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पं. विजयशंकर मेहता
भगवान भरोसे का दूसरा नाम है। ये एक पंक्ति यदि समझ में आ जाए, तो जिंदगी की बहुत सारी समस्याएं अपने आप सुलझ जाएंगी। लोग भगवान को मानते हैं, भरोसा भी करते हैं, लेकिन भरोसा डगमगाता रहता है।
श्रीराम ने कहा, मेरा दास कहलाकर, यदि कोई मनुष्यों की आशा करता है, तो बताओ भरत, उस पर क्या भरोसा करो। राम कहना चाहते हैं, जब तुम्हें मुझ पर भरोसा है, तो परेशानी में भी मुझ पर पूरी तरह भरोसा रखो, मुझे भूल के दुनिया में चले जाते हो, फिर दुनिया से परेशानी आई तो मुझे याद करते हो। ‘बहुत कहउं का कथा बढ़ाई।
एहि आचरन बस्य मैं भाई।’ श्रीराम कहते हैं कि ‘बहुत बढ़ा कर क्या कहूं, हे भाइयो, मैं तो इसी आचरण के वश में हूं।’ तो राम किस आचरण के वश में हैं? भरोसे का आचरण। कठिन से कठिन परिस्थिति में भी ईश्वर का भरोसा मत छोड़िए, और इस भरोसे को एक तरह से संकल्प बना लीजिए।
हमारा संकल्प होना चाहिए कि कैसी भी विपरीत स्थिति हो, भरोसा नहीं छोड़ेंगे। दो तरह के संकल्प हैं- एक राग का संकल्प, जिसमें हम संसार में उतरते हैं, और दूसरा वैराग्य का संकल्प, जिसमें हम संसार से पार होने का संकल्प लेते हैं। जैसे ही आप संसार से पार होते हैं, फिर आप ईश्वर के हो जाते हैं। फिर आपका पूरा भरोसा भगवान के प्रति होता है।

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पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम: ईश्वर पर भरोसे को एक तरह से संकल्प बना लें