[ad_1]
- Hindi News
- Opinion
- Pawan K. Verma’s Column Maintain Friendship With America, But Do Not Bow Down To It
4 घंटे पहले
- कॉपी लिंक
पवन के. वर्मा पूर्व राज्यसभा सांसद व राजनयिक
मेरा मत है कि ट्रम्प को ‘विघटनकारी’ के रूप में पेश करने वाली मौजूदा सनसनियां अतिशयोक्तिपूर्ण हैं, और इन्हें ट्रम्प ने खुद रचा है। क्योंकि दुनिया के नेता- चाहे वो कितने भी शक्तिशाली क्यों न हों- अंततः अपने देश के हितों और एक-दूसरे से जुड़ी दुनिया की जटिलताओं से बंधे होते हैं।
फिलहाल तो ट्रम्प अपनी ढपली पर जोशो-खरोश से अपना राग अलाप रहे हैं। वे पहले से बड़े जनादेश के साथ लौटे हैं। सीनेट और कांग्रेस दोनों पर उनका नियंत्रण है। राष्ट्रपति बनते ही उन्होंने दर्जनों कार्यकारी आदेशों पर हस्ताक्षर करके सुर्खियां रचने में कोताही नहीं बरती है।
लेकिन अंतिम निष्कर्ष में, उनका दूसरा कार्यकाल उम्मीद से कम धमाकेदार और ज्यादा शेखी बघारने वाला साबित हो सकता है। उदाहरण के लिए, राष्ट्रपति चुनाव अभियान के दौरान ट्रम्प ने कहा था कि वे चीनी आयातों पर 60 प्रतिशत टैरिफ लगाएंगे। लेकिन राष्ट्रपति बनने पर उन्होंने इसे घटाकर 10 प्रतिशत कर दिया है।
उन्होंने चीनी ऐप टिकटॉक को एक्सटेंशन भी दिया है, जिस पर उन्होंने पहले कहा था कि वे तुरंत प्रतिबंध लगा देंगे। ट्रम्प ने चीन को उसकी सही जगह बता देने की लफ्फाजी करके लोकप्रियता हासिल की थी, लेकिन यह दिलचस्प है कि वे पहले ही शी जिनपिंग के साथ सौहार्दपूर्ण बातचीत कर चुके हैं, और अप्रैल में बीजिंग जाने की योजना भी बना रहे हैं।
क्या आपको ये ‘विघटनकारी’ संकेत लग रहे हैं? ये सच है कि उनके यूरोपीय सहयोगी और जापान, ‘अमेरिका फर्स्ट’ पर उनके जोर से थोड़े चिंतित हो सकते हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि अमेरिका, पश्चिमी यूरोप और जापान एक सूत्र में बंधे हुए हैं। दूसरे शब्दों में, वे सब एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं।
यह उम्मीद भी बेजा है कि ट्रम्प मध्य-पूर्व में शांति कायम कर देंगे, क्योंकि अमेरिका में इजराइल समर्थक लॉबी बहुत ताकतवर है और वह ट्रम्प के एकतरफा रुख से कमोबेश बेअसर रहती है। यूक्रेन युद्ध के लिए भी अमेरिकी सैन्य-औद्योगिक कॉम्प्लेक्स की लॉबीइंग मायने रखती है और ट्रम्प शायद ही इसकी अनदेखी कर सकेंगे। और पुतिन भी नाटो के विस्तारवाद पर रोक और यूक्रेन की तटस्थता पर ठोस गारंटी बिना युद्ध समाप्त नहीं करने वाले हैं।
इसके अलावा, ट्रम्प अमेरिका के अंदरूनी मसलों पर ज्यादा मसरूफ रहेंगे। वे अवैध इमिग्रशन को समाप्त करने, रैडिकल कर-सुधार लाने, सरकारी खर्चों में कटौती करने और ‘डीप स्टेट’ की जड़ों में मट्ठा डालने के लिए कमर कसे हुए हैं। लेकिन इनमें से कोई भी एजेंडा आसान, या यहां तक कि सहज-सम्भव नहीं है।
ट्रांसजेंडर लोगों के लिए सुरक्षा को खत्म करने और अमेरिका की विविधता, समावेशी-संस्कृति और समानता के प्रयासों को समाप्त करने का उनका उद्देश्य अत्यधिक विवादास्पद है। अमेरिका आज एक गहरे तक विभाजित समाज बनकर रह गया है, और इनमें से प्रत्येक मुद्दे पर ट्रम्प को आने वाले दिनों में अधिक विरोध का सामना करना पड़ेगा।
भारत को ट्रम्प पर कैसे प्रतिक्रिया देनी चाहिए? मैं तो कहूंगा हमारे राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देते हुए सौहार्दपूर्ण, किंतु गरिमापूर्ण तरीके से। भू-राजनीति के क्षेत्र में, ट्रम्प और मोदी के बीच तथाकथित केमिस्ट्री- जो ‘हाउडी मोदी’ और ‘अबकी बार ट्रम्प सरकार’ में झलकी थी- की अपनी सीमाएं हैं। पिछले वर्ष सितम्बर में मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान ट्रम्प उनसे नहीं मिले थे, जबकि ट्रम्प ने कहा था कि वे ‘अपने अच्छे दोस्त’ से मिलने के लिए उत्सुक हैं।
अगर ट्रम्प अवैध इमिग्रेशन को समाप्त करना चाहते हैं, तो हमें इस मुद्दे पर उनका सहयोग करना चाहिए, क्योंकि अमेरिका में लगभग 725,000 अनडॉक्यूमेंटेड भारतीय हैं। लेकिन यदि वे एच1बी वीजा को प्रतिबंधित करते हैं, तो यह केवल भारत से जरूरी टैलेंट-पूल को कम करने की कीमत पर हो सकता है, जिसकी अमेरिका को आवश्यकता है।
यदि ट्रम्प चाहते हैं कि अमेरिकी कॉर्पोरेट्स को भारतीय बाजारों तक आसान पहुंच मिले, तो हमें भी जियो मार्ट और बिग बास्केट जैसे अपने कॉर्पोरेट्स की रक्षा करने की जरूरत है। हमें अमेरिकी हाई-टेक की आवश्यकता है, विशेषकर डिफेंस और स्पेस प्रौद्योगिकी में। लेकिन इस व्यवस्था को जारी रखने में अमेरिका का भी हित है।
दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतंत्रों के रूप में हमारे साझा हित हैं। समानता के आधार पर ही अमेरिका से दोस्ती को आगे बढ़ाना चाहिए। उनके सामने झुकना खराब नीति होगी। यही कारण है कि मुझे आश्चर्य होता है मोदी फरवरी में वॉशिंगटन क्यों जाना चाहते हैं, जबकि ट्रम्प की घोषित प्राथमिकता अप्रैल में बीजिंग का दौरा करना है?
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्रों के रूप में हमारे साझा हित हैं। अमेरिका के सामने झुकना खराब नीति होगी। यही कारण है कि आश्चर्य होता है मोदी वॉशिंगटन क्यों जाना चाहते हैं, जबकि डोनाल्ड ट्रम्प की प्राथमिकता चीन का दौरा करना है?
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
[ad_2]
पवन के. वर्मा का कॉलम: अमेरिका से दोस्ती बनाए रखें, पर उसके सामने झुकें नहीं