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पवन के. वर्मा का कॉलम: जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा क्यों नहीं दिया जा रहा? Politics & News

पवन के. वर्मा का कॉलम:  जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा क्यों नहीं दिया जा रहा? Politics & News

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  • Pawan K. Verma’s Column Why Is Jammu And Kashmir Not Being Given The Status Of A Full State?

22 मिनट पहले

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पवन के. वर्मा पूर्व राज्यसभा सांसद व राजनयिक

मैं हाल ही मैं कश्मीर की एक यात्रा से लौटा हूं। जहां घाटी पहले की तरह खूबसूरत है, वहीं वह पहलगाम हमले के बाद पर्यटकों की बेरुखी के चलते वीरान भी लग रही है। अपनी यात्रा के दौरान मुझे कई कश्मीरियों से बातचीत करने का मौका मिला।

इनमें वहां के आम नागरिकों के अलावा डॉ. कर्ण सिंह, फारूख अब्दुल्ला, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश संजय कृष्ण कौल, विजय धर और मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला जैसी हस्तियां भी शामिल थीं। लेकिन सभी के दिमाग में एक ही सवाल कौंध रहा था : जम्मू-कश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्जा कब बहाल होगा?

एक केंद्र श​ासित प्रदेश के तौर पर जम्मू-कश्मीर की मौजूदा स्थिति संघीय भावना और संविधान की लोकतांत्रिक प्रकृति, दोनों के ही खिलाफ है। हमें इसको लेकर कोई गफलत नहीं होनी चाहिए कि केंद्र शासित प्रदेश की व्यवस्था ही एक लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार की ताकत को सीमित करने के​ लिए है।

अपने आकार, आबादी और ऐतिहासिक विरासत के लिहाज से महत्वपूर्ण जम्मू-कश्मीर जैसे राज्य को केंद्र शासित प्रदेश बनाना न सिर्फ बेतुका है, बल्कि बीते 75 वर्षों में ऐसा पहली बार हुआ है, जब किसी मौजूदा राज्य को केंद्र शासित बना दिया गया हो।

सच कहें तो यह समझ से परे है कि केंद्र सरकार क्यों पूर्ण राज्य के दर्जे की बहाली को टाल रही है। 2019 में अनुच्छेद 370 की समाप्ति और जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा देते वक्त गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में वादा किया था कि ‘उचित समय आने पर’ पूर्ण राज्य का दर्जा पुन: प्रभावी कर दिया जाएगा।

अगस्त 2023 में भी केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में आश्वासन दिया था कि जम्मू-कश्मीर का केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा अस्थायी है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के ठीक शब्द ये थे : ‘मैं आश्वस्त करता हूं कि हम जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य बनाने के लिए उत्तरोत्तर आगे बढ़ रहे हैं।’ मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने दिसंबर 2023 में निर्देश दिए थे कि जम्मू-कश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्जा लौटा देना चाहिए। इसके लिए सितंबर 2024 तक चुनाव हो जाने चाहिए।

चुनाव तो खैर सितंबर 2024 में ही हुए। वे स्वतंत्र और निष्पक्ष रीति से भी सम्पन्न हुए,​ जिनमें 60 प्रतिशत मतदान हुआ। 90 सदस्यीय सदन में नेशनल कॉन्फ्रेंस को स्पष्ट बहुमत मिला और उमर अब्दुल्ला मुख्यमंत्री बने। लेकिन नवगठित विधानसभा ने सर्वसम्मति से जो पहला प्रस्ताव पारित किया, वह पूर्ण राज्य की बहाली की मांग करने वाला था।

और इसके बावजूद केंद्र ने इस मुद्दे पर चुप्पी साधी हुई है। 29 अप्रैल को पहलगाम हमला हुआ। हर कश्मीरी इस नृशंस हमले के विरोध में निडरता के साथ खड़ा था। व्यापारियों ने बाजार बंद किए, नागरिकों ने कैंडल-लाइट मार्च निकाले, मस्जिदों में लोगों में काली पट्टियां बांधीं और घाटी के मुख्य मौलवी मीरवाइज उमर फारूक ने हमले की निंदा की।

सभी कश्मीरियों ने शोक जाहिर किया। यह पाकिस्तान-प्रायोजित आतंकवाद के विरुद्ध एकजुटता जताने का कश्मीरियों का अभूतपूर्व प्रयास था। वे साम्प्रदायिक हिंसा की पुरजोर मुखालफत कर रहे थे, जो उनके रोजगार पर भी चोट पहुंचाता है, क्योंकि कश्मीर में पर्यटन आय का बड़ा जरिया है।

यही वह समय था, जब हमले के विरोध में कश्मीरियों की एकजुटता को देखते हुए केंद्र सरकार को पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने की प्रक्रिया शुरू कर देनी चाहिए थी। खासतौर पर इसलिए क्योंकि उमर अब्दुल्ला पर यह भरोसा किया जा सकता है कि वे केंद्र के साथ सकारात्मक तौर पर काम करेंगे। उमर अब्दुल्ला कोई गैरजिम्मेदार चरमपंथी नहीं हैं।

लेकिन इसके बजाय केंद्र ने अंधाधुंध कार्रवाई करते हुए संदिग्ध आतंकवादियों के रिश्तेदारों और पड़ोसियों के घरों को ढहाना शुरू कर दिया, जो कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का सीधा-सीधा उल्लंघन था। इसने पहलगाम हमले के बाद कश्मीरियों में समर्थन के लिए पैदा हुई भावना को भी धीरे-धीरे समाप्त कर दिया। इससे ज्यादा उन्हें यह भी अपमानजनक लगा​ कि जिस मुख्यमंत्री को उन्होंने चुना था, उनकी कानून-व्यवस्था में कोई भूमिका नहीं थी। उन्हें तो सुरक्षा अभियानों की जानकारी तक नहीं दी गई थी।

आखिरकार, सवाल यह नहीं है कि जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा फिर मिलेगा या नहीं। सवाल यह है कि ऐसा अब तक किया क्यों नहीं गया? क्योंकि लोकतांत्रिक भारत की ताकत लंबे समय तक सत्ता कायम रखने में नहीं, बल्कि नागरिकों पर भरोसा करने की भावना में ही निहित है।

पहलगाम हमले के विरोध में कश्मीरियों की एकजुटता को देखते हुए पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने की प्रक्रिया शुरू कर देनी चाहिए थी। उमर अब्दुल्ला पर भरोसा किया जा सकता है कि वे केंद्र के साथ सकारात्मक तौर पर काम करेंगे। (ये लेखक के अपने विचार हैं)

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