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- Pawan K. Verma’s Column The Tragedy Of The Kandahar Hijack Still Haunts Us
2 दिन पहले
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पवन के. वर्मा पूर्व राज्यसभा सांसद व राजनयिक
मैं आईसी-814 फ्लाइट की हाईजैकिंग पर आधारित नेटफ्लिक्स सीरीज पर हो रहे विवाद से हैरान हूं। ये सच है कि यह सीरीज सिनेमा के मानकों पर बहुत खरी नहीं है, लेकिन इसकी आलोचना सही कारणों से होनी चाहिए।
24 दिसंबर 1999 को काठमांडू से दिल्ली के लिए उड़ान भरने वाली आईसी-814 फ्लाइट को शाम 4:53 बजे पांच पाकिस्तानियों ने हाईजैक कर लिया था, जिनमें खूंखार आतंकवादी मौलाना मसूद अजहर का भाई इब्राहिम अतहर, शाहिद अख्तर, सनी काजी, मिस्त्री जहूर और शाकिर शामिल थे। मैं प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का बहुत बड़ा प्रशंसक हूं, लेकिन इस अपहरण की हैंडलिंग को लेकर उन्हें सही सलाह नहीं दी गई थी। उनके खुफिया और आतंकरोधी तंत्र ने उन्हें बुरी तरह से निराश किया।
दिल्ली को हाईजैक के महज तीन मिनट बाद ही इसकी सूचना मिल गई थी, लेकिन वह त्वरित और प्रभावी प्रतिक्रिया के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं थी। कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता वाली आपदा प्रबंधन टीम को कुछ सूझा नहीं। प्रतिक्रिया में देरी हुई।
खुफिया एजेंसियों के बीच भ्रम की स्थिति थी, आकस्मिक योजना और रणनीतिक स्पष्टता का अभाव था। यह तब साफ तौर पर सामने आया, जब भाग्य के एक अप्रत्याशित क्षण के चलते विमान को अमृतसर में उतरने के लिए मजबूर होना पड़ा।
हवाई अड्डे पर अधिकारियों को इसे उड़ान न भरने देने के निर्देश थे, लेकिन दिल्ली और पंजाब के बीच निर्णायक कमांड-एंड-कंट्रोल संचार की अनुपस्थिति में टरमैक को अवरुद्ध नहीं किया गया, न ही हमारे राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी) के कमांडो समय पर अमृतसर पहुंच सके।
पूर्व विदेश सचिव और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेएन दीक्षित ने लिखा, दिल्ली और अमृतसर के अधिकारियों के बीच समन्वय नहीं था। अमृतसर में विमान के उतरने के तुरंत बाद रनवे को ब्लॉक नहीं किया गया। एनएसजी कमांडो पर्याप्त गति से अपनी कार्रवाई के मोड में नहीं आए। अपहरणकर्ताओं को बिना किसी खासी मुश्किल के वहां से उड़ान भरने के लिए पर्याप्त समय मिल गया।
अमृतसर में आईसी-814 में ईंधन भरा गया और वह लाहौर और दुबई होते हुए आखिरकार तालिबान के नियंत्रण वाले कंधार में लैंड हुई। भारत को अपहरणकर्ताओं की मांगों के आगे झुकना पड़ा। उस समय देश ने देखा कि विदेश मंत्री जसवंत सिंह खुद तीन खतरनाक आतंकवादियों- मुश्ताक जरगर, उमर शेख और मसूद अजहर को यात्रियों की रिहाई के लिए कंधार ले गए थे। मसूद ने छूटकर आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का गठन किया, जो आज भी हमारे लोगों और बहादुर सैनिकों की हत्या कर रहा है।
तो विवाद किस बात पर है? इसकी शुरुआत भाजपा नेता अमित मालवीय द्वारा एक्स पर लिखी पोस्ट से हुई। उन्होंने लिखा कि अपहरणकर्ताओं के गैर-मुस्लिम नामों का उपयोग करके (भोला (मिस्त्री जहूर) और शंकर (शाकिर)) फिल्म निर्माता उन्हें हिंदुओं के रूप में चित्रित करना चाहते थे।
यह हास्यास्पद आरोप है, क्योंकि अपहरणकर्ता अपनी पहचान और असली नाम छिपाते हैं। लेकिन किसी को भी- न तो भारतीय लोगों को, न मीडिया को, न ही सरकार को- तब और अब इस बात पर कोई संदेह है कि वे पाकिस्तानी मुस्लिम थे, जो आईएसआई के निर्देशों पर काम कर रहे थे।
दूसरा आरोप यह है कि फिल्म में जानबूझकर अपहर्ताओं को ‘मानवीय’ दिखाया गया है। मुझे इसका कोई सबूत नहीं मिला, सिवाय इसके कि जब यात्री अपने अपहर्ताओं के साथ एक सप्ताह से अधिक का समय बिताते हैं, तो उनके और कुछ हाईजैकर्स के बीच थोड़ी-बहुत जान-पहचान बन सकती है।
कई बंधकों ने भी इस बात की पुष्टि की है। वैसे भी सीरीज स्पष्ट करती है कि यह कुछ वास्तविक घटनाओं की पृष्ठभूमि पर आधारित काल्पनिक रचना है, और प्रामाणिकता या ऐतिहासिक शुद्धता का कोई दावा नहीं करती है।
अब नेटफ्लिक्स को ओपनिंग क्रेडिट्स में हाईजैकर्स के वास्तविक नाम देने का निर्देश दिया जा रहा है, जिसे वह वैसे भी छिपाने का इरादा नहीं रखता था। लेकिन इस सबसे हमारी तत्कालीन सरकार की कमजोरी नहीं छुप सकती, जिसने बंधकों के परिजनों के दबाव में आकर उनकी रिहाई के बदले आतंकियों को छोड़ने का सौदा कर लिया था। इसकी हमें बाद में भी भारी कीमत चुकाना पड़ी थी।
भाजपा खुद को आतंकवाद के खिलाफ युद्ध लड़ने वाली एक शक्तिशाली पार्टी के रूप में पेश करना चाहती है, लेकिन वह कंधार हाईजैक मामले में अपनी पिछली सरकार की विफलता को भुला देना चाहेगी। आईसी-814 फ्लाइट की हाईजैकिंग पर आधारित नेटफ्लिक्स सीरीज इन दिनों चर्चाओं और विवादों के दायरे में है। लेकिन वास्तविक सवाल हमारी तत्कालीन सरकार की नाकामी और कमजोरी पर उठाए जाने चाहिए।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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पवन के. वर्मा का कॉलम: कंधार हाईजैक की त्रासदी आज भी हमें खटकती है