[ad_1]
- Hindi News
- Opinion
- Pt. Vijayshankar Mehta’s Column Sharpen Your Intellect And Strengthen Your Devotion
अगर बुद्धि तराश ली जाए, भक्ति दृढ़ कर ली जाए तो हमारी हैसियत चाहे छोटी हो, बड़े-बड़े पद-कद वाले लोग भी हमारे पास कुछ प्राप्त करने आएंगे। इसका उदाहरण हैं काकभुशुंडि जी। हैं तो कौवा, लेकिन शिव जी ने पक्षीराज गरुड़ को कहा कि उनके पास जाओ। तो क्या था ऐसा काकभुशुंडि जी के पास? तुलसीदास जी लिखते हैं- गयउ गरुड़ जहं बसइ भुसुंडा, मति अकुंठ हरि भगति अखंडा। निश्छल हरिभक्ति और तीव्र बुद्धि वाले भुशुंडि जी जहां रहते थे, वहां गरुड़ जी गए।
इसमें अकुंठ बुद्धि का अर्थ- जो कभी कुंठित ना हो, कुंद ना हो, तीव्र रहे। और अखंड भक्ति का अर्थ- जो कभी खंडित ना हो। एकतार, तेल की धारा की तरह स्थिर रहने वाली निश्चल, अविरल। भक्ति का अर्थ है अपने से ऊपर किसी शक्ति को मान्यता देना। और बुद्धि अकुंठ तब होगी, जब हम उसे शिक्षा, अनुभव से तराशते रहेंगे। दोनों काम अपनी हैसियत के बाहर जाकर करें। शिक्षा पानी ही है, इसमें लापरवाही ना करें। भक्ति को दृढ़ रखना ही है, इसमें भूल न की जाए।
[ad_2]
पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम: बुद्धि को तराश लीजिए और भक्ति को दृढ़ कर लिया जाए

