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- Pt. Vijayshankar Mehta’s Column These Three Experiments Will Save You From Aggressive Reactions
पं. विजयशंकर मेहता
देश में आत्महत्या के आंकड़े बढ़ते जा रहे हैं। लोग बहुत जल्दी विचलित, क्रोधित, बेचैन हो रहे हैं। ये धीमी आत्महत्या है।प्रतिक्रिया और क्रोध धीरे-धीरे स्वभाव बन रहा है। लोग बात-बात पर गुस्सा होते हैं। हर बात की आक्रामक प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं। सहन कोई करना नहीं चाहता। अगर आपको ऐसा लगता है कि यह विचार आपके भीतर उतर रहा है, तो तीन प्रयोग करिए।
पहला, कोई न कोई भजन रोज सुनिए और गुनगुनाइए। दूसरा प्रयोग, पुराने सिनेमा के गाने सुनिए। पहले गाने ऐसे बनते थे, जिन्हें कानों से सुनते थे और जो हृदय में उतरते थे। अब जो गीत बनते हैं, वो आंखों से ज्यादा देखे जाते हैं।
पहले के गीत ताजगी देते थे, अब के गीत थकान देंगे। और तीसरा काम करिए, अपने घर के या आसपास के बच्चों से जरूर बात करिए। और बच्चों से बात करते समय भीतर से बिल्कुल बच्चे हो जाइए। ये तीन काम आपको इतने भावनात्मक बना देंगे कि आप इस तरह के नकारात्मक विचारों का इलाज खुद ही ढूंढ लेंगे। और वो है खुश रहें, खुश रखें।
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पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम: ये तीन प्रयोग आक्रामक प्रतिक्रिया से बचाएंगे