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- Pt. Vijayshankar Mehta’s Column Evaluate Relationships With Children Like Journaling
पं. विजयशंकर मेहता
हमारे बच्चे अब धीरे-धीरे उस दुनिया में जी रहे हैं, जिसमें हमारे जैसे वो रहें- ऐसा अति-आग्रह अब ना किया जाए। लेकिन वो जैसे भी रहें, अच्छे इंसान के रूप में रहें। इसलिए अपने बच्चों के साथ हर हाल में जुड़े रहें। बेड़ी, रस्सी, डोरी, धागा, तंतु- जो भी आपके पास साधन हो, पर जुड़े रहिए। ज
ब हम अपने विचारों और भावनाओं को किसी नोटबुक में लिखते हैं तो उसको जर्नलिंग कहते हैं। ऐसा ही अभ्यास बच्चों के साथ रिश्तों में करें। बच्चों का व्यवहार, स्वभाव में परिवर्तन, आप क्या कर सकते हैं- इन सब को लिखें। हम उनकी कॉपी देखते हैं, मार्कशीट देखते हैं और भी बातों का मूल्यांकन करते हैं।
लेकिन उनसे हमारे रिश्तों का मूल्यांकन भी जर्नलिंग की तरह करें। इससे हमारे और उनके मानसिक स्वास्थ्य में फर्क पड़ेगा। बहुत गहराई से ध्यान दें कि हमारे बच्चे ने इस माह क्या खास बात ऐसी की- निगेटिव या पॉजिटिव, उसे लिख लें। और उसके व्यवहार पर जो कुछ भी लिखा है, उसे योजनाबद्ध ढंग से अपनी पैरेंटिंग में उतारिए। अच्छे परिणाम मिलेंगे।
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पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम: जर्नलिंग की तरह बच्चों से रिश्तों का मूल्यांकन करें

