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स्कूल न जाने वाले बच्चों में लड़कियों की स्थिति सबसे ज्यादा खराब है।
पड़ोसी देश पाकिस्तान आर्थिक संकट के साथ-साथ एक गंभीर शिक्षा संकट का भी सामना कर रहा है। पाकिस्तान में 5 से 16 साल की उम्र के तकरीबन 2.53 करोड़ बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं। ये आंकड़ा देश के कुल स्कूल जाने योग्य बच्चों की आबादी का 36% है। इसमें सबसे बदतर हालात ग्रामीण इलाकों के हैं।
इस बात का खुलासा ‘द मिसिंग थर्ड ऑफ पाकिस्तान’ नाम की रिपोर्ट में हुआ है। इस रिपोर्ट को पाक अलांयस फॉर मैथ्स एंड साइंस ने 2023 के जनगणना के आंकड़ों के आधार पर तैयार किया है। इस रिपोर्ट ने ‘पाकिस्तान में स्कूलों से बाहर बच्चों’ (OOSC) की चौंकाने वाली स्थिति पर फोकस किया है।
रिपोर्ट ने पाकिस्तान के ऐजुकेशन सिस्टम की अहम खामियों को उजागर किया है। इसमें बताया गया है कि पाकिस्तान के 74% बच्चे ग्रामीण इलाकों में रहते हैं। इन इलाकों में स्कूलों तक पहुंच की कमी, गरीबी और सामाजिक समस्याओं की वजह से बच्चों को स्कूल तक लाने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

स्कूल न जाने वाले बच्चों में 1.88 करोड़ ग्रामीण इलाकों के बच्चे हैं। इससे ग्रामीण और शहरी शिक्षा दर में अंतर बढ़ता जा रहा है।
5 से 9 साल के बच्चों पर सबसे ज्यादा असर रिपोर्ट बताती है कि शिक्षा संकट का सामना सबसे ज्यादा 5 से 9 साल के बच्चे कर रहे हैं। इनमें से 51% ने कभी स्कूल में एडमिशन ही नहीं लिया। वहीं तकरीबन 50% बच्चे स्कूल से बाहर हो चुके हैं या अब स्कूल नहीं जा रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक इस शिक्षा संकट का पाकिस्तान की साक्षरता दर पर लंबे समय तक असर देखने को मिलेगा।
दूसरी तरफ ग्रामीण इलाकों में एडमिशन में देरी की एक प्रमुख वजह आर्थिक परिस्थितियां हैं, जिसकी वजह से बच्चे स्कूल नहीं पहुंच पाते हैं। वहीं लिंगानुपात इस समस्या को और अधिक बढ़ा रहा है। रिपोर्ट में बताया गया है कि स्कूल न जाने वालों में 53% लड़कियां हैं। ग्रामीण इलाकों में ये समस्या ज्यादा बड़ी है। यहां महिला साक्षरता दर पहले से ही कम है।

पाकिस्तान स्कूल न जाने वाले बच्चों की संख्या के लिहाज से दुनिया में दूसरे नंबर पर आता है।
ग्रामीण इलाकों में 80% लड़कियां कभी स्कूल नहीं गई इस रिपोर्ट ने खुलासा किया है कि पाकिस्तान के ग्रामीण इलाकों में 5 से 16 की 80% लड़कियों ने कभी स्कूल में एडमिशन ही नहीं लिया। ये आंकड़ा ऐजुकेशन सिस्टम में लैंगिक असमानता को दर्शाता है। शहरी क्षेत्र जो अक्सर शिक्षा के लिहाज से बेहतर समझे जाते हैं, उन क्षेत्रों में भी यह समस्या दिखाई पड़ती है।
कराची और लाहौर जैसे बड़े शहरों में कैपिटल सिटी होने की वजह से शिक्षा के लिए बेहतर संसाधन उपलब्ध है। फिर भी इन शहरों में स्कूल न जाने वाले बच्चों की संख्या ज्यादा है। कराची में 18 लाख बच्चों का स्कूल में नामांकन ही नहीं है। जो दर्शाता है कि यह समस्या कितनी बड़ी है।
इस मुद्दे को लेकर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने मई की शुरुआत में इसे इमरजेंसी घोषित किया था। हालांकि अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं।
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आर्थिक तंगहाली के बीच पाकिस्तान के सांसद सैयद मुस्तफा कमाल ने नेशनल असेंबली में भारत की शिक्षा व्यवस्था की तुलना पाकिस्तान की शिक्षा व्यवस्था से की। उन्होंने कहा, “जहां एक तरफ दुनिया चांद पर जा रही है, वहीं दूसरी तरफ कराची के बच्चे गटर में गिरकर मर रहे हैं।”
सैयद मुस्तफा ने कहा, “30 साल पहले, हमारे पड़ोसी भारत ने अपने बच्चों को वह सिखाया जिसकी आज पूरी दुनिया में मांग है। आज टॉप 25 कंपनियों के CEO भारतीय हैं। आज अगर भारत तरक्की कर रहा है तो उसकी वजह ये है कि वहां वो सिखाया गया जो जरूरी था। पाकिस्तान का IT एक्सपोर्ट आज 7 अरब डॉलर है, जबकि भारत का IT एक्सपोर्ट 270 अरब डॉलर है।” पूरी खबर यहां पढ़ें…
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पाकिस्तान में 2.5 करोड़ बच्चे स्कूल नहीं जा रहे: इनमें 1.88 करोड़ ग्रामीण इलाकों से, 53% लड़कियां स्कूली शिक्षा से मोहताज