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- Pt. Vijayshankar Mehta’s Column If You Have To Argue With Someone, Do It Wisely
6 घंटे पहले
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पं. विजयशंकर मेहता
बहस करना बुद्धिमानी से अधिक मूर्खता की निशानी है। यह ऐसी वैचारिक क्रिया है कि बुद्धिमान से बुद्धिमान व्यक्ति भी थोड़ी देर में धैर्य खो बैठता है और मूर्खता के पथ पर चल पड़ता है। ठोस परिणाम बहस से नहीं, विचार-विमर्श से निकला करते हैं और जब विचार-विमर्श में दोनों पक्ष अहंकार में डूब जाएं, पूर्वग्रह से ग्रसित हों, क्रोधी हों और वाणी से हलके हों, तो इसे बहस में तब्दील होने में समय नहीं लगता है।
यदि आप कभी बहस में पड़ें तो तुरंत अपने अहंकार को टटोलें। देखना मूर्खता की ओर कितना बढ़ रहे हैं। अपने को सही साबित करने की कोशिश न करें तो आप बहस के थपेड़े से बाहर आ जाएंगे। बहस अंतर्ज्ञान को शून्य कर देती है।
ये आपकी उस ऊर्जा को पी जाती है, जो निर्णय लेने में काम आती है। फिर भी आज के दौर में बहस करना पड़ सकती है, तो पूरी विनम्रता से करें, एक-एक शब्द संतुलित होने के साथ मीठा हो। और बहस में कितनी देर रुकना है, ये समयसीमा तय करके उतरें। समयसीमा पूरी होते ही बाहर निकल आएं। फिर ये न सोचें, कोई क्या सोचेगा।
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पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम: किसी से बहस में पड़ना हो तो बुद्धिमानी से करें