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- Column By Pandit Vijayshankar Mehta Yoga Is An Independent Activity, One Can Do It While Walking
1 घंटे पहले

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पं. विजयशंकर मेहता
गीता में श्रीकृष्ण जब-जब योग पर बात करते, तो उनकी दृष्टि अर्जुन के रथ की ध्वजा पर विराजे हनुमान जी पर जाती थी। हनुमान जी सच्चे योगी हैं। अगर कोई योग को जानना चाहे तो हनुमान जी को इस दृष्टि से देखे। तो योग की मूल बात वही है, लेकिन तरीका अलग है।
महिलाएं, बच्चे, युवा, बूढ़े अपने-अपने ढंग से योग को स्वीकार कर सकते हैं। अगर आप योगियों की तरह योग ना कर पाएं तो सामान्य गृहस्थ बनकर भी योग से जुड़ सकते हैं। रोना भी योग बन जाता है। भावनाएं और दबाव यदि बाहर निकाल दें, आंसुओं से, तो वह योग है। विनम्रता भी योग है।
हंसना तो योग है ही। खाना बनाने और भोजन करने में भी योग उतर आता है। यदि सेवा करने लग जाएं तो योग घट गया। मौन तो योग की प्रतिनिधि क्रिया है। दूसरों के लिए अच्छा सोचिए, मन ही मन योग घट गया। अपने काम अपने हाथ से करिए, घर में भी, बाहर भी, योग हो गया। तो योग के कई रूप हैं, केवल हाथ-पैर हिलाना, आंख बंद करके, सीधी कमर करके बैठना ही योग नहीं है।
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पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम: योग स्वतंत्र क्रिया है, चलते फिरते भी इसे कर सकते हैं