वहां जाते हैं। यानी हर कदम पर ऊर्जा की खपत और कार्बन उत्सर्जन। टूथपेस्ट अकेला काफी नहीं, टूथब्रश भी चाहिए, जो कि मैन्युफैक्चरिंग के बाद पैक होगा, ट्रांसपोर्ट होगा, गोदाम तक जाएगा और फिर दुकान तक पहुंचेगा और अंत में आपके घर।
दांत ब्रश करने के लिए पानी भी लगेगा। हमारे बाथरूम तक पानी लोहे के पाइप से आता है और लोहे के खनन से आपके घर पर पाइप लगने की प्रक्रिया बहुत लम्बी है, जिसमें कि बहुत सारी ऊर्जा लगती है। हमारे सिरेमिक के वॉश बेसिन के बनने में बहुत उच्च तापमान, लगभग 1500 से 1800 डिग्री सेल्सियस की जरूरत होती है और सुबह चेहरा देखने के लिए हम जिस दर्पण का उपयोग करते हैं, उसको बनाने में भी 700 से 800 डिग्री सेल्सियस तापमान लगता है। फिर हमारा बाथरूम भी सभी ओर से बंद होता है, हम बल्ब जलाते हैं यानी फिर से बिजली, मतलब ऊर्जा!
आपको आश्चर्य हो रहा होगा कि दांत-ब्रश करने जैसे रोजमर्रा के साधारण-से काम के लिए इतने सारे संसाधनों और इतनी सारी ऊर्जा चाहिए। लेकिन चिंता ना करें, मैं आपको ब्रश करना बंद करने को नहीं कह रहा हूं। यह एक महत्वपूर्ण गतिविधि है।
इस लेख का उद्देश्य आपको जागरूक करना है कि हमारी साधारण-सी हानिरहित लगने वाली गतिविधि में भी बड़ी मात्रा में ऊर्जा लगती है और भारी मात्रा में कार्बन उत्सर्जन होता है। अब सोचें कि हम दिन भर में क्या-क्या करते हैं- खाना बनाना, यात्रा करना, काम करना और अनगिनत सामग्रियों का उपयोग करना- ये सभी कार्बन उत्सर्जन का कारण बनते हैं। जितनी बार हम कार्बन डाइ ऑक्साइड उत्सर्जित करते हैं, उतनी बार ग्रीनहाउस गैस बढ़ाते हैं, जिसका परिणाम है, ग्लोबल वार्मिंग और अंततः जलवायु परिवर्तन।
हमारे लिए यह मानना जरूरी है कि जलवायु खुद से नहीं बदली, इसका बड़ा कारण है ऊर्जा और सामग्री का उपयोग करने वाले हम लोग, जो हर दिन जलवायु परिवर्तन में योगदान दे रहे हैं। प्रत्येक व्यक्ति, अमेरिकी हो या अफ्रीकी या भारतीय, शहरी हो या ग्रामीण, युवा हो या वृद्ध, सभी जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार हैं। पर क्या आप समाधान का हिस्सा बनने के लिए तैयार हैं? (ये लेखक के अपने विचार हैं)
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प्रो. चेतन सिंह सोलंकी का कॉलम: रोजमर्रा की मामूली चीजों के लिए भी ऊर्जा खपत होती है