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पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम: देवालयों में मन की शुद्धि और आत्मा की तृप्ति हो Politics & News

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5 दिन पहले

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पं. विजयशंकर मेहता - Dainik Bhaskar

पं. विजयशंकर मेहता

हमारे देश के लिए ये सौभाग्य की बात है कि मंदिर-प्रबंधन को लेकर हम लोग नए-नए प्रयोग करते रहते हैं। कुछ सफल हो जाते हैं, कुछ असफल हो जाते हैं। मंदिर-प्रबंधन में दो लोग बड़ी बाधा पहुंचाते हैं। एक वो जिनकी वृत्ति ऐसी होती है कि वो धर्म पर प्रहार करें। और दूसरे वो लोग होते हैं, जो धर्म के प्रति उदासीन-वृत्ति रखते हैं। अपने आपको धर्म से दूर करना चाहते हैं। एक देश है बेल्जियम, जहां वर्षों पहले 80% लोग चर्च जाते थे, वहां अब 10% जा रहे हैं। ऐसा खतरा तो हमारे यहां नहीं दिख रहा।

लेकिन उस देश ने लोगों को आकर्षित करने के लिए चर्च में होटल, सुपरमार्केट आदि खोल लिए। अब कुछ प्रयोग हमने भी किए। हमने कॉरिडोर बनाए। इसकी प्रशंसा की जानी चाहिए। मंदिरों का जीर्णोद्धार किया, ये वंदन-योग्य है। लेकिन इसके पीछे हमारे इरादे केवल पर्यटन, मौज-मस्ती के न रहें। मनुष्य जब धार्मिक स्थल पर पहुंचे, तो शरीर का श्रम हो, मन की शुद्धि हो और आत्मा की तृप्ति हो। तब तो माना जाएगा कि हम सचमुच मंदिर से कुछ लेकर आए हैं।

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