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पृथ्वी पर लौटने वाले Astronauts को करना पड़ता है ‘बेबी फीट’ जैसी चुनौतियों का सामना – India TV Hindi Today World News

पृथ्वी पर लौटने वाले Astronauts को करना पड़ता है ‘बेबी फीट’ जैसी चुनौतियों का सामना – India TV Hindi Today World News

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अंतरिक्ष यात्री

Astronauts Baby Feet Problem: अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के अंदर अंतरिक्ष यात्रियों को हवा में तैरते देखना भले ही मजेदार लगता हो, लेकिन वहां गुरुत्वाकर्षण नहीं होने का असर धरती पर लौटने के बाद अंतरिक्ष यात्रियों पर लंबे समय तक रहता है। धरती पर आने के बाद अंतरिक्ष यात्रियों को चक्कर आने, बात करने और चलने में दिक्कत जैसी चुनौतियों से जूझना पड़ता है। 

बेबी फीट क्या है?

विभिन्न अंतरिक्ष मिशन के तहत यात्रा कर चुके कई अंतरिक्ष यात्रियों ने पृथ्वी पर लौटने के बाद चलने में कठिनाई, देखने में दिक्कत, चक्कर आने तथा ‘बेबी फीट’ नाम की स्थिति जैसी चुनौतियों का सामना करने की बात कही है। ‘बेबी फीट’ का तात्पर्य है कि अंतरिक्ष यात्रियों के तलवों की त्वचा का मोटा हिस्सा निकल जाता है और उनके तलवे बच्चे की तरह मुलायम हो जाते हैं। 

पृथ्वी के अनुसार जीवन ढालने में लगता है वक्त

ह्यूस्टन स्थित ‘बेलर कॉलेज ऑफ मेडिसिन’ ने अंतरिक्ष में शरीर में होने वाले बदलावों के बारे में कहा, ‘‘जब अंतरिक्ष यात्री पृथ्वी पर वापस लौटते हैं तो उन्हें पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के अनुसार तुरंत फिर से ढलना पड़ता है। उन्हें खड़े होने, अपनी दृष्टि को स्थिर करने, चलने और मुड़ने में समस्या हो सकती है। पृथ्वी पर लौटने वाले अंतरिक्ष यात्रियों को उनकी बेहतरी के लिए पृथ्वी पर लौटने के तुरंत बाद अक्सर एक कुर्सी पर बिठाया जाता है।’’ अंतरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी पर जीवन के अनुसार स्वयं को फिर से ढालने में कई सप्ताह लगते हैं।

अंतरिक्ष यात्री

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अंतरिक्ष यात्री

अंतरिक्ष में यह भी होता है

जापानी अंतरिक्ष एजेंसी ‘जेएएक्सए’ ने कहा, ‘‘जब आप पृथ्वी पर वापस आते हैं, तो आप पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के प्रभावों का फिर से अनुभव करते हैं और इस प्रकार कभी-कभी ‘ग्रैविटी सिकनेस’ हो जाती है, जिसके लक्षण ‘स्पेस सिकनेस’ जैसे ही होते हैं।’’ पृथ्वी पर गुरुत्वाकर्षण रक्त और अन्य शारीरिक तरल पदार्थों को शरीर के निचले हिस्से की ओर खींचता है, लेकिन अंतरिक्ष में भारहीनता के कारण अंतरिक्ष यात्रियों के शरीर में ये तरल पदार्थ शरीर के ऊपरी हिस्सों में जमा हो जाते हैं और इसी कारण वो फूले हुए नजर आते हैं। जेएएक्सए ने कहा, ‘‘पृथ्वी पर लौटने वाले अंतरिक्ष यात्रियों को खड़े होने पर अक्सर चक्कर आते हैं। इस स्थिति को ‘ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन’ कहा जाता है। गुरुत्वाकर्षण की कमी के कारण हड्डियों के घनत्व में काफी और अक्सर अपूरणीय कमी आती है। 

अंतरिक्ष यात्रियों के लिए जरूरी है यह काम

नासा के अनुसार, अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर अंतरिक्ष यात्रियों के लिए एक सख्त व्यायाम व्यवस्था है। नासा ने कहा, ‘‘अंतरिक्ष यात्रियों को शून्य गुरुत्वाकर्षण के कारण हड्डियों और मांसपेशियों को होने वाले नुकसान से बचाने के लिए ‘ट्रेडमिल’ या स्थिर साइकिल का उपयोग करके प्रतिदिन 2 घंटे व्यायाम करना आवश्यक है। यह व्यायाम नहीं करने पर अंतरिक्ष यात्री महीनों तक अंतरिक्ष में तैरने के बाद पृथ्वी पर लौटने के बाद चलने या खड़े होने में असमर्थ रहेंगे।’’ 

अंतरिक्ष यात्री

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अंतरिक्ष यात्री

महसूस होता है होठ और जीभ का वजन

कनाडाई अंतरिक्ष यात्री क्रिस हैडफील्ड ने बताया कि उन्हें अंतरिक्ष में जीभ के भारहीन होने के कारण 2013 में अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन से लौटते पर बात करते समय दिक्कत हुई। हैडफील्ड ने कहा , ‘‘पृथ्वी पर लौटने के तुरंत बाद मैं अपने होठों और जीभ का वजन महसूस कर सकता था और मुझे अपनी बातचीत का तरीका बदलना पड़ा। मुझे एहसास ही नहीं हुआ था कि मुझे भारहीन जीभ से बात करने की आदत हो गई थी।’’ रोग प्रतिरोधी क्षमता कमजोर हो जाने के कारण पृथ्वी पर लौटने पर अंतरिक्ष यात्रियों को संक्रमण और बीमारी का खतरा भी अधिक रहता है। (भाषा)

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