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- Pt. Vijayshankar Mehta’s Column Learn From Hanumanji That We Should Be Useful To Others
पं. विजयशंकर मेहता
स्वार्थी होना संसार का मूल लक्षण है। हर मनुष्य कहीं ना कहीं स्वार्थी है और होना भी चाहिए। स्वार्थ में कोई पाप नहीं है, लेकिन निजी हित साधने के लिए दूसरों को नुकसान पहुंचाना- यहीं से स्वार्थ पाप बन जाता है। ऐसा कहते हैं कि कौन, किसके काम आता है? और बिना स्वार्थ के तो आजकल कोई किसी से सम्बंध रखता ही नहीं है।
श्रीराम के लिए अयोध्यावासियों ने कहा था- ‘हेतु रहित जग जुग उपकारी, तुम्ह तुम्हार सेवक असुरारी।’ जगत में बिना हेतु के यानी नि:स्वार्थ उपकार करने वाले तो दो ही हैं- एक आप, दूसरे आपके सेवक। ये जो दूसरे सेवक का नाम लिया, इनमें सबसे ऊपर आते हैं हनुमानजी।
यानी रामजी तो हैं ही दूसरों का भला करने वाले, पर जो रामजी के सेवक हैं वो भी भला करते हैं। हम सब भी कहीं ना कहीं श्रीराम के सेवक हैं। तो क्यों ना हम हनुमानजी से सीखें कि हम दूसरों के काम आएं। जब हम दूसरों के दु:ख मिटाते हैं तो ऊपर वाला अतिरिक्त सुख हमारी झोली में डाल देता है।
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पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम: हनुमानजी से सीखें कि हम दूसरों के काम आएं