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पवन के. वर्मा का कॉलम: भारत-पाकिस्तान की कहानी में नैरेटिव अब हमारे हाथ में हो Politics & News

पवन के. वर्मा का कॉलम:  भारत-पाकिस्तान की कहानी में नैरेटिव अब हमारे हाथ में हो Politics & News

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4 मिनट पहले

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पवन के. वर्मा पूर्व राज्यसभा सांसद व राजनयिक

ऑपरेशन सिंदूर का संदेश स्पष्ट है : भारत राज्य-प्रायोजित आतंकवाद का निष्क्रिय शिकार नहीं बनेगा और पाकिस्तान को इसके परिणामों का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। लेकिन अब यह महत्वपूर्ण है कि अब हम नैरेटिव की कमान संभालें और प्रतिक्रिया करने के बजाय इसे सक्रिय रूप से नियंत्रित करें।

अतीत में हम या तो कुछ नहीं करते थे, या केवल ठोस कदम उठाने की चेतावनी देते थे, या दुनिया से संयम और अच्छे आचरण का प्रमाण-पत्र लेने की तत्परता दिखाते थे। जब 1999 में कारगिल में हमारी सीमाओं में घुसपैठ की पुष्टि हुई, तो हम घुसपैठियों को बाहर निकालने में तो कामयाब रहे, लेकिन हमारे सैकड़ों युवा अधिकारियों और सैन्यकर्मियों की जान की भारी कीमत चुकाकर।

क्योंकि हमलावर ऊंची जगहों पर बैठे थे और आसानी से हमारे बहादुर फौजियों को निशाना बना सकते थे। उस समय कोई भी दूसरा देश होता तो नियंत्रण रेखा के पार सैनिकों को पैराशूट से उतार देता और हमलावरों के लिए आपूर्ति-लाइनें बंद कर देता।

2001 में लश्कर-ए-तैयबा ने भारतीय संसद पर भी हमला किया था। जवाब में हमने सीमा पर सैनिकों की भारी तैनाती के अलावा कुछ नहीं किया। 2008 में मुंबई में हमला हुआ, जिसमें 166 निर्दोष भारतीय मारे गए। कोई संदेह नहीं था कि इस हमले की साजिश पाकिस्तानी सेना और आईएसआई ने रची थी, अजमल कसाब को भी पकड़ लिया गया था, उसके बयान थे।

लेकिन हमने कोई जवाबी कार्रवाई नहीं की। 2016 में जब जैश-ए-मोहम्मद ने उरी पर हमला किया, जिसमें 19 सैनिक मारे गए, तो हमने आखिरकार सर्जिकल स्ट्राइक की। 2019 में पुलवामा हमले के बाद हमने बालाकोट में बमबारी करके जवाब दिया, जिससे पता चला कि भारत में यह कहने की इच्छाशक्ति है कि बस, बहुत हो गया।

लेकिन वे सब प्रतिक्रियाएं थीं। अब हमें नैरेटिव का मास्टर बनना है। हर सीजफायर उल्लंघन (2020 में पाकिस्तान द्वारा लगभग 5000 बार ऐसा किया गया) का दोगुना प्रतिकार किया जाना चाहिए। पीओके में घुसपैठ से भी कोताही नहीं बरती जानी चाहिए।

इसके अलावा, हमें युद्ध को पाकिस्तान के क्षेत्र में ले जाना होगा। ऐसा करने के लिए हमारे पास दो शक्तिशाली हथियार हैं। इनमें से पहला, 1960 के सिंधु जल समझौते को स्थगित करना सही कदम है, ताकि हम सिंधु, झेलम और चिनाब के पाकिस्तान में प्रवाह को नियंत्रित कर सकें। यह सीमापार दहशत पैदा कर सकता है, क्योंकि पाकिस्तान की जीडीपी का 25% कृषि पर निर्भर करता है। नदी के प्रवाह के बारे में रियल टाइम डेटा साझा न करना भर भी नुकसान पहुंचा सकता है।

दूसरे, अब समय आ गया है कि हम बलूचिस्तान के मुक्ति-संग्राम को बढ़ावा देकर भारत में पाकिस्तान के आतंकवाद का माकूल जवाब दें। पाकिस्तान में सेना-आईएसआई गठजोड़ कमजोर पड़ गया है। हमारे सभी उपायों का मिला-जुला असर पाकिस्तान के लोगों को इस गठजोड़ के खिलाफ खड़ा करने पर केंद्रित होना चाहिए। पाकिस्तान के ‘डीप स्टेट’ को कमजोर या समाप्त नहीं किया जाता, तब तक कोई स्थायी शांति नहीं हो सकती।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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