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- Pt. Vijayshankar Mehta’s Column We Feel Reassured By Seeing The New Generation Singing Bhajans
पं. विजयशंकर मेहता
माया से बचने के लिए भजन किया जाए, शंकर जी ऐसा सुझाव देते हैं। इसीलिए तुलसीदास जी ने लिखा- सिव बिरंचि कहुं मोहइ को है बपुरा आन, अस जियं जानि भजहिं मुनि माया पति भगवान। अब माया को जिस भी रूप में समझें पर जीवन को उलझा देती है। तो भजन करना इससे बचने का उपाय है।
ये भी एक अच्छा संकेत है कि नई पीढ़ी ने क्लब जैमिंग के रूप में भजन के नए स्वरूप को स्वीकार किया है। स्वामी अवधेशानंद गिरी कहते हैं कि भजन में किसी को अपने से बड़ा मानना, शीश झुकाना- एक लक्षण है।
रावण ने कहा था, होइहि भजनु न तामस देहा। यानी सतोगुणी शरीर से ही भजन होगा। और यों भी कह सकते हैं कि भजन करने से शरीर सतोगुणी हो जाएगा। स्वामी अवधेशानंद जी- जो स्वयं विनम्र व्यक्तित्व, मीठी वाणी और गहरे चिंतन के प्रतीक हैं- उन्होंने कहा कि भजन इन्हीं बातों को व्यक्तित्व में बढ़ाता है। जब नई पीढ़ी को हम भजन करता देखते हैं तो आश्वस्त हो जाते हैं कि भविष्य ना सिर्फ सुरक्षित है, बल्कि उज्ज्वल भी है।
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पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम: हम नई पीढ़ी को भजन करते देखकर आश्वस्त हो जाते हैं
