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लोहड़ी पर लाहौर के गद्दाफी स्टेडियम में डांस करती महिलाएं।
भारत के साथ पाकिस्तान के लहंदा पंजाब (पश्चिमी पंजाब) में भी सोमवार को लोहड़ी का त्योहार मनाया गया। यह 57 साल में दूसरा मौका है, जब पंजाबी कम्युनिटी के लोगों ने पाकिस्तान में लोहड़ी पर आग जलाई और भांगड़ा किया। लोग लाहौर के गद्दाफी स्टेडियम में त्योहार मन
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साल 1968 में जिया-उल -हक के सत्ता संभालने के बाद पाकिस्तान में लोहड़ी का त्योहार मनाना बंद किया गया था। यह त्योहार राय अब्दुल्ला खान भट्टी (दुल्ला भट्टी) के नाम से जुड़ा है। लोहड़ी के गीत में भी दुल्ला भट्टी के नाम का जिक्र है। दुल्ला भट्टी को आजादी से पहले पंजाब का मुस्लिम रॉबिन हुड कहा जाता था।
साल 1947 में विभाजन के बाद, मुस्लिम बहुल पश्चिमी पंजाब में दुल्ला भट्टी लगभग भुला दिए गए, लेकिन भारत में आज भी लोहड़ी का त्योहार मनाया जाता है। अब पाकिस्तान में रह रही पंजाबी कम्युनिटी ने पिछले साल से लोहड़ी दोबारा मनानी शुरू की है।
पाकिस्तान में लोहड़ी सेलिब्रेशन की तस्वीरें
लोहड़ी पर गद्दाफी स्टेडियम में भांगड़ा डालते युवा।
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लोहड़ी का त्योहार मनाने के लिए गद्दाफी स्टेडियम में आग भी जलाई गई थी।
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महिलाओं, बुजुर्ग और बच्चों ने भी भांगड़ा डाला।
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लोहड़ी सेलिब्रेशन में पाकिस्तान के गद्दाफी स्टेडियम में भांगड़ा डालते हुए पंजाबी।
इतिहासकार बाजवा बोले- जिया उल हक ने बदलाव किए पाकिस्तानी इतिहासकार अली उस्मान बाजवा ने कहा कि बैसाखी और लोहड़ी पंजाब के सांस्कृतिक त्योहार हैं। इन त्योहारों का न मनाना हमारे इतिहास से अलगाव के समान है। जनरल जिया-उल -हक के सत्ता संभालते ही पाकिस्तान में लोहड़ी का त्योहार मनाना बंद कर दिया गया। उन्होंने कई बदलाव किए, जिनसे बैसाखी और लोहड़ी पर असर पड़ा।
दलित समुदाय और दुल्ला भट्टी का कनेक्शन पाकिस्तानी लेखक और वकील नैन सुख (असली नाम खालिद महमूद) ने बताया कि लोहड़ी का त्योहार पाकिस्तान में दलित समुदाय, विशेष रूप से वाल्मीकि समाज में अधिक लोकप्रिय था। दुल्ला भट्टी ने अपनी बहन समान एक दलित लड़की के साथ खाना साझा किया था। वाल्मीकि समाज इस त्योहार पर जुलूस निकालता था और कुश्ती प्रतियोगिताएं कराता था।
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पाकिस्तान की मियानी साहिब कब्रिस्तान में दुल्ला भट्टी की कब्र है।
कौन हैं दुल्ला भट्टी, जिनका जिक्र लोहड़ी से जुड़ा लोककथाओं के अनुसार, दुल्ला भट्टी का जन्म 16वीं सदी में वर्तमान पश्चिमी पंजाब के पिंडी भट्टियां गांव में हुआ था। उनके पिता और चाचा को मुगल बादशाह अकबर ने फांसी दे दी थी। यह बात दुल्ला से छिपाई गई, लेकिन बाद में जब उन्हें पता चला तो वे विद्रोही बन गए।
दुल्ला भट्टी की लोकप्रियता का एक बड़ा कारण उनका गरीब ब्राह्मण परिवार की बेटियां सुंदर और मुंदर को बचाना था। यह वही कहानी है, जिस पर प्रसिद्ध लोहड़ी गीत ‘सुंदरिए-मुंदरिए हो, तेरा कोन विचारा हो, दुल्ला भट्टी वाला हो’ आधारित है।
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पाकिस्तान में 57 साल में दूसरी बार लोहड़ी मनाई गई: जिया-उल-हक ने बंद कराई थी; पंजाबी कम्युनिटी ने आग जलाकर भांगड़ा किया – Amritsar News